विश्व बैंक से पाकिस्तान को 20 अरब डॉलर का ऋण: जून में फैसला, भारत ने उठाई आपत्ति
भारत ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक सहायता की समीक्षा की मांग की, पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पिछले कुछ वर्षों से गंभीर संकट का सामना कर रही है। बार-बार के आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और प्राकृतिक आपदाओं ने देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया है। इस बीच, विश्व बैंक ने पाकिस्तान के लिए 2025-2035 की अवधि के लिए 20 अरब डॉलर के ऋण पैकेज की घोषणा की है, जिसे लेकर भारत ने कड़ा रुख अपनाया है। इस लेख में हम इस खबर के विभिन्न पहलुओं, भारत की प्रतिक्रिया, और इसके क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
विश्व बैंक का 20 अरब डॉलर का ऋण पैकेज
विश्व बैंक ने जनवरी 2025 में “पाकिस्तान कंट्री पार्टनरशिप फ्रेमवर्क 2025-35” के तहत पाकिस्तान को 20 अरब डॉलर के ऋण पैकेज को मंजूरी दी थी। यह एक अभूतपूर्व 10-वर्षीय योजना है, जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और दीर्घकालिक विकास को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है। इस पैकेज में 14 अरब डॉलर विश्व बैंक की रियायती शाखा, इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (IDA) से और 6 अरब डॉलर इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (IBRD) से प्रदान किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, विश्व बैंक की दो अन्य शाखाएं, इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन (IFC) और मल्टीलेटरल इनवेस्टमेंट गारंटी एजेंसी (MIGA), निजी क्षेत्र में 20 अरब डॉलर के निवेश को सुविधाजनक बनाएंगी, जिससे कुल पैकेज 40 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।
इस फ्रेमवर्क का उद्देश्य पाकिस्तान के सबसे उपेक्षित क्षेत्रों, जैसे कि स्वास्थ्य, शिक्षा, और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करना है। विशेष रूप से, यह योजना बच्चों में कुपोषण (38% बच्चे कुपोषण से प्रभावित), शिक्षा में कमी (25.4 मिलियन बच्चे स्कूल से बाहर), और जलवायु जोखिमों से सुरक्षा जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित है। यह कार्यक्रम 2026 से शुरू होगा और अगले 10 वर्षों तक चलेगा, जिसमें प्रति वर्ष 1.5 से 2 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
जून 2025 में फैसला: क्या है स्थिति?
हालांकि विश्व बैंक ने इस पैकेज को जनवरी 2025 में मंजूरी दे दी थी, लेकिन जून 2025 में इसकी प्रगति और कार्यान्वयन की समीक्षा की जाएगी। विश्व बैंक के दस्तावेजों के अनुसार, इस ऋण की सफलता पाकिस्तान की वित्तीय स्थिति, सतत विकास वित्त नीति (Sustainable Development Finance Policy), और ऋण भेद्यता संकेतकों पर निर्भर करेगी। इसके अलावा, पाकिस्तान में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता और बलूचिस्तान व खैबर-पख्तूनख्वा जैसे प्रांतों में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति को विश्व बैंक ने “महत्वपूर्ण जोखिम” के रूप में चिह्नित किया है।
जून 2025 में होने वाली समीक्षा में यह तय किया जाएगा कि क्या यह ऋण कार्यक्रम निर्धारित लक्ष्यों के अनुरूप चल रहा है। विश्व बैंक के दक्षिण एशिया उपाध्यक्ष मार्टिन रायसर इस दौरान इस्लामाबाद का दौरा कर सकते हैं ताकि कार्यक्रम के कार्यान्वयन पर चर्चा की जा सके।
भारत की प्रतिक्रिया: क्यों उठाई आपत्ति?
