• December 25, 2025

हस्तिनापुर में विहिप का महामंथन: वैचारिक युद्ध से जिहाद को जवाब देने और मंदिर मुक्ति की उठी हुंकार

मेरठ/हस्तिनापुर: उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक और पौराणिक नगरी हस्तिनापुर में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के तीन दिवसीय केंद्रीय प्रन्यासी मंडल और प्रबंध समिति की बैठक का शुक्रवार को भव्य समापन हुआ। इस महत्वपूर्ण आयोजन के अंतिम दिन विहिप के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने देश की वर्तमान सुरक्षा स्थिति, कट्टरपंथ, मंदिरों के सरकारी नियंत्रण और सामाजिक कुरीतियों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर संगठन का कड़ा रुख स्पष्ट किया। प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए आलोक कुमार ने दिल्ली में हाल ही में हुए बम विस्फोट की घटनाओं से लेकर तमिलनाडु के मंदिरों की दुर्दशा तक, हर पहलू पर विस्तार से बात की। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब समय आ गया है जब जिहादी विचारधारा और आतंकवाद का सामना केवल सुरक्षा बलों के माध्यम से नहीं, बल्कि एक व्यापक वैचारिक युद्ध के जरिए करना होगा।

जिहाद की नई परिभाषा और शिक्षित युवाओं का भटकाव

विहिप अध्यक्ष ने अपने संबोधन की शुरुआत देश में बढ़ते कट्टरपंथ और आतंकवाद की चुनौती से की। उन्होंने हालिया सुरक्षा घटनाक्रमों, विशेषकर दिल्ली में हुए बम विस्फोटों का संदर्भ देते हुए एक चिंताजनक पहलू की ओर ध्यान आकर्षित किया। आलोक कुमार ने कहा कि यह धारणा गलत है कि आतंक फैलाने वाले लोग अनपढ़ या आर्थिक रूप से पिछड़े होते हैं। उन्होंने आंकड़ों और साक्ष्यों का हवाला देते हुए बताया कि जिहाद के नाम पर हिंसा का मार्ग चुनने वालों में इंजीनियर, डॉक्टर और उच्च शिक्षित युवा शामिल हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कट्टरपंथी ताकतों ने जिहाद को धर्म से जोड़कर एक ऐसी विकृत विचारधारा विकसित कर दी है, जो युवाओं के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाल रही है। उन्होंने कहा कि इन युवाओं को ‘जन्नत’ का झूठा मार्ग दिखाकर गुमराह किया जा रहा है। विहिप का मानना है कि इस भटकाव को रोकने के लिए समाज के प्रबुद्ध वर्ग को आगे आना होगा और इस कट्टरपंथी सोच की जड़ों पर वैचारिक प्रहार करना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियों को इस अंधकार से बचाया जा सके।

अल्पसंख्यक की परिभाषा पर पुनर्विचार की मांग

17 से 19 दिसंबर तक चली इस उच्च स्तरीय बैठक में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की संवैधानिक और सामाजिक व्याख्या पर भी गंभीर चर्चा हुई। आलोक कुमार ने देश की वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में अल्पसंख्यक शब्द के प्रयोग पर सवाल उठाए। उन्होंने तर्क दिया कि भारत में अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से दो समुदायों के लिए किया जाता रहा है, जबकि ऐतिहासिक सत्य यह है कि इन्हीं समुदायों ने भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से पर सदियों तक शासन किया है। विहिप अध्यक्ष ने प्रश्न किया कि जो समुदाय शासक रहे हैं और जिनकी जनसंख्या और प्रभाव अब काफी व्यापक है, उन्हें किस आधार पर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना उचित है? उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अल्पसंख्यक की परिभाषा पर राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। उनके अनुसार, यह दर्जा केवल वास्तव में लुप्तप्राय या बेहद कम संख्या वाले समुदायों तक ही सीमित होना चाहिए, न कि राजनीतिक तुष्टीकरण का साधन बनना चाहिए।

मंदिर मुक्ति आंदोलन और सरकारी नियंत्रण से आजादी

बैठक के दौरान तमिलनाडु के मंदिरों की स्थिति पर विशेष चिंता जताई गई। आलोक कुमार ने कहा कि तमिलनाडु में हिंदू मंदिरों का प्रबंधन सरकारी हाथों में होने के कारण उनकी स्थिति दयनीय होती जा रही है। उन्होंने न्यायालय के विभिन्न आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि कई मामलों में कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भी जमीनी स्तर पर समाधान नहीं निकल पा रहा है। विश्व हिंदू परिषद ने एक बार फिर अपना पुराना संकल्प दोहराया कि हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से पूरी तरह मुक्त किया जाना चाहिए। उन्होंने समानता का अधिकार मांगते हुए पूछा कि जब देश में अन्य समुदायों के धार्मिक स्थलों, जैसे चर्च और मस्जिदों के प्रबंधन में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता, तो केवल हिंदू मंदिरों को ही सरकारी नियंत्रण में क्यों रखा जाता है? विहिप की मांग है कि मंदिरों की दान राशि का उपयोग केवल हिंदू समाज के कल्याण, शिक्षा, स्वास्थ्य और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में ही होना चाहिए, न कि किसी अन्य सरकारी खर्च में।

