निजी स्कूलों की फीस वृद्धि पर दिल्ली सरकार का बड़ा एक्शन: डीपीएस द्वारका समेत 11 स्कूलों को नोटिस
नई दिल्ली, 17 अप्रैल 2025: दिल्ली में निजी स्कूलों द्वारा मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने और शिक्षा के व्यवसायीकरण की शिकायतों ने अभिभावकों को परेशान कर रखा था। इस मुद्दे पर दिल्ली सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए बड़ा कदम उठाया है। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व में गठित विशेष ऑडिट टीमों ने 600 से अधिक स्कूलों का ऑडिट पूरा किया है, जिसके बाद दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) द्वारका सहित 11 प्रमुख स्कूलों को कारण बताओ नोटिस (शो कॉज नोटिस) जारी किए गए हैं। शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि नियमों का उल्लंघन करने वाले स्कूलों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। यह कदम दिल्ली में शिक्षा के क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है।
पृष्ठभूमि और अभिभावकों की शिकायतें
पिछले कुछ महीनों से दिल्ली के निजी स्कूलों द्वारा फीस में की गई भारी वृद्धि ने अभिभावकों के बीच आक्रोश पैदा किया था। कई स्कूलों पर आरोप लगे कि वे बिना पूर्व अनुमति के फीस बढ़ा रहे हैं, अभिभावकों को मानसिक रूप से परेशान कर रहे हैं, और बच्चों को अपमानित कर रहे हैं। डीपीएस द्वारका के अभिभावकों ने विशेष रूप से शिकायत की कि स्कूल ने फीस वृद्धि का विरोध करने वाले परिवारों के बच्चों को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया और उन्हें कक्षा से अलग-थलग किया। कुछ मामलों में, 50 से अधिक छात्रों को बकाया फीस के कारण अगली कक्षा में प्रोमोट नहीं किया गया।
अभिभावकों ने स्कूल प्रशासन से बार-बार संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनकी शिकायतों को अनसुना कर दिया गया। रविवार को, डीपीएस द्वारका के अभिभावकों ने ‘डीपीएस द्वारका एग्रीव्ड पेरेंट्स’ के बैनर तले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें उन्होंने स्कूल की “प्रणालीगत मानसिक उत्पीड़न” की नीति की निंदा की और तत्काल हस्तक्षेप की मांग की।
इसके अलावा, अन्य स्कूलों जैसे महाराजा अग्रसेन मॉडल स्कूल में भी 2021-22 से हर साल फीस बढ़ाने की शिकायतें सामने आईं, भले ही शिक्षा निदेशालय (डीओई) ने 2023-24 के लिए फीस वृद्धि के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। अभिभावकों ने आरोप लगाया कि स्कूल प्रशासन और सरकार के बीच साठगांठ है, जिसके कारण उनकी शिकायतों पर कार्रवाई नहीं हो रही।

दिल्ली सरकार का सख्त रुख
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने फीस वृद्धि के मुद्दे को गंभीरता से लिया और अभिभावकों को आश्वासन दिया कि बच्चों की शिक्षा के साथ “अन्याय” या “शोषण” बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उनके निर्देश पर उप-जिलाधिकारियों (एसडीएम) की अध्यक्षता में विशेष ऑडिट टीमें गठित की गईं, जिन्होंने आठ दिनों के भीतर 600 से अधिक स्कूलों का ऑडिट पूरा किया। ऑडिट में कई स्कूलों द्वारा नियमों का उल्लंघन पाया गया, जिसमें बिना अनुमति फीस बढ़ाना, पारदर्शिता की कमी, और अभिभावकों को परेशान करना शामिल है।
शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “हमने 600 स्कूलों की ऑडिट रिपोर्ट मंगवाई है, और जिन स्कूलों ने नियम तोड़े हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई तय है। डीपीएस द्वारका सहित 11 स्कूलों को शो कॉज नोटिस जारी किए गए हैं।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम, 1973 के तहत गैर-अनुपालक स्कूलों की मान्यता निलंबित या रद्द की जा सकती है, और उनके प्रबंधन को सरकार द्वारा अपने नियंत्रण में लिया जा सकता है।
