• July 27, 2024

सेना की बूटों तले घिसटता पाकिस्तान- अरविंद जयतिलक

 सेना की बूटों तले घिसटता पाकिस्तान- अरविंद जयतिलक

पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की इस्लामाबाद के हाईकोर्ट परिसर से गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान जल रहा है। उनकी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के कार्यकर्ता सड़कों पर हैं। राजधानी इस्लामाबाद से लेकर लाहौर, कराची, गुजरांवाला, क्वेटा, मुल्तान, पेशावर और मरदान तक हाहाकार मचा है। सेना के बड़े-बड़े अधिकारियों के घरों पर हमले हो रहे हैं। पाकिस्तानी वायुसेना के मियांवाली एयरबेस के एक विमान को आग लगा दी गयी है। देश भर में सेना और सरकार के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन के कारण हालात गृहयुद्ध जैसे बन चुके हैं। हालात को संभालने के लिए बड़े-बड़े शहरों में धारा 144 लगा दी गयी है। लेकिन हालात बदतर होते जा रहे हैं। सेना और सरकार की मानें तो इमरान खान को अल-कादिर ट्रस्ट से जुड़े केस में गिरफ्तार किया गया है। जानना आवश्यक है कि ब्रिटेन ने मनी लाॅन्डिंग केस में पाकिस्तान के जमीन कारोबारी मलिक रियाज के 60 अरब पाकिस्तानी रुपए जब्त किए थे। इन रुपयों को पाकिस्तानी सरकार को ट्रांसफर किया जाना था। लेकिन इमरान खान ने इस पैसे को सरकारी खजाने में जमा कराने के बजाए कारोबारी को वापस लेने की इजाजत दे दी। बदले में कारोबारी ने इमरान के अल-कादिर ट्रस्ट को विश्वविद्यालय खोलने के लिए झेलम के सोहवा में 23.1 हेक्टेयर और इस्लामाबाद के पास 12.1 हेक्टेयर जमीन दी। हालांकि इमरान खान और उनके समर्थक इसे साजिश करार दे रहे हैं।

उनका कहना है कि शहबाज सरकार के आने के बाद जानबुझकर इमरान खान पर एक सैकड़ा से अधिक मुकदमें दर्ज किए गए हैं। इमरान खान के समर्थकों का कहना है कि चूंकि उन्होंने सेना को कठघरे में खड़ा किया है इसलिए गिरफ्तारी हुई है। बहरहाल गौर करें तो सरकार गंवाने के बाद से ही इमरान खान सेना पर हमलावर हैं। उन्होंने हाल ही में सेना के एक बड़े अफसर फैसल नसीर पर अपने कत्ल की साजिश का आरोप लगाया है। इससे सेना बेहद नाराज है और वह इमरान खान को सबक सिखाने के लिए तैयार है। मौजूदा सरकार का सेना को समर्थन हासिल है। ऐसे में अगर सरकार और सेना इमरान खान को निपटाने के लिए हाथ मिलाती है तो तनिक भी आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए भी कि इमरान खान सेना और सरकार दोनों की आंख की किरकिरी बने हुए हैं। इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद एक वीडियो जारी हुआ है जिसमें वह अवाम से कहते सुने जा रहे हैं कि-‘हो सकता है कि मुझे अब आप लोगों को दोबारा संबोधित करने का मौका न मिल पाए।’एक किस्म से उन्होंने आशंका जाहिर किया है कि उनकी हत्या हो सकती है। पाकिस्तान के मौजूदा हालात पर नजर डालें तो शहबाज सरकार अवाम के बीच बुरी तरह अलोकप्रिय हो चुकी है।

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अर्थव्यवस्था बदहाली के कगार पर है। उत्पादन और खपत दोनों में जबरदस्त गिरावट है। रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। लाखों परिवारों के सामने भूखमरी की स्थिति है। आटा, दाल और चावल जैसी रोजमर्रा की वस्तएं खरीदने के लिए लोगों को सोचना पड़ रहा है। हालात इतने खराब हैं कि रोटी के लिए लोग जान गंवा रहे हैं। उधर, आयात से भरे शिपिंग कंटेनर बंदरगाहों पर जमा हो रहे हैं। क्योंकि खरीदार उनके लिए भुगतान के लिए डाॅलर सुरक्षित रखने में विफल साबित हो रहे हैं। रोलिंग ब्लैक आउट और विदेशी मुद्रा की भारी कमी के कारण कल-कारखने के पहिए ठप्प पड़ते जा रहे हैं। पेट्रोल और डीजल की कीमतें 250 रुपए प्रति लीटर के पार पहुंच चुकी है। मिट्टी के तेल की कीमत भी 190 रुपए प्रति लीटर के आसपास है। दूसरी ओर बिजली की आपूर्ति ठप्प पड़ती जा रही है। सड़कों पर दंगे जैसे हालत हंै। गरीबी और बेरोजगारी रिकार्ड स्तर पर है। युवाओं की आबादी का बड़ा हिस्सा नौकरी की तलाश में देश छोड़ रहा है। बीते साल 10 लाख युवाओं ने पाकिस्तान से पलायन किया है। गरीबी के कारण स्थिरता और सुरक्षा देने वाली सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था चरमरा उठी है। ऐसे में संभव है कि सेना राजनीतिक-आर्थिक अस्थिरता को खत्म करने के लिए पाकिस्तान की कमान को संभाल सकती है। पाकिस्तान का इतिहास बताता है कि सेना हुक्मरानों को निपटाने में देर नहीं लगाती है। पाकिस्तान में जम्हूरियत इतना कमजोर है कि अपनी आजादी के 9 साल बाद तक वह संविधान तक नहीं बना पाया। तब तक चार प्रधानमंत्री, चार गवर्नर जनरल और एक राष्ट्रपति देश पर शासन कर चुके थे। 1956 में पाकिस्तान गणतंत्र बना और राष्ट्रपति पद का आविष्कार हुआ। रिपब्लिकन पार्टी के इस्कंदर मिर्जा पहले राष्ट्रपति बने और उन्होंने अयूब खान को चीफ आॅफ आर्मी नियुक्त किया। यहीं से सेना ने तख्ता पलट का खेल शुरु किया।

