• July 2, 2025

स्क्रीन एडिक्शन: बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और पढ़ाई पर बढ़ता खतरा

14 अप्रैल 2025, नई दिल्ली आज के डिजिटल युग में स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटॉप और टेलीविजन हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। बच्चे हो या बड़े, हर कोई स्क्रीन के सामने घंटों बिता रहा है। लेकिन इस बढ़ती स्क्रीन निर्भरता ने खासकर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और पढ़ाई-लिखाई पर गंभीर असर डालना शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्क्रीन एडिक्शन न केवल बच्चों की एकाग्रता और नींद को प्रभावित कर रहा है, बल्कि उनकी शैक्षिक उपलब्धियों और सामाजिक विकास को भी कमजोर कर रहा है। इस लेख में हम स्क्रीन एडिक्शन के कारणों, प्रभावों और इससे निपटने के उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
स्क्रीन एडिक्शन का बढ़ता दायरा
पिछले कुछ वर्षों में, खासकर कोविड-19 महामारी के बाद, बच्चों का स्क्रीन टाइम तेजी से बढ़ा है। ऑनलाइन क्लासेस, वीडियो गेम्स, सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने बच्चों को स्क्रीन से चिपकाए रखा। एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत में 6 से 15 साल के बच्चे औसतन प्रतिदिन 3-4 घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सिफारिश से कहीं ज्यादा है। WHO के अनुसार, 2-5 साल के बच्चों को प्रतिदिन 1 घंटे से ज्यादा और 6-11 साल के बच्चों को 2 घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं देना चाहिए।
मनोवैज्ञानिक डॉ. प्रिया शर्मा बताती हैं, “स्क्रीन एडिक्शन एक ऐसी लत है, जो धीरे-धीरे बच्चों के दिमाग को थका देती है। यह न केवल उनकी पढ़ाई पर असर डालती है, बल्कि उनकी भावनात्मक और सामाजिक समझ को भी कमजोर करती है।”
स्क्रीन एडिक्शन के कारण
स्क्रीन एडिक्शन के पीछे कई कारण हैं। सबसे पहले, आज की जीवनशैली में माता-पिता का व्यस्त शेड्यूल बच्चों को स्क्रीन के हवाले कर देता है। स्मार्टफोन या टैबलेट बच्चों को शांत रखने का आसान तरीका बन गया है। दूसरा, सोशल मीडिया और गेमिंग ऐप्स को इस तरह डिज़ाइन किया जाता है कि वे उपयोगकर्ता का ध्यान बार-बार खींचें। रंग-बिरंगे ग्राफिक्स, नोटिफिकेशन्स और रिवॉर्ड सिस्टम बच्चों को स्क्रीन से दूर नहीं होने देते।
इसके अलावा, ऑनलाइन शिक्षा ने भी स्क्रीन टाइम को बढ़ाया है। कोविड के बाद भले ही स्कूल खुल गए हों, लेकिन कई बच्चे अब भी ऑनलाइन ट्यूटोरियल्स और कोचिंग क्लासेस पर निर्भर हैं। यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है, जब बच्चे पढ़ाई के बाद भी मनोरंजन के लिए स्क्रीन का इस्तेमाल करते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
स्क्रीन एडिक्शन का सबसे बड़ा असर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। लगातार स्क्रीन के सामने रहने से बच्चों में चिड़चिड़ापन, तनाव और बेचैनी बढ़ रही है। नींद की कमी एक और बड़ी समस्या है। ब्लू लाइट, जो स्क्रीन से निकलती है, मेलाटोनिन हार्मोन के उत्पादन को प्रभावित करती है, जिससे नींद की गुणवत्ता खराब होती है।
डॉ. रवि मेहता, एक बाल मनोवैज्ञानिक, कहते हैं, “जो बच्चे रात में देर तक स्क्रीन का इस्तेमाल करते हैं, उनकी नींद का चक्र बिगड़ जाता है। इससे उनकी एकाग्रता, मेमोरी और सीखने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है।” इसके अलावा, सोशल मीडिया पर अनुचित तुलना और साइबर बुलिंग बच्चों में आत्मविश्वास की कमी और डिप्रेशन को बढ़ा रही है।
पढ़ाई-लिखाई में कमजोरी
स्क्रीन एडिक्शन का सीधा असर बच्चों की शैक्षिक प्रगति पर दिखाई देता है। ज्यादा स्क्रीन टाइम से बच्चों का ध्यान बार-बार भटकता है, जिससे वे लंबे समय तक किसी एक विषय पर फोकस नहीं कर पाते। एक अध्ययन के अनुसार, जो बच्चे प्रतिदिन 3 घंटे से ज्यादा स्क्रीन पर समय बिताते हैं, उनकी अकादमिक परफॉर्मेंस में 20-30% की कमी देखी गई है।