सीएम रेखा गुप्ता ने कहा, “किसी भी स्कूल को अभिभावकों को परेशान करने या छात्रों को गलत तरीके से निकालने का अधिकार नहीं है। हम शिक्षा को व्यवसाय नहीं बनने देंगे।” उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि फीस वृद्धि से संबंधित डेटा शिक्षा निदेशालय की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाए, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
राजनीतिक विवाद और आरोप-प्रत्यारोप
इस मुद्दे ने दिल्ली में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी आम आदमी पार्टी (आप) के बीच तीखी राजनीतिक बहस को जन्म दिया है। आप ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने निजी स्कूलों को मनमानी करने की छूट दी है, जिससे “शिक्षा माफिया” को बढ़ावा मिला है। आप के राष्ट्रीय संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दावा किया कि उनके 10 साल के शासन में निजी स्कूलों को मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने की अनुमति नहीं दी गई थी। उन्होंने डीपीएस द्वारका में बच्चों के साथ कथित दुर्व्यवहार की निंदा की, जहां बच्चों को बकाया फीस के कारण लाइब्रेरी में बिठाया गया।
विपक्ष की नेता अतिशी ने एक पत्र में सीएम रेखा गुप्ता से इस मुद्दे पर हस्तक्षेप की मांग की और आरोप लगाया कि शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने 6 अप्रैल 2025 को निजी स्कूल प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की थी, जिसमें स्कूलों को आश्वासन दिया गया कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। आप के नेता सौरभ भारद्वाज और मनीष सिसोदिया ने भी भाजपा पर “शिक्षा माफिया” को संरक्षण देने का आरोप लगाया। सिसोदिया ने कहा कि 2024 में दिल्ली हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 2004 के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले अनुमति लेना अनिवार्य था, और इसके लिए आप सरकार की गलतियों को जिम्मेदार ठहराया।
दूसरी ओर, दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेव ने आप के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि आप सरकार ने एक साल में केवल 75 स्कूलों का ऑडिट किया था, जबकि भाजपा सरकार ने कुछ ही दिनों में 600 स्कूलों की जांच पूरी की। उन्होंने आप पर “झूठा राजनीतिक नैरेटिव” बनाने का आरोप लगाया।
अभिभावकों का आंदोलन और मांगें
अभिभावकों ने इस मुद्दे पर सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किए। कई स्कूलों के बाहर प्रदर्शन हुए, और शिक्षा निदेशालय के कार्यालय के सामने भी अभिभावकों ने धरना दिया। अभिभावक पंकज गुप्ता, जिनका बेटा महाराजा अग्रसेन मॉडल स्कूल में पढ़ता है, ने कहा, “स्कूल हर साल फीस बढ़ा रहे हैं, लेकिन सुविधाओं में कोई सुधार नहीं है। सरकार को ऑडिट की प्रक्रिया को पारदर्शी करना चाहिए।”
अभिभावक एक फेडरेशन बनाने की योजना बना रहे हैं, जो 50 स्कूलों को एकजुट करेगा, और वे कानूनी कार्रवाई पर भी विचार कर रहे हैं। उनकी प्रमुख मांगें हैं:
-
फीस वृद्धि को तत्काल वापस लिया जाए।
-
स्कूलों के वित्तीय खातों का सार्वजनिक ऑडिट हो।
-
नियम तोड़ने वाले स्कूलों के खिलाफ कठोर कार्रवाई हो।
-
अभिभावकों को ऑडिट प्रक्रिया में शामिल किया जाए।
दीर्घकालिक चुनौतियां और समाधान
यह घटना दिल्ली में निजी स्कूलों की फीस नीतियों और शिक्षा के व्यवसायीकरण से जुड़ी गहरी समस्याओं को उजागdashर करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि दीर्घकालिक समाधान के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:
-
नियामक ढांचा: निजी स्कूलों की फीस वृद्धि के लिए एक स्पष्ट और पारदर्शी नियामक ढांचा बनाया जाए।
-
नियमित ऑडिट: सभी निजी स्कूलों के वित्तीय खातों का वार्षिक ऑडिट अनिवार्य हो, और परिणाम सार्वजनिक किए जाएं।
-
अभिभावक समितियां: प्रत्येक स्कूल में अभिभावक-शिक्षक समितियों को फीस निर्धारण में शामिल किया जाए।
-
कानूनी कार्रवाई: नियम तोड़ने वाले स्कूलों के खिलाफ फास्ट-ट्रैक कोर्ट में सुनवाई हो।
-
सार्वजनिक शिक्षा का सशक्तिकरण: सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार कर निजी स्कूलों पर निर्भरता कम की जाए।
