नीरज चोपड़ा ने एक बार फिर रचा इतिहास
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“दर्द कहाँ तक पाला जाए, युद्ध कहाँ तक टाला जाए, तू भी है राणा का वंशज, फेंक जहाँ तक भाला जाए” – कवि वाहिद अली
वाहिद के द्वारा लिखित यह कविता भारत को टोक्यो ओलंपिक में इकलौता गोल्ड दिलाने वाले नीरज चोपड़ा के ऊपर एकदम सटीक बैठती है। ऐसा लगता है जैसे उन्होंने इसकी रचना नीरज चोपड़ा को ध्यान में रखकर ही लिखी हो। नीरज ने आज जिस तरह से टोक्यो ओलंपिक के भाला फेंकने की प्रतियोगिता अर्थात जेवलिन थ्रो के फाइनल में 87.58 मीटर की दूरी पर भाला फेंका, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए वो कम होगी। टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए एथलीट में पहली बार गोल्ड मेडल जीतकर नीरज चोपड़ा ने इतिहास रचा है। नीरज ने भारत का 100 सालों का इंतजार खत्म किया है। मात्र 23 साल की उम्र में इन्होंने अपनी फिटनेस की जो मिसाल पेश की वो हर किसी को प्रेरित करने वाली है। कभी बचपन में 80 किलो का वजन लेकर आलोचना का शिकार होने वाले नीरज के लिए टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड जीतने का सफर तय करना इतना आसान नहीं था। इस बीच उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आइए जानते हैं नीरज चोपड़ा के फर्श से अर्श तक पहुंचने का प्रेरणादायी सफर…..
दरअसल, नीरज बचपन में बहुत मोटे थे जिसकी वजह से उनके दोस्त उनका काफी मज़ाक उड़ाते थे। इन सबके बाद वो हार नहीं माने और महज 13 साल की उम्र से दौड़ लगाने के लिए स्टेडियम ज्वाइन कर लिया। लेकिन इसके बाद भी उनका मन दौड़ में नहीं लगता था। स्टेडियम जाने के दौरान उन्होंने वहाँ पर दूसरे खिलाड़ियों को भाला फेंकते देखा, तो इसमें वह भी उतर गए। यहाँ से उनकी जिंदगी बदल गई। उन्होंने किसी की सुने बिना अपनी फिटनेस पर जमकर काम किया। बता दे की एक समय ऐसा भी था, जब नीरज के पास कोच नहीं था। तब भी उन्होंने हार नहीं मानी। नीरज ने यूट्यूब को ही अपना गुरु मानकर भाला फेंकने की बारीकियां सीखते थे। इसके बाद मैदान पर पहुँच जाते थे। उन्होंने वीडियो देखकर ही अपनी कई कमियों को दूर किया। शुरुआती दौर में नीरज को काफी मुश्किलें आईं। उन्हें आर्थिक तंगी के कारण काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उनके परिवार के पास नीरज को अच्छी क्वालिटी की जेवलिन दिलाने के पैसे नहीं होते थे। लेकिन नीरज बिना किसी निराशा के सस्ती जेवलिन से ही अपनी प्रेक्टिस जारी रखते थे। नीरज चोपड़ा के लिए ओलंपिक की राह आसान नहीं रही। दरसल उन्हें कंधे की चोट के कारण मैदान से दूर रहना पड़ा था । जबकि इस खेल का कंधा ही मजबूत कड़ी होता है। नीरज भाले के बिना रह नहीं सकते थे। कोरोना के कारण कई प्रतियोगिताएं नहीं खेल सके, पर हिम्मत नहीं हारी और ठीक होने पर दोबारा मैदान पर वापसी की. टोक्यो ओलंपिक में भारत को एक गोल्ड की दरकरार थी। भारत के इस सूखे को खत्म करने का काम नीरज चोपड़ा ने किया। साल 2008 के बाद भारत की तरफ से व्यक्तिगत गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज दूसरे भारतीय खिलाड़ी बन गए। नीरज ने अपने अभी तक के करियर में कई पदक जीते हैं। विश्व चैंपियनशिप को छोड़कर उन्होंने सभी प्रमुख टूर्नामेंटों में गोल्ड मेडल जीते हैं। नीरज की प्रतिभा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अपने पहले ही प्रयास में उन्होंने 86.65 मीटर का थ्रो फेंका था। वहीं अपने फाइनल मुकाबले में उन्होंने अपने प्रदर्शन को और बेहतर करते हुए 87.58 मीटर की दूरी पर भाला फेंका था। जिसकी वजह से नीरज भारत की ओर से एकमात्र गोल्ड जीतने वाले खिलाड़ी बने और उन्होंने इतिहास रच दिया।
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