भारत ने विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों, जैसे कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और एशियाई विकास बैंक (ADB), से पाकिस्तान को दी जाने वाली वित्तीय सहायता की समीक्षा करने की मांग की है। भारत का तर्क है कि पाकिस्तान ने बार-बार अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहायता का दुरुपयोग किया है, विशेष रूप से सैन्य और आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए।
मई 2025 में, IMF ने पाकिस्तान के लिए 7 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज के तहत 1 अरब डॉलर और रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी फेसिलिटी (RSF) के तहत 1.4 अरब डॉलर की मंजूरी दी थी। भारत ने इस फैसले पर कड़ा विरोध जताया और IMF की कार्यकारी समिति में मतदान से खुद को अलग रखा। भारत ने तर्क दिया कि पाकिस्तान का पिछले 35 वर्षों में 28 IMF कार्यक्रमों में हिस्सा लेने का रिकॉर्ड खराब रहा है, और इन फंडों का उपयोग सैन्य गतिविधियों और सीमा पार आतंकवाद के लिए हो सकता है।
भारत ने विशेष रूप से अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का हवाला दिया, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। भारत ने दावा किया कि इस हमले में पाकिस्तान का हाथ था, और ऐसी स्थिति में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहायता देना गलत संदेश देता है। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने IMF की कार्यकारी समिति की बैठक में इस मुद्दे को उठाया और कहा कि पाकिस्तान को बार-बार दी जाने वाली आर्थिक सहायता उसकी आतंकवाद-प्रायोजित गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकती है।
क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति और विश्व बैंक के इस ऋण पैकेज का क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर व्यापक प्रभाव हो सकता है। पाकिस्तान पहले से ही IMF के 7 अरब डॉलर के बेलआउट प्रोग्राम पर निर्भर है और चीन, सऊदी अरब, और कतर जैसे देशों से भी बड़े पैमाने पर ऋण ले चुका है। उसका बाहरी ऋण 2024 में 130 अरब डॉलर तक पहुंच गया था, और प्रति व्यक्ति ऋण का बोझ लगभग 45,338 रुपये है।
भारत का मानना है कि इस तरह की वित्तीय सहायता न केवल पाकिस्तान की सैन्य गतिविधियों को बढ़ावा दे सकती है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी खतरे में डाल सकती है। विशेष रूप से, भारत और पाकिस्तान के बीच हाल के वर्षों में तनाव बढ़ा है, और भारत का मानना है कि विश्व बैंक और IMF जैसे संस्थानों को ऐसी सहायता देने से पहले अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।
विश्व बैंक की रणनीति और चुनौतियां
विश्व बैंक की यह योजना पाकिस्तान के लिए एक नई दिशा की ओर इशारा करती है। यह अल्पकालिक समायोजन कार्यक्रमों के बजाय दीर्घकालिक और स्थिर निवेश पर केंद्रित है। यह छह प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देगी: बच्चों में कुपोषण कम करना, शिक्षा में सुधार, जलवायु लचीलापन, पर्यावरण का डीकार्बनाइजेशन, वित्तीय स्थान का विस्तार, और निजी निवेश को बढ़ावा देना।
हालांकि, विश्व बैंक ने स्वयं इस बात को स्वीकार किया है कि इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन में कई चुनौतियां हैं। पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता, विशेष रूप से बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वा में बढ़ती हिंसा, इस योजना की सफलता को प्रभावित कर सकती है। इसके अलावा, संघीय और प्रांतीय सरकारों के बीच समन्वय की कमी और ऊर्जा सब्सिडी जैसे वित्तीय रूप से गैर-टिकाऊ नीतिगत निर्णय भी जोखिम पैदा करते हैं।
निष्कर्ष
विश्व बैंक का 20 अरब डॉलर का ऋण पैकेज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और दीर्घकालिक विकास को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। हालांकि, भारत की चिंताएं और क्षेत्रीय तनाव इस पैकेज के कार्यान्वयन और प्रभाव को जटिल बना सकते हैं। जून 2025 में होने वाली समीक्षा इस बात का निर्धारण करेगी कि यह योजना कितनी प्रभावी रही है और क्या इसे निर्धारित लक्ष्यों के अनुरूप लागू किया जा रहा है।
भारत ने विश्व बैंक और IMF जैसे संस्थानों से अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग की है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वित्तीय सहायता का उपयोग विकास के लिए हो, न कि सैन्य या आतंकवादी गतिविधियों के लिए। इस स्थिति पर क्षेत्रीय और वैश्विक समुदाय की नजर बनी रहेगी, क्योंकि यह न केवल भारत-पाकिस्तान संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि दक्षिण एशिया में स्थिरता और विकास की दिशा भी तय करेगा।