शिक्षक भी इस बदलाव को महसूस कर रहे हैं। दिल्ली के एक स्कूल की शिक्षिका राधिका वर्मा बताती हैं, “पहले बच्चे कक्षा में ज्यादा उत्साह दिखाते थे, लेकिन अब कई बच्चे थके हुए और अनमने से रहते हैं। उनकी कॉन्सेंट्रेशन पावर कम हो गई है, और वे होमवर्क या प्रोजेक्ट्स में रुचि नहीं दिखाते।”
सामाजिक और भावनात्मक विकास पर असर
स्क्रीन एडिक्शन बच्चों के सामाजिक और भावनात्मक विकास को भी प्रभावित कर रहा है। जो बच्चे ज्यादा समय स्क्रीन पर बिताते हैं, वे दोस्तों और परिवार के साथ कम समय बिताते हैं। इससे उनकी संवाद करने की क्षमता और दूसरों के प्रति सहानुभूति कम हो रही है। इसके अलावा, वीडियो गेम्स और सोशल मीडिया पर हिंसक या अनुचित कंटेंट बच्चों के व्यवहार को आक्रामक बना सकता है।
स्क्रीन एडिक्शन से निपटने के उपाय
स्क्रीन एडिक्शन से निपटना आसान नहीं है, लेकिन सही कदमों से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। यहाँ कुछ व्यावहारिक सुझाव दिए गए हैं:
  1. स्क्रीन टाइम की सीमा तय करें: माता-पिता को बच्चों के लिए उम्र के हिसाब से स्क्रीन टाइम तय करना चाहिए। उदाहरण के लिए, 2-5 साल के बच्चों के लिए 1 घंटा और 6-11 साल के बच्चों के लिए 1-2 घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं होना चाहिए।
  2. आउटडोर एक्टिविटीज़ को बढ़ावा दें: बच्चों को खेलकूद, साइकिलिंग, या पार्क में समय बिताने के लिए प्रेरित करें। इससे उनका ध्यान स्क्रीन से हटेगा और शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य सुधरेगा।
  3. पढ़ाई को रुचिकर बनाएँ: बच्चों को किताबों, कहानियों, या प्रोजेक्ट्स के जरिए पढ़ाई में रुचि बढ़ाएँ। साइंस एक्सपेरिमेंट्स, क्राफ्ट्स, या ग्रुप स्टडी सेशन पढ़ाई को मजेदार बना सकते हैं।
  4. स्वस्थ दिनचर्या बनाएँ: नियमित नींद, पौष्टिक आहार और व्यायाम बच्चों के दिमाग को तरोताजा रखते हैं। रात में सोने से 1-2 घंटे पहले स्क्रीन का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए।
  5. परिवार के साथ समय: बच्चों को स्क्रीन के बजाय परिवार या दोस्तों के साथ समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करें। बोर्ड गेम्स, कहानी सुनना, या साथ में खाना खाना बच्चों को सामाजिक रूप से जोड़ता है।
  6. रोल मॉडल बनें: माता-पिता को खुद भी स्क्रीन टाइम कम करना चाहिए। बच्चे वही सीखते हैं, जो वे अपने माता-पिता को करते देखते हैं।
  7. डिजिटल डिटॉक्स: सप्ताह में कुछ घंटे या दिन स्क्रीन-मुक्त रखें। उदाहरण के लिए, खाने का समय, पारिवारिक बातचीत, या सोने से पहले का समय स्क्रीन-फ्री हो सकता है।
  8. स्कूलों की भूमिका: स्कूलों को बच्चों और माता-पिता के लिए स्क्रीन एडिक्शन पर जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिए। शिक्षकों को बच्चों को ऑफलाइन गतिविधियों में शामिल करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  9. पैरेंटल कंट्रोल टूल्स: स्मार्टफोन और टैबलेट में पैरेंटल कंट्रोल ऐप्स का इस्तेमाल करें, जो बच्चों के स्क्रीन टाइम और कंटेंट को सीमित करते हैं।
  10. मनोवैज्ञानिक मदद: अगर बच्चे में स्क्रीन एडिक्शन के गंभीर लक्षण दिखें, जैसे चिड़चिड़ापन, नींद की कमी, या पढ़ाई में लगातार गिरावट, तो बाल मनोवैज्ञानिक की सलाह लें।
सरकार और समाज की जिम्मेदारी
स्क्रीन एडिक्शन से निपटने के लिए सरकार और समाज को भी आगे आना होगा। स्कूलों में डिजिटल लिटरेसी और स्क्रीन टाइम मैनेजमेंट पर पाठ्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया और गेमिंग कंपनियों को बच्चों के लिए सुरक्षित और सीमित कंटेंट प्रदान करने के लिए नियम बनाए जाने चाहिए।
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Rama Niwash Pandey

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