इस्लाम के जानकार बोले: रमजान में क्रिकेटर के जूस पीने को दिया जा रहा तूल, शमी सफर में हैं, रोजा उन पर माफ
7 मार्च 2025 उत्तर प्रदेश रमजान का महीना पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए खास महत्व रखता है। इस माह में रोजा रखना हर सक्षम मुस्लिम पर फर्ज (आवश्यक) है, लेकिन सफर (यात्रा) और विशेष परिस्थितियों में इस पर छूट भी दी गई है। हाल ही में भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी के रमजान के दौरान जूस पीने का मामला सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है, जिससे एक बार फिर धर्म और क्रिकेट के बीच का विवाद तूल पकड़ लिया है। हालांकि, इस्लाम के जानकारों का कहना है कि इस मामले में विवाद उठाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि शमी सफर में हैं और इस्लाम में यात्रा के दौरान रोजा छोड़ने की अनुमति दी गई है।
शमी का सफर और रोजा
मोहम्मद शमी, जो हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए एक बड़े क्रिकेट मैच में शामिल थे, रमजान के दौरान अपने रोजे को लेकर चर्चा में आए थे। शमी ने मैच के दौरान जूस पीते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किया था, जिसे बाद में वायरल किया गया। वीडियो के वायरल होते ही कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स ने शमी की आलोचना करना शुरू कर दिया, यह कहते हुए कि क्रिकेटर ने रमजान के दौरान रोजा तोड़ा है।
हालांकि, इस्लामिक जानकारों का कहना है कि शमी की आलोचना करना गलत है, क्योंकि वह एक यात्रा पर थे। इस्लाम में सफर (यात्रा) में रोजा रखने का नियम थोड़ा लचीला है। शरई नियमों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति यात्रा पर है, तो उसे रोजा छोड़ने की अनुमति है और बाद में उन दिनों का मुआवजा (कितने दिनों के रोजे छोड़ने हैं, उन्हें बाद में रखना) किया जा सकता है।
इस्लामिक दृष्टिकोण से सफर और रोजा
इस्लाम में रमजान के दौरान रोजा रखना एक महत्वपूर्ण धर्मिक कर्तव्य है, लेकिन यात्रा (सफर) की स्थिति में इसे छोड़ने की अनुमति दी गई है। क़ुरान में स्पष्ट रूप से उल्लेख है: “यदि तुम यात्रा पर हो, तो रोजा छोड़ सकते हो, लेकिन इन दिनों की गिनती पूरी करके बाद में उन रोजों को रखना होगा।” (क़ुरान, सूरह अल-बकरा, आयत 185)
इस्लामिक जानकारों का कहना है कि शमी जैसे पेशेवर खिलाड़ी जो व्यस्त दौरे पर रहते हैं, उनके लिए यात्रा के दौरान रोजा छोड़ना एक मान्य विकल्प है। यात्रा के दौरान शारीरिक कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए, इस्लाम में छूट दी गई है, ताकि वे अपनी सेहत को नुकसान न उठाएं। इस प्रकार, शमी ने जो जूस पिया, वह उनकी यात्रा की स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक स्वाभाविक कदम था।
मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका
मीडिया और सोशल मीडिया ने इस मामले को अधिक तूल दिया है। विशेष रूप से कुछ लोगों ने इसे धार्मिक संदर्भ में विवादित बना दिया, जबकि शमी के इस कदम को एक सामान्य परिस्थिति के रूप में देखा जा सकता था। जब एक प्रसिद्ध व्यक्ति जैसे शमी इस प्रकार के मुद्दों में घिरते हैं, तो यह पूरी तरह से समझने योग्य है कि कुछ लोग अपनी व्यक्तिगत राय जाहिर करते हैं। लेकिन असल में इस मामले में कोई विवाद नहीं है, क्योंकि इस्लामिक दृष्टिकोण से सफर के दौरान रोजा छोड़ना पूरी तरह से जायज है।
जानकारों का बयान
इस्लामिक विद्वान और मौलाना ने इस मामले पर अपनी स्पष्ट राय दी है। एक मौलाना ने कहा, “मोहम्मद शमी जैसा खिलाड़ी जब सफर कर रहा है, तो उसे रमजान में रोजा छोड़ने की अनुमति है। यह एक ऐसा मामला है जिसमें किसी को भी आलोचना करने की जरूरत नहीं है। इस्लाम में इस तरह की छूट को पूरी तरह से स्वीकार किया गया है।”
एक और मौलाना ने कहा, “रोजा एक धार्मिक कर्तव्य है, लेकिन यात्रा के दौरान इसे छोड़ने का विकल्प दिया गया है, ताकि व्यक्ति को शारीरिक कठिनाई न हो। शमी ने अपने सफर में जूस पीकर कोई ग़लत काम नहीं किया। यह एक धार्मिक छूट के तहत था, और यह उनकी व्यक्तिगत स्थिति को देखते हुए पूरी तरह से उचित था।”
शमी की प्रतिक्रिया
हालांकि शमी ने इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया, लेकिन उनके कई समर्थकों ने सोशल मीडिया पर यह स्पष्ट किया है कि शमी के जूस पीने का कोई गलत मकसद नहीं था और यह केवल उनकी यात्रा की स्थिति को ध्यान में रखते हुए था। शमी के फैंस और साथी क्रिकेटर्स ने भी इस पर उन्हें समर्थन दिया और इसे केवल एक अफवाह बताया।
निष्कर्ष
रमजान के महीने में क्रिकेट के साथ धार्मिक मुद्दों को जोड़कर बेजा विवाद उत्पन्न करना सिर्फ समाज में नफरत फैलाने का एक तरीका हो सकता है। इस्लाम में सफर के दौरान रोजा छोड़ने की अनुमति दी गई है, और इसका पालन करते हुए मोहम्मद शमी ने अपने व्यस्त क्रिकेट दौरे के दौरान जूस पिया था। ऐसे मामलों में हमें समझदारी से काम लेना चाहिए और व्यक्तिगत आस्थाओं और धर्म की गहरी समझ से किसी भी स्थिति का विश्लेषण करना चाहिए।
इसलिए, मोहम्मद शमी के जूस पीने को तूल देना न केवल अनावश्यक है, बल्कि यह धार्मिक संवेदनाओं का सम्मान करने की दिशा में भी एक गलत कदम हो सकता है। हमें चाहिए कि हम अपने सार्वजनिक विमर्श में अधिक सहिष्णुता और समझदारी को बढ़ावा दें।
