बांग्लादेश में निशाने पर अल्पसंख्यक- अरविंद जयतिलक
बांग्लादेश राष्ट्रीय हिंदू महाजोत द्वारा ढाका रिपोर्टस में यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि पिछले एक वर्ष में बांग्लादेश में हिंदू एवं आदिवासियों सहित अल्पसंख्यक समुदायों की 39 महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया है। इनमें 27 महिलाएं गैंगरेप का शिकार हुई हैं जबकि 55 महिलाओं से बलात्कार की कोशिश हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बलात्कार के बाद 14 महिलाओं की हत्या की गयी है जिस कारण तकरीबन दो लाख अल्पसंख्यक परिवार बेहद असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। हिंदू महाजोत संस्था के जिम्मेदार लोगों की मानें तो पिछले एक वर्ष के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के 424 लोगों को मारने का प्रयास हुआ है जिनमें से 60 लोग अभी भी लापता हैं। 849 लोगों को मौत की धमकी दी गयी है और तकरीबन 360 लोगों के साथ मारपीट कर बुरी तरह घायल किया गया है। 127 लोगों का अपहरण हुआ है। 445 अल्पसंख्यक परिवारों को देश छोड़ने पर मजबूर कर उनकी 89,990 एकड़ जमीन हड़प ली गयी है।
3,694 परिवारों को बेदखल कर उनकी जमीन कब्जाने का प्रयास हुआ है। इसी तरह तनचंज्ञ, संथाल और त्रिपुरा पहाड़ी जनजातियों के 35,800 परिवारों को बेदखल करने की धमकी दी गयी है और उनके 6,550 एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया गया है। बढ़ते अत्याचार के कारण तकरीबन 15,115 परिवारों पर पलायन का खतरा मंडरा रहा है। जबरन 152 लोगों का धर्म परिवर्तन किया गया है। धार्मिक संस्थानों को अपवित्र करने के 179 मामले सामने आए हैं। इसी तरह धार्मिक समारोहों में बाधा डालने के 129 मामले उजागर हुए हैं। पिछले एक वर्ष में 51 मंदिरों की जमीन पर कब्जा किया गया है। 128 मंदिरों पर हमले, तोड़फोड़ एवं आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया गया है। जब भी हिंदू त्यौहार आते हैं मंदिरों पर हमले बढ़ जाते है। उनके जलूस को बाधित कर आस्था से खिलवाड़ किया जाता है। पिछले एक वर्ष में मंदिरों से मूर्ति चोरी की 72 घटनाएं हुई हैं। यहीं नहीं मूर्तियों को तोड़ने और अपमानित भी किया गया है। बांग्लादेश के जिहादी संगठनों द्वारा हिंदू अल्पसंख्याकों से रंगदारी वसूली भी की जा रही है। एक वर्ष के दौरान हिंदू अल्पसंख्यकों से 27 करोड़ 46 लाख 33 हजार रुपए की वसूली की गयी है। कुल नुकसान 220 करोड़ 89 लाख टका का हुआ है। हिंदू महाजोत की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि बांग्लादेश सरकार अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा देने में पूरी तरह विफल है।
बांग्लादेश में हूजी, जमातुल मुजाहिदीन बंगलादेश, द जाग्रत मुस्लिम जनता बंगलादेश (जेएमजेबी), पूर्व बांगला कम्युनिस्ट पार्टी (पीबीसीबी) व इस्लामी छात्र शिविर यानी आइसीएस जैसे बहुतेरे आतंकी और कट्टरपंथी संगठन हैं जिनका मकसद बांग्लादेश से हिंदू अल्पसंख्यकों को सफाया करना है। हिंदू महाजोत का यह कहना सर्वथा उचित है कि बांग्लादेश आजाद हो गया है लेकिन देश के हिंदू समुदाय को आजादी नहीं दी गयी है। नतीजा सामने है। बांग्लादेश में लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है जिससे अल्पसंख्यक समुदाय पर अत्याचार बढ़ रहा है। इसका दुष्परिणाम यह है कि बांग्लादेश में हिंदु अल्पसंख्यकों की आबादी तेजी से घट रही है। अभी गत वर्ष ही अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता रिचर्ड बेंकिन ने यह खुलासा किया था कि पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी तेजी से घट रही है। उनके मुताबिक शेख हसीना और खालिदा जिया के अंतर्गत बांग्लादेशी सरकारें उनलोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं कि है जो हिंदुओं के खिलाफ काम कर रहे हैं। बेंकिन के आंकड़ों पर गौर करें तो बांग्लादेश की कुल आबादी 15 करोड़ है जिसमें से 90 प्रतिशत मुसलमान हैं। हिंदू आबादी घटकर 9.5 प्रतिशत रह गयी है। जबकि 1974 में हिंदुओं की संख्या कुल आबादी में जहां एक तिहाई थी, वहीं 2016 में यह घटकर कुल आबादी का 15 वां हिस्सा रह गयी है।
