• December 25, 2025

इंडस वाटर ट्रीटी और झेलम में बाढ़: पाकिस्तान में दहशत, किनारे बसे लोगों को इलाका खाली करने की अपील

मुजफ्फराबाद/श्रीनगर, 28 अप्रैल 2025: हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा इंडस वाटर ट्रीटी (सिंधु जल संधि) को निलंबित करने का फैसला क्षेत्रीय तनाव को नई ऊंचाइयों पर ले गया है। इस बीच, झेलम नदी में अचानक पानी के स्तर में वृद्धि के कारण पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के मुजफ्फराबाद और आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। पाकिस्तानी प्रशासन ने नदी किनारे बसे लोगों को तत्काल इलाका खाली करने की अपील की है, जिससे स्थानीय लोगों में दहशत फैल गई है। यह लेख इस घटनाक्रम, इसके कारणों, और इसके संभावित प्रभावों पर विस्तार से प्रकाश डालता है।
झेलम में बाढ़ और पाकिस्तान का आरोप
26 अप्रैल 2025 को, पाकिस्तानी मीडिया ने दावा किया कि भारत ने जम्मू-कश्मीर के उरी बांध से बिना किसी पूर्व सूचना के झेलम नदी में पानी छोड़ा, जिसके परिणामस्वरूप मुजफ्फराबाद के हट्टियन बाला, घारी दुपट्टा, और मझोई जैसे क्षेत्रों में जलस्तर तेजी से बढ़ गया। स्थानीय प्रशासन ने हट्टियन बाला में जल आपातकाल घोषित कर दिया, और मस्जिदों के माध्यम से लोगों को नदी किनारे से सुरक्षित स्थानों पर जाने की चेतावनी दी गई।
पाकिस्तानी अधिकारियों ने इसे “जल आतंकवाद” करार देते हुए भारत पर इंडस वाटर ट्रीटी का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। उनका दावा है कि यह पानी का अचानक रिलीज पहलगाम हमले के जवाब में भारत की रणनीतिक कार्रवाई का हिस्सा है। दूसरी ओर, भारतीय मीडिया और अधिकारियों ने इन दावों पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि उरी बांध से पानी छोड़ना भारी बारिश के कारण नियमित प्रक्रिया का हिस्सा था।
इंडस वाटर ट्रीटी का निलंबन
इंडस वाटर ट्रीटी, 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित एक जल-बंटवारा समझौता है, जो दोनों देशों के बीच छह नदियों—रावी, ब्यास, सतलुज (पूर्वी नदियाँ, भारत के नियंत्रण में) और सिंधु, झेलम, चिनाब (पश्चिमी नदियाँ, पाकिस्तान के नियंत्रण में)—के पानी के उपयोग को नियंत्रित करता है। इस संधि के तहत, भारत को पश्चिमी नदियों के पानी का गैर-उपभोगी उपयोग (जैसे, जलविद्युत उत्पादन) करने की अनुमति है, लेकिन वह पानी के प्रवाह को रोक या मोड़ नहीं सकता।
23 अप्रैल 2025 को, पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, जिसमें 26 लोग मारे गए, भारत ने इस संधि को निलंबित करने की घोषणा की। भारत का कहना है कि यह कदम तब तक लागू रहेगा जब तक पाकिस्तान “सीमा पार आतंकवाद” को पूरी तरह से बंद नहीं करता। इस निलंबन का मतलब है कि भारत अब पाकिस्तान के साथ जल-संबंधी डेटा साझा नहीं करेगा, न ही पाकिस्तानी अधिकारियों को जम्मू-कश्मीर में निरीक्षण की अनुमति देगा।
पाकिस्तान में बाढ़ का खतरा और दहशत
मुजफ्फराबाद में झेलम नदी के किनारे बसे लोग अचानक बढ़े जलस्तर से डर गए हैं। चकोठी सीमा से मुजफ्फराबाद शहर तक, नदी का प्रवाह सामान्य से 7-8 फीट ऊपर बताया गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि बिना पूर्व चेतावनी के पानी छोड़े जाने से उनकी फसलें, घर, और आजीविका खतरे में हैं। आपातकालीन सायरन और मस्जिदों से की गई घोषणाओं ने स्थिति को और तनावपूर्ण बना दिया है।
पाकिस्तानी विश्लेषक जावेद सिद्दीकी ने कहा, “भारत का संधि निलंबन और झेलम में पानी छोड़ना एक स्पष्ट संदेश है।” पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने भी उत्तेजक बयान देते हुए कहा कि अगर पाकिस्तान का पानी रोका गया, तो “नदी में या तो हमारा पानी बहेगा या भारत का खून।” ये बयान दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाते हैं।
भारत की स्थिति और सीमित बुनियादी ढांचा
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के पास वर्तमान में पश्चिमी नदियों के पानी को पूरी तरह रोकने या मोड़ने की बुनियादी ढांचागत क्षमता नहीं है। हिमांशु ठक्कर, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल के विशेषज्ञ, के अनुसार, भारत के अधिकांश जलविद्युत संयंत्र “रन-ऑफ-द-रिवर” प्रकार के हैं, जो बड़े पैमाने पर पानी को रोकने के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए हैं। भारत के पास केवल 1 मिलियन एकड़-फीट से कम पानी को स्टोर करने की क्षमता है, जो पाकिस्तान के 80% जल हिस्से की तुलना में नगण्य है।
हालांकि, संधि के निलंबन से भारत को पश्चिमी नदियों पर बांध और जलाशय बनाने की स्वतंत्रता मिल सकती है, जो लंबे समय में पाकिस्तान के जल प्रवाह को प्रभावित कर सकता है, खासकर शुष्क मौसम में। भारत के जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने कहा है कि सरकार पश्चिमी नदियों के पानी का अधिकतम उपयोग करने की रणनीति 

