पीएम ने किया ‘सौराष्ट्र-तमिल संगमप्रशस्ति’ पुस्तक का विमोचन
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 दिवसीय सौराष्ट्र तमिल संगमम कार्यक्रम को संबोधित किया | मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए समापन समारोह को संबोधित किया। इस दौरान पीएम मोदी ने श्री सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित ‘सौराष्ट्र-तमिल संगमप्रशस्ति’ पुस्तक का विमोचन किया।बता दें कि इस 10 दिवसीय संगमम में 3000 से अधिक लोग एक विशेष ट्रेन सौराष्ट्रियन तमिल से सोमनाथ आए थे।
पीएम मोदी ने अपने संबोधन के दौरान कहा, ‘मैं गद-गद हृदय से आज तमिलनाडु से आए अपनों के बीच वर्चुअली उपस्थित हूं। इतनी बड़ी संख्या में आप सब अपने पूर्वजों की धरती पर आए हैं, अपने घर आए हैं…आपके चेहरों की खुशी को देखकर मैं कह सकता हूं कि आप अनेक यादें और भावुक अनुभव यहां से लेकर जाएंगे। इस महान सौराष्ट्र-तमिल संगमम के माध्यम से, हम अतीत की अमूल्य स्मृतियों को फिर से देख रहे हैं, वर्तमान की आत्मीयता और अनुभवों को देख रहे हैं, और भविष्य के लिए संकल्प और प्रेरणा ले रहे हैं!
पीएम मोदी ने कहा कि इस समय जब हमारे देश की एकता सौराष्ट्र-तमिल संगमम जैसे महान त्योहारों के माध्यम से आकार ले रही है, सरदार साहब हम सभी को आशीर्वाद भेज रहे होंगे। देश की एकता का यह उत्सव उन लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को भी पूरा कर रहा है, जिन्होंने ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।
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भारत विविधता का जश्न मनाने वाला देश: पीएम मोदी….
पीएम मोदी ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो विविधता का जश्न मनाता है; हम विभिन्न भाषाओं, विभिन्न कलाओं, विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और रीति-रिवाजों का जश्न मनाते हैं। हमारा देश उनकी आस्था से लेकर आध्यात्मिकता तक विविधता को समाहित करता है और उसका जश्न मनाता है! ऐसी है हमारे देश की खूबसूरती। भारत विविधता को विशिष्टता के रूप में जीने वाला देश है। हम जानते हैं कि अलग-अलग धाराएं जब साथ आती हैं तो संगम का सृजन होता है। हम सदियों से ‘संगम’ की परंपरा का पोषण करते आ रहे हैं। जैसे नदियों के मिलने से संगम का निर्माण होता है, वैसे ही हमारे कुंभ हमारी विविधताओं के विचारों और संस्कृतियों के संगम रहे हैं। ऐसी हर चीज ने हमें, हमारे देश को आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसी है संगम की शक्ति!
प्रधानमंत्री ने कहा, हमें सांस्कृतिक टकराव नहीं तालमेल पर बल देना है। हमें संघर्षों को नहीं संगमों और समागमों को आगे बढ़ाना है। हमें भेद नहीं खोजने… भावनात्मक संबंध बनाने हैं। यही भारत की वो अमर परंपरा है जो सबको साथ लेकर समावेश के साथ आगे बढ़ती है, सबको स्वीकार कर आगे बढ़ती है।