इतिहास में जाएं तो 1947 में भारत विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 30 फीसद थी जो आज घटकर 8.6 फीसद रह गयी है। बांग्लादेश जब पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था तो उस समय की पहली जनगणना में मुस्लिम आबादी 3 करोड़ 22 लाख और हिंदू आबादी 92 लाख 40 हजार थी। साढ़े छः दशक बाद आज मुस्लिम आबादी 16 करोड़ के पार पहुंच चुकी है जबकि हिंदू आबादी महज 1 करोड़ 20 लाख पर सिकुड़ी हुई है। सवाल उठना लाजिमी है कि अगर बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदु सुरक्षित हैं तो मुसलमानों की आबादी की तुलना में उनकी आबादी में आनुपातिक वृद्धि क्यों नहीं हुई है? गौर करें तो इसके दो मुख्य कारण हैं। एक सुनियोजित रणनीति के तहत अल्पसंख्यक हिंदुओं का कत्ल और दूसरा उनका धर्मांतरण। आमतौर पर बांग्लादेश का हिंदू जनमानस राजनीतिक और आर्थिक रुप से कमजोर है। संसद से लेकर विधानसभाओं में उसकी भागीदारी नामात्र है। आतंकी व कट्टरपंथी संगठनों के अलावा बेगम खालिदा जिया के नेतृत्ववाले राजनीतिक संगठन बीएनपी के समर्थक भी उन्हें लगातार निशाना बनाते रहते हैं। यह तथ्य है कि जब भी बेगम खालिदा जिया की नेतृत्ववाली बीएनपी सत्ता में आयी हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ा। खालिदा सरकार इस्लामिक कट्टरपंथियों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काती है। यह तथ्य है कि 2001 में जब बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार सत्ता में आयी तो योजना बनाकर हिंदुओं का नरसंहार किया गया। उसके समर्थक हिंदुओं के घर जलाए और संपत्तियों की लूटपाट की। हिंदू अल्पसंख्यक महिलाओं के साथ शर्मनाक कृत्य किए। बेगम खालिदा सरकार की डर से लाखों हिंदू बांग्लादेश छोड़कर भारत आ गए। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की सत्ता से विदायी के बाद जब अवामी लीग की सरकार सत्ता में आयी तो उसने हिंदू अल्पसंख्यकों को न्याय का भरोसा दिया। उसने खालिदा सरकार के दौरान नरसंहार की जांच के लिए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया।
आयोग ने 25 हजार से अधिक लोगों को हिंदुओं पर हमले का जिम्मेदार ठहराया और उन पर मुकदमा चलाने का निर्देश दिया। शर्मनाक तथ्य यह कि हमलावरों में खालिदा सरकार के 25 पूर्व मंत्री भी शामिल हैं। लेकिन अरसा गुजर जाने के बाद भी गुनाहगारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है। आज भी वे खुलेआम घूम कर रहे हैं। बांग्लादेश में न केवल अल्पसंख्यकों की निर्मम हत्याएं हो रही है बल्कि उनके संवैधानिक अधिकारों को भी सुनियोजित तरीके से समाप्त किया जा रहा है। खालिदा सरकार के दौरान एक साजिश के तहत हिंदुओं के प्रापर्टीज अधिकारों को सीमित किया गया। हालंाकि अवामी लीग की सरकार ने 2011 में ‘वेस्टेज प्रापर्टीज रिटर्न (एमेंडमेंट) बिल 2011 पारित कर जब्त की गयी या मुसलमानों द्वारा कब्जाई गयी हिंदुओं की जमीन को वापस करने का कानून बनाया। लेकिन अभी तक उसका कोई सार्थक नतीजा सामने नहीं आया है। यानी हिंदुओं से छिनी गयी जमीन वापस नहीं की गयी है। कानून के जानकारों की मानें तो इस कानून के पारित होने के बाद भी अल्पसंख्यकों को 43 साल पुरानी अपनी जमीन वापस लेना टेढ़ी खीर है। सच तो यह है कि इस बिल के पारित होने के बाद मुस्लिम कट्टरपंथियों में हिंदुओं की जमीन कब्जाने की होड़ मच गयी है।
अगर कट्टरपंथियों के समर्थन वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी सरकार में आती है तो इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा मिलेगा। उल्लेखनीय है कि 1960 में एक विवादित कानून के तहत हिंदुओं की जमीनें हड़प ली गयी थी। यह कानून पूर्वी पाकिस्तान प्रशासन ने लागू किया था और उसम समय बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था। 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद इस कानून का विरोध हुआ और 2008 के चुनाव प्रचार में अवामी लीग ने वादा किया कि सत्ता में आने पर हिंदुओं की संपत्ति से जुड़े नियमों में बदलाव करेंगे। सरकार ने अपने वादे के मुताबिक ‘वेस्टेज प्रापर्टीज रिटर्न ( एमेंडमेंट) बिल 2011 पारित की है लेकिन अल्पसंख्यक हिंदू अपनी प्रापर्टीज पर काबिज नहीं हो सके हैं। बेहतर होगा कि भारत सरकार बांग्लादेशी अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा के लिए बांग्लादेश की सरकार पर दबाव बनाए। वैश्विक समुदाय को भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए। अन्यथा बांगलादेश में भी हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति पाकिस्तान के हिंदू अल्पसंख्यकों जैसी होनी तय है।