नाव पर सवार होकर आ रही हैं मां दुर्गा, बहुत खास हैं इस बार के नवरात्र
संवत्सर 2080 के प्रथम दिन वर्ष प्रतिपदा को वासंतिक नवरात्रि आरंभ होते हैं। यह हिंदुओं का नव संवत्सर है। जब प्रकृति में परिवर्तन आरंभ होता है। मौसम में न अधिक नमी होती है ना ज्यादा गर्मी होती है। बसंत ऋतु का अंत होने वाला होता है। नई फसलों का आगाज होता है। ऐसे शुभ समय में भारतीय नववर्ष का आरंभ होगा और इसी दिन वासंतिक नवरात्रि भी आरंभ होंगे। नौ दिन चलने वाला मां भगवती का यह आयोजन इस वर्ष विशिष्ट मुहूर्त लेकर आ रहा है। इस वर्ष कोई भी नवरात्र कम या अधिक नहीं है। ना तो कोई तिथि घटी है और ना ही बढ़ी है। 22 मार्च को बुधवार के दिन नवरात्र आरंभ होने से मां दुर्गा माता नाव पर बैठकर आती हैं। जिस कारण यह वर्षपर्यन्त पर्याप्त वर्षा एवं धनधान्य से पूर्ण होने की संभावना है। शुभ योग में आने वाली नवरात्रि अपने साधकों के लिए बहुत शुभ है। नवरात्रि के दिन हिंदू परिवारों में घर-घर मां भगवती का आवाह्न एवं कलश स्थापना की जाती है। साधक मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए पूजा एवं व्रत आदि करते हैं।
वर्ष के प्रारंभ में अर्थात 22 मार्च को कलश स्थापना और भगवती के आह्वान का शुभ मुहूर्त है। प्रातःकाल 6:04 बजे से 7:30 बजे तक मीन लग्न, उसके पश्चात 9:06 तक मिथुन लग्न और 11:00 बजे तक वृषभ लग्न है। उपरोक्त तीनों लग्न मां भगवती के आह्वान एवं कलश स्थापना के लिए शुभ हैं। इसके पश्चात सिंह लग्न 15:34 बजे से 17:51 बजे तक रहेगा। यदि प्रातःकाल किसी कारणवश घट स्थापना नहीं हो सकी तो इस समय में भी घट स्थापना कर सकते हैं।
मां भगवती आह्वान और घट स्थापना करने के लिए मिट्टी कलश,जौ बोने के लिए कोई पात्र, मिट्टी,जौ,गंगाजल, फूल, मिष्ठान, फल, रोली, चावल-कलावा, प्रसाद भोग तैयार कर लें। प्रातः सूर्य उदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत होकर मंदिर में साफ सफाई करें। अन्य स्थान पर कोई पटरा या चौकी रखकर उस पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवती मां की मूर्ति रखें। ध्यान रहे कि कलश स्थापना अथवा भगवती मां के आह्वान में भगवती मां का मुख पश्चिम की ओर हो और आपका मुंह उनके सामने पूरब की ओर हो। आप अपने बांयी और कलश स्थापना करें और दांयी और दीपक जलाकर रखें। सर्वप्रथम मिट्टी के पात्र में मिट्टी भरकर थोड़ा गंगाजल छिड़कें और उसमें जौ के कुछ दाने बिखेर दें। इसके बाद मिट्टी के कलश अथवा तांबें के लोटे में गंगाजल एवं शुद्ध जल भरें। कलावे से बांधे और उसके ऊपर आम के पत्ते अथवा अशोक के पत्ते रखें। उसके ऊपर चुन्नी अथवा अंगोछे में नारियल लपेट कर रखें। ऊपर से पुष्पमाला लगाएं दें। इसी प्रकार पटरी पर अथवा चौकी पर पीला अथवा लाल कपड़ा बिछाकर मां भगवती की प्रतिमा की स्थापना करें। चुन्नी औढाएं और पुष्पमाला डालें। तत्पश्चात संकल्प लेकर चावल, पुष्प, कलावा, रोली, चंदन आदि से उनकी आराधना करें। पूजा कर भोग लगाएं। जो साधक अखंड दीपक जलाते हैं वे अपने सीधे हाथ की ओर अर्थात दुर्गा मां के बाएं हाथ की ओर दीपक स्थापित करें।