आजादी विशेष: नाम सुशील, जिगर था फौलादी, 22 साल में दे दिया था बलिदान

 आजादी विशेष: नाम सुशील, जिगर था फौलादी, 22 साल में दे दिया था बलिदान

कोलकाता, 05 अगस्त। मां भारती की आजादी का पर्व चल रहा है। हमारी अमर भूमि की स्वतंत्रता के लिए लाखों क्रांतिकारियों ने हंसते-हंसते जीवन सुमन समर्पित कर दिया था तब हमें आजादी मिली। कई क्रांतिकारियों के बारे में तो पूरी दुनिया जानती है लेकिन कई ऐसे गुमनाम वीर रहे हैं जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया और अपना सब कुछ समर्पित कर दिया लेकिन इतिहास में उन्हें जगह नहीं मिली। नई पीढ़ी उनसे अनभिज्ञ है। ऐसे ही महान गुमनान क्रांतिकारियों के बारे में अपने पाठकों के समक्ष लाने का बीड़ा हिन्दुस्थान समाचार ने उठाया है। उनमें से एक थे बंगाल के लाल सुशील कुमार सेन, जिनकी बहादुरी ऐसी थी कि बंगाल के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी नेता सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने उन्हें सत्येंद्र नाथ बोस स्वर्ण पदक से सम्मानित किया था।

सुशील कुमार सेन का जन्म 1892 में कोलकाता के सियालदह में हुआ था। यह वह समय था जब देश में आजादी की लड़ाई एक बार फिर परवान चढ़ रही थी और क्रांतिकारी आंदोलन तीव्र हो गया था। तरूण सुशील कुमार के मन में बचपन से ही उसका प्रभाव पड़ने लगा और छात्र जीवन में आते ही वे क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए थे। कलकत्ता के नेशनल कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करते समय ही सुरेंद्रनाथ बनर्जी और अन्य क्रांतिकारियों के आह्वान पर आंदोलन का हिस्सा बनने लगे थे।

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अंग्रेजी सिपाही को मार-मार कर कर दिया था लहूलुहान

इतिहासकार नागेंद्र सिंह बताते हैं कि उस दौरान छात्रों का बड़ा हुजूम न्यायालय के सामने विरोध प्रदर्शन करने पहुंचा तो अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने के लिए सैकड़ों सशस्त्र पुलिसकर्मियों को भेजा। उसी में एक अंग्रेज सार्जेंट विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर बर्बर अत्याचार कर रहा था। सुशील कुमार सेन ने उस सार्जेंट को जमीन पर पटक कर अस्त्र-शस्त्र छीन लिया और उसे इतना पीटा कि वह लहूलुहान होकर भागने को मजबूर हो गया। उनकी बहादुरी पर खुश होकर बंगाल के तत्कालीन राष्ट्रवादी नेता सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने उन्हें सत्येंद्र नाथ बोस स्वर्ण पदक भेजा।

इस घटना के बाद किंग्सफोर्ड की अदालत ने सुशील कुमार पर मुकदमा चलाया और 15 बेंत लगाने की सजा दी। किंग्सफोर्ड उस समय देशभक्त क्रांतिकारियों को कठिन सजा देने के लिए कुख्यात था। इसके बाद किंग्सफोर्ड की हत्या की योजना बनाई जाने लगी और हथियार जुटाने का काम सुशील कुमार सेन को सौंपा गया। लेकिन 1908 में अलीपुर बम ब्लास्ट केस में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। तब सुशील कुमार की आयु मात्र 16 साल थी। सुशील कुमार के साथ कन्हाई लाल भट्टाचार्य, सत्येंद्र नाथ बसु, उल्लासकर दत्त, उपेन बनर्जी समेत अन्य क्रांतिकारियों को पकड़ा गया था। इन्हें काल कोठरी में सात साल तक जेल की यातनाएं सहनी पड़ीं।

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कलकत्ता पुलिस इंस्पेक्टर को गोलियों से भून दिया था

जेल से रिहा होने के बाद सुशील कुमार सेन ने कलकत्ता पुलिस के इंस्पेक्टर सुरेश मुखर्जी को गोलियों से भून दिया। पुलिस एड़ी चोटी का जोर लगाती रही लेकिन सुशील को पकड़ नहीं पाई। इसके बाद गदर पार्टी के आह्वान पर हथियारों की आपूर्ति के लिए एक राजनीतिक डकैती की योजना बनाई गई। 30 अप्रैल, 1915 को नदिया जिले के दौलतपुर थाना के प्रागपुर गांव में अंग्रेजों के सहायक रहे साहूकार हरिनाथ साहा की दुकान में राजनीतिक डकैती डाली गई। इसमें सुशील कुमार मुख्य भूमिका में थे। डकैती के बाद क्रांतिकारी नाव में सवार होकर लौट रहे थे तभी पुलिस ने फायरिंग कर दी। मुठभेड़ में सुशील कुमार को गोली लग गई और वह नाव पर ही बलिदान हो गए। तब उनकी उम्र महज 22 साल थी।

सुशील के साथी आसू लाहिरी, गोपेन रॉय, क्षितिज सान्याल और फनी राय ने उनके पार्थिव शरीर को हुगली नदी में ससम्मान प्रवाहित किया। इसके बाद पुलिस ने सभी को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें कालापानी की सजा दी गई।

सुशील कुमार सेन का बलिदान आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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