बना रही है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे प्रोजेक्ट्स को पूरा होने में 5-7 साल लग सकते हैं।
पाकिस्तान पर संभावित प्रभाव
पाकिस्तान की कृषि और अर्थव्यवस्था सिंधु नदी प्रणाली पर अत्यधिक निर्भर है। लगभग 90% सिंचाई और एक तिहाई जलविद्युत उत्पादन इस जल प्रणाली से होता है। संधि के निलंबन से सबसे तात्कालिक प्रभाव जल-संबंधी डेटा साझा न करने का है, जो बाढ़ की चेतावनी और सिंचाई योजना के लिए महत्वपूर्ण है।
पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि भारत पहले ही केवल 40% डेटा साझा कर रहा था, और अब इसकी पूर्ण अनुपस्थिति से सूखा या बाढ़ का जोखिम बढ़ सकता है। विशेष रूप से पंजाब और सिंध प्रांत, जो देश का 85% खाद्यान्न उत्पादन करते हैं, सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं।
क्या है “जल बम”का डर? 
पाकिस्तान में “जल बम” की आशंका भी चर्चा में है, जिसमें ऊपरी देश (भारत) अचानक बड़ी मात्रा में पानी छोड़कर निचले देश (पाकिस्तान) में बाढ़ पैदा कर सकता है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के बांध सीमा से दूर हैं, और ऐसा करने से पहले भारत का अपना क्षेत्र ही बाढ़ग्रस्त हो सकता है। फिर भी, बांधों से गाद (सिल्ट) बिना चेतावनी के छोड़ना पाकिस्तान में नुकसान पहुंचा सकता है।
कश्मीरी समाज का रुख और सीएम का बयान
पहलगाम हमले के बाद, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, “कश्मीरी लोग हमले नहीं चाहते। 26 साल में पहली बार मैंने लोगों को इतनी बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरते देखा है, जो हिंसा के खिलाफ अपनी आवाज उठा रहे हैं।” यह बयान कश्मीरी समाज के बदलते रुख को दर्शाता है, जहां लोग अब आतंकवाद के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं। इस संदर्भ में, झेलम में बाढ़ और संधि का निलंबन क्षेत्रीय स्थिरता के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है।
आगे की राह
झेलम में बाढ़ और इंडस वाटर ट्रीटी का निलंबन दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है। पाकिस्तान ने इसे “युद्ध की कार्रवाई” करार दिया है, जबकि भारत इसे आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्रवाई बता रहा है। क्षेत्रीय शक्तियां जैसे ईरान और सऊदी अरब ने मध्यस्थता की पेशकश की है, लेकिन दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी इसे जटिल बनाती है।
कश्मीर में शांति और स्थिरता के लिए, दोनों देशों को बातचीत के रास्ते पर लौटना होगा। भारत को अपनी बुनियादी ढांचागत सीमाओं को ध्यान में रखते हुए रणनीति बनानी होगी, जबकि पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर ठोस कदम उठाने होंगे। तब तक, झेलम के किनारे बसे लोग अनिश्चितता और डर के साये में जीने को मजबूर हैं।
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