• April 19, 2025

हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, तेलंगाना सरकार से पूछा- इतनी जल्दी क्या थी?

नई दिल्ली, 16 अप्रैल 2025: हैदराबाद विश्वविद्यालय के निकट कांचा गाचीबोवली वन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना की रेवंत रेड्डी सरकार के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने इस मामले को “बेहद गंभीर” करार देते हुए सरकार से तीखे सवाल किए और पूछा कि “पेड़ों की कटाई शुरू करने की इतनी आपातकालीन आवश्यकता क्यों थी?”
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने गुरुवार, 3 अप्रैल को इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया था। कोर्ट ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को कांचा गाचीबोवली क्षेत्र का तत्काल दौरा करने और अंतरिम रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था। रजिस्ट्रार की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ काटे गए हैं और लगभग 100 एकड़ जमीन को भारी मशीनरी से समतल किया गया है। रिपोर्ट में मोर, हिरण और विभिन्न पक्षियों की मौजूदगी का भी जिक्र है, जो इस क्षेत्र को वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास साबित करता है।
सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने कहा, “यदि हमारे निर्देशों का अक्षरशः पालन नहीं किया गया, तो राज्य के मुख्य सचिव व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे। उन्हें झील के पास बनी अस्थायी जेल में भेजा जाएगा।” कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या पेड़ों की कटाई के लिए वन विभाग या अन्य स्थानीय प्राधिकरणों से आवश्यक अनुमति ली गई थी। साथ ही, कोर्ट ने सरकार से पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) प्रमाणपत्र की स्थिति के बारे में जवाब मांगा।
400 एकड़ जमीन पर विवाद
हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास 400 एकड़ जमीन को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। तेलंगाना सरकार इस जमीन को औद्योगिक विकास और आईटी पार्क के लिए इस्तेमाल करना चाहती है, जबकि विश्वविद्यालय के छात्र, पर्यावरण कार्यकर्ता और विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। विरोधियों का दावा है कि इस क्षेत्र में 450 से अधिक प्रजातियों की वनस्पतियां और जीव मौजूद हैं, जिनमें दुर्लभ जड़ी-बूटियां, तितलियां और पक्षी शामिल हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस जमीन को राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की मांग की है।
छात्रों और पर्यावरणविदों का विरोध
विश्वविद्यालय के छात्रों और पर्यावरण संगठनों, जैसे वाता फाउंडेशन, ने इस कटाई के खिलाफ तेलंगाना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय ने 3 अप्रैल तक सभी विकास कार्यों पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद, 30 मार्च को सरकार ने बुलडोजर भेजकर पेड़ों को हटाना शुरू किया, जिसके खिलाफ छात्रों ने अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन और कक्षाओं का बहिष्कार किया। पुलिस के साथ झड़प में 20 से अधिक छात्र घायल हुए।
सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक इस क्षेत्र में किसी भी तरह की गतिविधि, सिवाय पेड़ों की सुरक्षा के, पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) को भी निर्देश दिया कि वह क्षेत्र का दौरा कर 16 अप्रैल से पहले अपनी रिपोर्ट सौंपे। मामले की अगली सुनवाई आज, 16 अप्रैल को होगी।
विपक्ष का सरकार पर हमला
विपक्षी दल भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। बीआरएस नेता के.टी. रामा राव (केटीआर) ने इस मामले में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए केंद्रीय एजेंसियों, जैसे सीबीआई और एसएफआईओ, से हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस जमीन को निजी बैंक के पास गिरवी रखने में धोखाधड़ी हुई है और इसमें बीजेपी के एक सांसद की भी संलिप्तता है।
आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम पर्यावरण संरक्षण के प्रति उसकी गंभीरता को दर्शाता है। हाल ही में एक अन्य मामले में कोर्ट ने कहा था कि “पेड़ों की अवैध कटाई इंसान की हत्या से भी बदतर है।” पर्यावरणविदों और छात्रों को उम्मीद है कि कोर्ट का अंतिम फैसला इस क्षेत्र की जैव-विविधता को बचाने में मदद करेगा। दूसरी ओर, तेलंगाना सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए ठोस सबूत पेश करने होंगे।
इस मामले ने न केवल तेलंगाना बल्कि पूरे देश में पर्यावरण संरक्षण और विकास के बीच संतुलन को लेकर बहस छेड़ दी है। सभी की नजरें अब सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई पर टिकी हैं।
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