7 अक्टुबर, 1958 को जनरल अयूब खान ने राष्ट्रपति मेजर जनरल इस्कंदर मिर्जा की सरकार का तख्ता पलट कर देश में माॅर्शल लाॅ लागू कर दिया। अयूब खान ने जुल्फीकार अली भुट्टो को देश का विदेशमंत्री बना दिया। लेकिन दोनों के बीच इस कदर विवाद बढ़ा कि जुल्फीकार अली भुटटो को 1966 में इस्तीफा देना पड़ा। अयूब खान ने पाकिस्तान पर 9 साल शासन किया और सेना को इस कदर ताकतवर बना दिया कि वह जब चाहे जम्हूरियत को रौंद सकती है। सेना की बढ़ती ताकत का खामियाजा खुद अयूब खान को भी भुगतना पड़ा। 1969 में याहया खान ने तख्तापलट कर अयूब खान को सत्ता से बेदखल कर दिया। 1973 में पाकिस्तानी कानून के तहत जब देश एक संसदीय गणतंत्र बना तो तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फीकार अली भुट्टो प्रधानमंत्री बनने के लिए राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन चार साल बाद ही 4 जुलाई, 1977 को सेनाध्यक्ष जियाउल हक ने जुल्फीकार अली भुट्टो की सरकार का तख्ता पलट कर दिया। उसने देश में मार्शल लागू कर जुल्फीकार अली भुट्टो को फांसी पर चढ़ा दिया। 1988 में जियाउल हक की एक विमान हादसे में मौत हो गयी। 1997 के आमचुनाव में नवाज शरीफ की जीत हुई और वे प्रधानमंत्री बने। तब जनरल मुशर्रफ ने सत्ता पर कब्जा के लिए कारगिल युद्ध का दांव खेला और 1999 में तख्तापलट कर नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल कर दिया।

नवाज शरीफ को एक बार फिर पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला। उस समय सेनाध्यक्ष जनरल राहिल शरीफ थे। नवाज शरीफ जनरल राहिल शरीफ के समक्ष एक ऐसे निरीह, बेबस और कमजोर प्रधानमंत्री साबित हुए जो अपनी शर्तों पर दूसरे देशों से बातचीत भी नहीं कर सकते थे। कमोवेश ऐसा ही हालात इमरान खान की भी रही। सभी फैसले बाजवा ही लेते रहे। देखा गया कि जब इमरान खान गद्दी से हाथ धो बैठे तब उन्हें भारत की विदेशनीति पसंद आयी। उधर, सेनाध्यक्ष बाजवा भी कश्मीर मसले पर भारत से बातचीत का राग अलापते रहे। दरअसल वैश्विक पटल पर दोनों ही अपनी छवि दुरुस्त करना चाहते थे। इसका मुख्य कारण था विश्व भर में भारत की बढ़ती साख और रुस-अमेरिका से बढ़ती निकटता। गौर करें तो कश्मीर मसले पर पाकिस्तान को न तो रुस से समर्थन मिला और न ही अमेरिका से। मौजूदा सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर की महत्वकांक्षा सर्वविदित है। वह देश में बढ़ती अराजकता की आड़ लेकर अपनी पूर्ववर्ती जनरलों की तरह पाकिस्तान की जम्हूरियत को सेना की बूटों के नीचे ला सकते हैं। अब सवाल यह है कि पाकिस्तान का भविष्य क्या होगा? क्या सेना का इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद अगला निशाना शहबाज सरकार होगी? इससे इंकार नहीं किया जा सकता। दो दशक पहले प्रसिद्ध पत्रकार और फ्राइडे टाइम्स के संपादक नजम सेठी ने कहा था कि ‘पचास वर्ष बाद भी पाकिस्तानी यह तय नहीं कर पाए हैं कि एक राष्ट्र के रुप में वे कौन हैं, किसमें विश्वास रखते हैं और किस दिशा में जाना चाहते हैं। वे यह तय नहीं कर पाए हैं कि दक्षिण एशिया के अंग हैं या मध्य-पूर्व के। सऊदी अरब और ईरान जैसे कट्टर इस्लामी हैं या जार्डन व मिश्र जैसे उदार राज्य।’ गौर करें तो आज भी पाकिस्तान की शिनाख्त कमोवेश वैसी ही है। उसके हुक्मरान पाकिस्तान को किस दिशा में ले जाना चाह रहे हैं, उन्हें खुद पता नहीं। नतीजा सामने है। पाकिस्तानी हुक्मरानों की विफलता से जम्हूरियत को बार-बार लहूलुहान होना पड़ रहा है।

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अरविंद जयतिलक

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