वंदे मातरम्: राष्ट्रभक्ति का सार्वभौमिक अभियान

राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से विहिप ने ‘हर जुबान पर हो वंदे मातरम्’ अभियान का आह्वान किया। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी मातृभूमि के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए हर सामाजिक और सार्वजनिक कार्यक्रम की शुरुआत या समापन वंदे मातरम् के गायन से करना चाहिए। आलोक कुमार ने कहा कि यह गीत केवल एक संगीत रचना नहीं है, बल्कि यह हमारे स्वतंत्रता संग्राम की चेतना और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है। इस अभियान के माध्यम से विहिप समाज के हर वर्ग को एक सूत्र में पिरोना चाहती है, ताकि जाति और पंथ से ऊपर उठकर राष्ट्र सर्वोपरि की भावना जाग्रत हो सके।

मतदाता सूची की शुद्धता और विदेशी घुसपैठ का मुद्दा

प्रेस वार्ता में एसआईआर (SIR) प्रकरण और मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर भी चर्चा हुई। आलोक कुमार ने कुछ राजनीतिक और सामाजिक हल्कों में हो रही आलोचनाओं को अनुचित ठहराया। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची का शुद्धिकरण लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए अत्यंत आवश्यक है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि केवल वास्तविक भारतीय नागरिक ही चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बनें। इसी संदर्भ में उन्होंने पश्चिम बंगाल की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की। विहिप अध्यक्ष ने दावा किया कि पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों और अन्य हिस्सों में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए रह रहे हैं, जो न केवल जनसांख्यिकीय संतुलन बिगाड़ रहे हैं बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। उन्होंने सरकार से इन अवैध प्रवासियों की पहचान कर उचित कार्रवाई करने की मांग की।

काशी और मथुरा: सत्य की जीत का भरोसा

अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद अब विहिप की नजरें काशी और मथुरा के समाधान पर टिकी हैं। आलोक कुमार ने विश्वास व्यक्त किया कि जिस प्रकार अयोध्या में सत्य की जीत हुई, उसी तरह काशी विश्वनाथ और मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में भी हिंदू पक्ष को न्याय मिलेगा। उन्होंने कहा कि इन स्थानों को लेकर ऐतिहासिक तथ्य, पुरातात्विक प्रमाण और कानूनी तर्क पूरी तरह से हिंदू पक्ष के पक्ष में हैं। उन्होंने समाज से धैर्य बनाए रखने और कानूनी प्रक्रिया में विश्वास रखने की अपील की, साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि इन पवित्र स्थलों की मुक्ति हिंदू समाज की सांस्कृतिक अस्मिता का अभिन्न अंग है।

सामाजिक कुरीतियां और वैज्ञानिक परंपराएं

आलोक कुमार ने सनातन धर्म की परंपराओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी परिभाषित किया। मृत देह के अंतिम संस्कार के विषय पर उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में देह को अग्नि को समर्पित करना पूर्णतः वैज्ञानिक है, क्योंकि यह पंचतत्व से बनी देह को पुनः उन्हीं तत्वों में विलीन करने की सबसे शुद्ध प्रक्रिया है। इसके साथ ही उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों पर भी प्रहार किया। उन्होंने बुर्का प्रथा को महिलाओं के विरुद्ध अन्याय करार दिया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार हिंदू समाज ने सती प्रथा और पर्दा प्रथा जैसी बुराइयों के खिलाफ एक लंबा संघर्ष लड़ा और अपनी महिलाओं को सामाजिक बेड़ियों से मुक्त कर समान अधिकार दिए, उसी प्रकार अन्य समुदायों में भी महिलाओं को खुलकर सांस लेने और अपनी पहचान बनाने का अवसर मिलना चाहिए।

धर्मांतरण और बाल विवाह पर कड़ा प्रहार

धर्मांतरण के मुद्दे पर विहिप अध्यक्ष ने कड़े तेवर दिखाए। उन्होंने कहा कि भारत में कई बाहरी शक्तियां छल-कपट और प्रलोभन के माध्यम से धर्मांतरण का खेल खेल रही हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर क्यों गरीब और भोले-भाले लोगों को उनके मूल धर्म से अलग करने की साजिशें रची जाती हैं? विहिप ने मांग की कि देशभर में एक सख्त धर्मांतरण विरोधी कानून लागू होना चाहिए। इसके अतिरिक्त, कम उम्र में विवाह यानी बाल विवाह के मुद्दे पर भी उन्होंने चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जब देश में विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित है, तो कुछ समुदायों में 7 या 12 वर्ष की आयु में निकाह कर देना कानून और मानवता दोनों का उल्लंघन है। उन्होंने इन प्रथाओं को आधुनिक समाज के लिए एक कलंक बताया और इनके खिलाफ कड़े कानून पालन की वकालत की।

समापन और आगामी कार्ययोजना

हस्तिनापुर की इस बैठक में केवल चर्चा ही नहीं हुई, बल्कि संगठन के विस्तार और हिंदू समाज की सुरक्षा के लिए आगामी रोडमैप भी तैयार किया गया। बैठक में अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख एवं केंद्रीय सह मंत्री विजय शंकर तिवारी और राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल की उपस्थिति इस बात का संकेत थी कि विहिप अपने वैचारिक संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पूरी तरह तैयार है। विहिप का मानना है कि आने वाले समय में संगठन न केवल धार्मिक मोर्चे पर बल्कि सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर भी सक्रिय भूमिका निभाएगा।

विहिप की इस तीन दिवसीय मंत्रणा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि संगठन अब अपने एजेंडे को लेकर अधिक आक्रामक और मुखर है। चाहे वह जिहाद का वैचारिक मुकाबला हो, मंदिरों की स्वायत्तता हो या फिर समान नागरिक संहिता की ओर बढ़ते कदम, हस्तिनापुर से निकली यह गूँज आने वाले समय में देश की राजनीति और सामाजिक विमर्श को गहराई से प्रभावित करेगी।

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