• October 17, 2025

सम्भल में जो संभलकर चलेगा, वही पहनेगा जीत का हार

 सम्भल में जो संभलकर चलेगा, वही पहनेगा जीत का हार

शासकों और सम्राटों का घर माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के सम्भल जिले का इतिहास समृद्ध रहा है। सतयुग में इस जगह का नाम सत्यव्रत हुआ करता था, फिर त्रेता युग में महदगिरि और द्वापर युग में पिंगल हुआ। कलयुग में सम्भल नाम पड़ा और यह अभी तक यही नाम बना हुआ है। सम्भल में बनने वाले हस्तशिल्प उत्पाद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी मशहूर हैं। सम्भल को समाजवादी पार्टी (सपा) संस्थापक मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि माना जाता है। सम्भल लोकसभा उप्र की सीट नंबर-8 है। तीसरे चरण में सात मई को यहां मतदान होगा।

सम्भल लोकसभा सीट का इतिहास

सम्भल सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो कभी सम्भल मुरादाबाद का हिस्सा हुआ करता था। यह सीट वर्ष 1977 में अस्तित्व में आई थी। मुस्लिम और यादव बाहुल्य सम्भल लोकसभा सीट पर सपा का वर्चस्व रहा है। यहां से उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी 2 बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं जबकि एक बार उनके भाई राम गोपाल यादव भी चुनाव जीत चुके हैं। इस सीट को कांग्रेस, जनता दल, भारतीय लोकदल, सपा, बसपा और भाजपा के प्रत्याशी जीत चुके हैं। 2014 के चुनाव में पहली बार भाजपा ने अपना खाता यहां खोला था। 2019 के चुनाव में सपा इस सीट से जीती। कांग्रेस को आखिरी बार यहां पर 1984 में जीत मिली थी।

2019 आम चुनाव के नतीजे

2019 के आम चुनाव में सपा प्रत्याशी डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क ने 658006 (55.58 फीसदी) वोट पाकर जीत हासिल की थी। दूसरे नंबर पर भाजपा के परमेश्वर लाल सैनी को 483180 (40.82 फीसदी) वोट मिले थे। 2014 के चुनाव में यह सीट भाजपा के सत्य पाल सैनी ने जीती थी। दूसरे नंबर सपा के डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क रहे थे।

किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार

भाजपा ने एक बार फिर से परमेश्वरलाल सैनी पर विश्वास जताया है। सपा के घोषित प्रत्याशी डॉ. शफीकुर्रहमान की बीमारी से मौत के बाद उनके पोते कुंदरकी विधायक जियाउर्रहमान बर्क अब मैदान में हैं। बसपा ने पूर्व विधायक शौलत अली पर दांव लगाया है।

सम्भल सीट का जातीय समीकरण

लोकसभा चुनाव 2024 में संभल सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 18 लाख 92 हजार 360 है, जिनमें पुरुष वोटरों की संख्या 10 लाख 9 हजार 956 है, जबकि महिला वोटरों की संख्या 8 लाख 82 हजार 282 है, वहीं ट्रांसजेंडर वोटर 122 हैं। इस सीट में करीब साढ़े 8 लाख मुस्लिम वोटर हैं। जबकि अनुसूचित जाति के करीब 2.75 लाख, यादव डेढ़ लाख और 5.25 लाख में पिछड़ा और सामान्य वोटर हैं। इस सीट पर सैनी समाज का लोकसभा क्षेत्र की सभी पांच विधानसभा क्षेत्र में खासा दखल है।

विधानसभा सीटों का हाल

सम्भल लोकसभा सीट में कुल पांच विधानसभा सीटें आती हैं। ये सीटें असमोली, संभल, चंदौसी, बिलारी और कुंदरकी हैं। असमोली, संभल, चंदौसी, बिलारी और कुंदरकी में चार सीटों पर सपा का कब्जा है। चंदौसी (सु0) सीट भाजपा के पाले में है। चंदौसी सीट की विधायक गुलाब देवी अभी यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री भी हैं।

दलों की जीत का गणित

सम्भल लोकसभा क्षेत्र सपा का गढ़ माना जाता है। मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे जहां सपा इसे अपनी परंपरागत सीट मानती रही है और 2019 में बसपा से गठबंधन के बाद यह सीट भाजपा के लिए मुश्किल बनी थी, लेकिन उसमें भी 4.80 लाख से ज्यादा मत लेकर भाजपा प्रत्याशी रहे परमेश्वर लाल सैनी अपने चुनावी प्रबंधन का लोहा मनवाया था। 2014 में भाजपा ने ये सीट जीती थी। उस समय सम्भल लोकसभा क्षेत्र की सभी पांच विधानसभा क्षेत्रों में सपा के विधायक थे। इसके बाद भी भाजपा प्रत्याशी सत्यपाल सिंह सैनी को जीत मिली थी। जो समीकरण वर्ष 2014 में बने थे वह इस बार दोहरा रहे हैं। इस बार भी बसपा गठबंधन में नहीं है। इसलिए राजनीति के जानकारों का मानना है कि भाजपा सपा के गढ़ को दूसरी बार भी भेद सकती है।

राजनीतिक विशलेषक प्रवीण वशिष्ठ कहते हैं, बीते कुछ इलेक्शन्स को देखें तो उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, किसान सम्मान निधि, तीन तलाक का खात्मा और कई अन्य योजनाओं से बीजेपी को चुनावों में भरपूर लाभ मिला है। इतना ही नहीं मुस्लिमों ने भी बीजेपी को बढ़-चढ़कर वोट दिया है। इनमें अधिकतर तादाद महिलाओं की रही है। अगर सम्भल में मुस्लिम महिलाओं ने बीजेपी और पीएम मोदी का साथ दिया तो स्थिति काफी हद तक बदल सकती है।

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Rama Niwash Pandey

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