• October 14, 2025

महिलाओं में डिप्रेशन और एंग्जायटी का बोझ बढ़ रहा, पुरुषों पर कम असर: WHO रिपोर्ट ने खोले राज

नई दिल्ली, 17 सितंबर 2025: दुनिया भर में महिलाएं डिप्रेशन यानी अवसाद और एंग्जायटी यानी चिंता जैसी मानसिक बीमारियों से ज्यादा परेशान हो रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं पर ये समस्याएं पुरुषों की तुलना में दोगुनी ज्यादा असर डाल रही हैं। पुरुष अभी भी अपेक्षाकृत खुश नजर आ रहे हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वे पूरी तरह ठीक हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2021 में दुनिया भर में करीब 10.95 करोड़ महिलाएं मानसिक बीमारियों से जूझ रही थीं, जबकि पुरुषों की संख्या 5.14 करोड़ थी। ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं और बताते हैं कि महिलाओं को समाज, परिवार और शारीरिक बदलावों के कारण ज्यादा चुनौतियां झेलनी पड़ रही हैं।WHO की रिपोर्ट ‘वर्ल्ड मेंटल हेल्थ टुडे’ में ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2021 के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है। इसमें कहा गया है कि दुनिया की आबादी का 14 फीसदी हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित है। कुल 10 अरब से ज्यादा लोग इन बीमारियों से ग्रस्त हैं। डिप्रेशन और एंग्जायटी सबसे आम हैं। महिलाओं में डिप्रेशन की दर 6.9 फीसदी है, जबकि पुरुषों में सिर्फ 4.6 फीसदी। इसी तरह, एंग्जायटी महिलाओं को 28 फीसदी ज्यादा प्रभावित करती है। रिपोर्ट के अनुसार, महामारी के समय ये अंतर और बढ़ गया था।इस रिपोर्ट को जारी करते हुए WHO के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने कहा, “मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हर उम्र और हर देश के लोगों को प्रभावित करती हैं।
लेकिन महिलाएं इनसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं। हमें तुरंत सेवाओं को बढ़ाना होगा ताकि कोई पीछे न छूटे।” ये आंकड़े दिखाते हैं कि मानसिक बीमारियां अब सिर्फ व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि वैश्विक संकट बन चुकी हैं।डिप्रेशन और एंग्जायटी क्या हैं?सबसे पहले समझते हैं कि डिप्रेशन और एंग्जायटी आखिर हैं क्या। डिप्रेशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति उदास रहता है, किसी काम में रुचि नहीं लेता, थकान महसूस करता है और नींद या भूख प्रभावित हो जाती है। ये लंबे समय तक चल सकती है और रोजमर्रा की जिंदगी को मुश्किल बना देती है। एंग्जायटी चिंता की बीमारी है, जिसमें व्यक्ति बिना वजह घबराता है, दिल की धड़कन तेज हो जाती है और भविष्य की चिंता सताती रहती है। WHO के अनुसार, ये दोनों बीमारियां महिलाओं में ज्यादा पाई जाती हैं क्योंकि उनके जीवन में कई अतिरिक्त दबाव होते हैं।रिपोर्ट में बताया गया है कि महिलाओं में डिप्रेशन की शुरुआत किशोरावस्था से ही हो जाती है। 10 साल की उम्र से पहले ये दुर्लभ है, लेकिन किशोरावस्था में 4.2 फीसदी लड़कियां इससे प्रभावित हो जाती हैं। युवावस्था में ये 5.7 फीसदी हो जाती है और 50-69 साल की उम्र में चरम पर पहुंच जाती है, जहां 6-7 फीसदी महिलाएं इससे जूझती हैं। पुरुषों में ये दर हमेशा कम रहती है। एंग्जायटी भी इसी तरह महिलाओं को ज्यादा सताती है।महिलाओं पर क्यों ज्यादा असर? WHO ने बताए मुख्य कारणWHO ने साफ कहा है कि ये अंतर सिर्फ संयोग नहीं, बल्कि कई कारणों से है।
सबसे बड़ा कारण महिलाओं पर डाला जाने वाला सामाजिक बोझ है। समाज में महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे घर संभालें, बच्चों की देखभाल करें, नौकरी करें और सब कुछ परफेक्ट रखें। ये दबाव तनाव बढ़ाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा घरेलू काम करती हैं, जिससे थकान और चिड़चिड़ापन बढ़ता है।दूसरा कारण है महिलाओं के जीवन में आने वाले हार्मोनल बदलाव। मासिक धर्म, गर्भावस्था, प्रसव के बाद और मेनोपॉज (रजोनिवृत्ति) के समय एस्ट्रोजन हार्मोन के उतार-चढ़ाव से डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, प्रसवोत्तर डिप्रेशन बहुत आम है। दुनिया भर में 10 फीसदी से ज्यादा गर्भवती या नई मांएं इससे प्रभावित होती हैं। पुरुषों में ऐसे हार्मोनल बदलाव नहीं होते, इसलिए वे कम प्रभावित होते हैं।