उत्तर प्रदेश: बाल स्वास्थ्य में लखनऊ सहित 20 जिले अति पिछड़े, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की रिपोर्ट में खुलासा
लखनऊ, 11 अप्रैल 2025: उत्तर प्रदेश में बाल स्वास्थ्य को लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) की ताजा रिपोर्ट ने चौंकाने वाले तथ्य सामने लाए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश की राजधानी लखनऊ सहित 20 जिले बाल स्वास्थ्य के मानकों में अति पिछड़े श्रेणी में चिह्नित किए गए हैं। यह खुलासा न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर सवाल उठाता है, बल्कि नीति निर्माण और उनके क्रियान्वयन में मौजूद खामियों को भी उजागर करता है। दूसरी ओर, कुछ जिले जैसे रायबरेली, सुल्तानपुर, और झांसी ने बेहतर प्रदर्शन कर अच्छे जिलों की सूची में जगह बनाई है।
अति पिछड़े जिलों की स्थिति
रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ, प्रतापगढ़, और अन्य 18 जिलों में बाल स्वास्थ्य से जुड़े प्रमुख संकेतकों जैसे शिशु मृत्यु दर (IMR), पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (U5MR), टीकाकरण कवरेज, कुपोषण, और जन्म के समय स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में गंभीर कमियां देखी गई हैं। इन जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच, गुणवत्ता, और जागरूकता की कमी प्रमुख चुनौतियां बनी हुई हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) में संसाधनों की कमी और प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की अनुपस्थिति स्थिति को और जटिल बनाती है।
लखनऊ जैसे शहरी और विकसित माने जाने वाले जिले का इस सूची में शामिल होना विशेष रूप से चिंताजनक है। विशेषज्ञों का मानना है कि राजधानी में स्वास्थ्य सुविधाओं की प्रचुरता के बावजूद, इनका लाभ गरीब और कमजोर वर्गों तक नहीं पहुंच पा रहा है। असमान वितरण, जागरूकता की कमी, और सामाजिक-आर्थिक असमानताएं इसके प्रमुख कारण हैं।
बेहतर प्रदर्शन करने वाले जिले
रिपोर्ट में कुछ जिलों को उनके बेहतर प्रदर्शन के लिए सराहा गया है। रायबरेली, सुल्तानपुर, हाथरस, मऊ, बांदा, कुशीनगर, इटावा, हमीरपुर, मिर्जापुर, झांसी, जौनपुर, ललितपुर, और बागपत जैसे जिले बाल स्वास्थ्य के मानकों में अच्छा प्रदर्शन करने वाली श्रेणी में शामिल हैं। इन जिलों में टीकाकरण कवरेज, मातृ-शिशु स्वास्थ्य सेवाओं, और कुपोषण नियंत्रण में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है। इन जिलों के सफल मॉडल को अन्य क्षेत्रों में लागू करने की योजना पर विचार किया जा रहा है।
प्रमुख समस्याएं और चुनौतियां
रिपोर्ट में बाल स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याओं को रेखांकित किया गया है:
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कुपोषण: अति पिछड़े जिलों में बच्चों में कुपोषण की दर चिंताजनक स्तर पर है। स्टंटिंग (लंबाई के लिए आयु में कमी) और वेस्टिंग (वजन के लिए लंबाई में कमी) के मामले इन जिलों में अधिक हैं।
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टीकाकरण में कमी: पूर्ण टीकाकरण कवरेज कई जिलों में राष्ट्रीय औसत से नीचे है। ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता और लॉजिस्टिक्स की कमी इसके लिए जिम्मेदार है।
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स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच: प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बुनियादी सुविधाओं जैसे दवाइयां, उपकरण, और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी देखी गई है।
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जागरूकता की कमी: माता-पिता, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, नियमित स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण, और पोषण के महत्व से अनजान हैं।
सुधार के लिए उठाए जा रहे कदम
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने इन कमियों को दूर करने के लिए तत्काल कदम उठाने की योजना बनाई है। अगले तीन महीनों में अति पिछड़े जिलों में विशेष निगरानी और हस्तक्षेप की रणनीति लागू की जाएगी। इस दिशा में कुछ प्रमुख कदम निम्नलिखित हैं:
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विशेष निगरानी: इन 20 जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं की प्रगति पर कड़ी नजर रखी जाएगी। स्थानीय प्रशासन और स्वास्थ्य अधिकारियों को जवाबदेही तय की गई है।
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स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती और प्रशिक्षण: प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में रिक्त पदों को भरने और मौजूदा कर्मियों को प्रशिक्षण देने की प्रक्रिया तेज की जाएगी।
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जागरूकता अभियान: ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में मातृ-शिशु स्वास्थ्य, टीकाकरण, और पोषण पर जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाए जाएंगे। आशा कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी केंद्रों को इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका दी जाएगी।
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मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयां: दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए मोबाइल मेडिकल यूनिट्स को तैनात किया जाएगा।
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पोषण कार्यक्रम: कुपोषण से निपटने के लिए पोषण पुनर्वास केंद्रों (NRC) की संख्या बढ़ाई जाएगी और स्कूलों में मिड-डे मील जैसे कार्यक्रमों को और प्रभावी बनाया जाएगा।
सरकार और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
प्रदेश सरकार ने इस रिपोर्ट को गंभीरता से लिया है और इसे एक अवसर के रूप में देख रही है ताकि कमजोर क्षेत्रों में सुधार किया जा सके। स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हम इन कमियों को स्वीकार करते हैं और इन्हें जल्द से जल्द दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अगले कुछ महीनों में इन जिलों में बाल स्वास्थ्य के मानकों में सुधार देखने को मिलेगा।”
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि केवल सरकारी प्रयास काफी नहीं हैं। सामुदायिक भागीदारी, गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग, और निजी क्षेत्र की भागीदारी भी आवश्यक है। एक विशेषज्ञ ने बताया, “लखनऊ जैसे जिले में अति पिछड़ेपन का कारण संसाधनों की कमी नहीं, बल्कि उनका असमान वितरण और उपयोग है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि स्वास्थ्य सेवाएं समाज के हर वर्ग तक पहुंचें।”