तीसरा कारण है हिंसा और भेदभाव। रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं पर घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और कार्यस्थल पर असमानता का बोझ ज्यादा होता है। ये सब चिंता और अवसाद को जन्म देते हैं। महामारी के दौरान ये समस्या और बढ़ गई। लॉकडाउन में महिलाओं को घर की जिम्मेदारियां ज्यादा संभालनी पड़ीं, जबकि पुरुष बाहर काम करने वाले थे। WHO के आंकड़ों से पता चलता है कि कोविड-19 ने एंग्जायटी और डिप्रेशन को 25 फीसदी बढ़ा दिया, और महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हुईं।इसके अलावा, महिलाएं अपनी भावनाओं को ज्यादा व्यक्त करती हैं, इसलिए डॉक्टरों के पास ज्यादा जाती हैं और डायग्नोसिस ज्यादा होती है। पुरुष अक्सर इन समस्याओं को छिपाते हैं या शराब, धूम्रपान जैसे गलत तरीकों से सामना करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुषों में मानसिक बीमारियां कम दिखाई देती हैं, लेकिन वे ज्यादा आत्महत्या करते हैं। दुनिया भर में पुरुषों की आत्महत्या दर महिलाओं से चार गुना ज्यादा है।पुरुष अभी भी क्यों खुश? लेकिन खतरा बरकरारहेडलाइन में कहा गया है कि पुरुष अभी भी खुश हैं, लेकिन WHO कहता है कि ये सतही है। पुरुषों में डिप्रेशन कम है, लेकिन वे मदद नहीं लेते। समाज में ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ वाली सोच के कारण वे अपनी कमजोरी नहीं दिखाते। रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों में ऑटिज्म, ADHD जैसी समस्याएं ज्यादा हैं, लेकिन डिप्रेशन और एंग्जायटी कम। फिर भी, कुल मिलाकर पुरुषों की मानसिक स्वास्थ्य स्थिति बेहतर लगती है क्योंकि वे दबाव को बाहर की तरफ निकालते हैं, जैसे गुस्सा या जोखिम भरे काम। लेकिन ये लंबे समय में हानिकारक है।आंकड़ों की सच्चाई: महिलाओं पर भारी बोझदुनिया भर में डिप्रेशन से 3.32 करोड़ लोग प्रभावित हैं। महिलाओं में ये 1.5 गुना ज्यादा है।
निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 75 फीसदी लोग इलाज नहीं ले पाते। भारत जैसे देशों में ये समस्या और गंभीर है। यहां महिलाओं पर पारिवारिक दबाव, आर्थिक असमानता और शिक्षा की कमी अतिरिक्त बोझ डालती है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि डिप्रेशन और एंग्जायटी से हर साल 1 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान होता है, क्योंकि लोग काम पर नहीं जा पाते।महिलाओं में ये बीमारियां 18 साल की उम्र से पहले शुरू हो जाती हैं। आधी मानसिक बीमारियां किशोरावस्था में ही पनप जाती हैं। इसलिए, स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा जरूरी है।समाधान क्या हैं? तुरंत कदम उठाने की जरूरतWHO ने साफ चेतावनी दी है कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को तेजी से बढ़ाना होगा। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि प्राइमरी हेल्थ केयर में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करें। दवाइयां, काउंसलिंग और थेरेपी उपलब्ध कराएं। खासकर महिलाओं के लिए विशेष कार्यक्रम चलाएं, जैसे मांओं के लिए सपोर्ट ग्रुप।सरकारों से अपील है कि बजट बढ़ाएं। कम आय वाले देशों में सेवाएं सिर्फ 10-20 फीसदी लोगों तक पहुंच पाती हैं। परिवारों को भी जागरूक होना चाहिए। महिलाओं को बोझ कम करें, समानता लाएं। पुरुषों को भी भावनाओं को व्यक्त करने की आजादी दें।भारत में भी ये समस्या बढ़ रही है। नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे के अनुसार, यहां 15 फीसदी लोग मानसिक बीमारियों से जूझ रहे हैं। महिलाओं में ये दर ज्यादा है। सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है।अंत में, WHO का संदेश साफ है: मानसिक स्वास्थ्य हर किसी का अधिकार है। महिलाओं को मजबूत बनाएं, तभी समाज खुशहाल होगा। अगर आप या आपके जानने वाले डिप्रेशन या एंग्जायटी से जूझ रहे हैं, तो डॉक्टर से बात करें। मदद उपलब्ध है, बस पहला कदम उठाएं।
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Rama Niwash Pandey

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