संभल की जामा मस्जिद में रंगाई-पुताई की इजाजत, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएसआई को दिया आदेश
12 मार्च 2025 उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित ऐतिहासिक जामा मस्जिद, जो अपनी वास्तुकला और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, को लेकर हाल ही में एक महत्वपूर्ण न्यायिक आदेश पारित हुआ है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को यह आदेश दिया कि वह इस मस्जिद की रंगाई-पुताई की अनुमति दे। इस आदेश ने न केवल मस्जिद के संरक्षकों को राहत दी, बल्कि यह निर्णय भारतीय संस्कृति और इतिहास के संरक्षण के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस लेख में हम इस मामले के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, और यह समझने की कोशिश करेंगे कि यह आदेश क्यों महत्वपूर्ण है और इससे सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
जामा मस्जिद का ऐतिहासिक महत्व
संभल की जामा मस्जिद एक प्राचीन मस्जिद है, जो अपनी स्थापत्य कला और ऐतिहासिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है। यह मस्जिद मुग़ल काल के समय में बनी थी, और इसे उस समय के स्थापत्य शिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। जामा मस्जिद में विशिष्ट मुग़ल वास्तुकला के तत्व जैसे गुंबद, मेहराब और जालीwork देखने को मिलते हैं, जो इसे एक अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर बनाते हैं। यह मस्जिद न केवल मुस्लिम समुदाय के लिए बल्कि सम्पूर्ण भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के लिए भी महत्वपूर्ण है।
लेकिन समय के साथ-साथ इस ऐतिहासिक मस्जिद की संरचना में खामियां आ गई थीं, और मस्जिद की दीवारों और अन्य हिस्सों की स्थिति खराब होने लगी थी। इस कारण मस्जिद के रंगाई-पुताई का सवाल उठने लगा, ताकि इसके सौंदर्य और ऐतिहासिक महत्त्व को बचाया जा सके।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की भूमिका
भारत में पुरातात्विक और ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के जिम्मे होता है। एएसआई एक सरकारी संस्था है, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत की ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा करना और उनका संरक्षण करना है। एएसआई किसी भी ऐतिहासिक स्थल या संरचना में किसी भी प्रकार के नवीनीकरण, मरम्मत, रंगाई-पुताई या अन्य कार्यों को करने से पहले सख्त नियमों और दिशा-निर्देशों का पालन करता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि किसी भी कार्य से उस ऐतिहासिक स्थल की असल शुद्धता और पहचान को नुकसान न पहुंचे।
संभल की जामा मस्जिद के मामले में, स्थानीय अधिकारियों और धार्मिक समुदायों ने मस्जिद की रंगाई-पुताई की अनुमति देने के लिए एएसआई से अपील की थी। लेकिन एएसआई की तरफ से कई आपत्तियां आई थीं, क्योंकि रंगाई-पुताई से मस्जिद के वास्तुशिल्पीय स्वरूप को नुकसान हो सकता था। एएसआई की चिंता यह थी कि रंगाई-पुताई से मस्जिद की ऐतिहासिकता और उसकी पुरानी स्थापत्य विशेषताएं खत्म हो सकती हैं, जो उसके सांस्कृतिक महत्व को प्रभावित कर सकती हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले पर विचार करते हुए एएसआई को यह आदेश दिया कि वह संभल की जामा मस्जिद की रंगाई-पुताई की अनुमति दे। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई कार्य ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के दायरे में आता है, तो उसे केवल एएसआई के दिशानिर्देशों के तहत किया जाना चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि एएसआई को इसके लिए किसी प्रकार की ढिलाई नहीं करनी चाहिए, ताकि मस्जिद का ऐतिहासिक स्वरूप बरकरार रहे। कोर्ट ने यह भी कहा कि मस्जिद की मरम्मत और रंगाई-पुताई के लिए एक विशेषज्ञ टीम गठित की जाए, जो इस कार्य को शुद्ध रूप से ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से सुरक्षित रखे।
इस निर्णय के बाद, स्थानीय प्रशासन और धार्मिक संगठनों ने राहत की सांस ली, क्योंकि इससे पहले मस्जिद के रखरखाव और सुधार के मामले में कई अड़चनें आ रही थीं। यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि भारतीय न्यायपालिका भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के प्रति संवेदनशील है और इसके महत्व को समझते हुए, समय-समय पर उचित निर्णय लेकर इतिहास और संस्कृति की रक्षा करती है।
सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण केवल एक कानूनी या सरकारी जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की जिम्मेदारी भी है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पहचान उसकी धरोहरों में समाई हुई है, और इनका संरक्षण करना हम सभी का कर्तव्य है। ऐतिहासिक मस्जिदों, मंदिरों, किलों, महलों और अन्य सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण न केवल हमारे अतीत को संरक्षित करता है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को भी हमारे इतिहास और सांस्कृतिक मूल्यों से अवगत कराता है।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट होता है कि भारतीय न्यायपालिका सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के मामले में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करती है। इससे पहले भी कई बार अदालतों ने ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के लिए कदम उठाए हैं, जैसे कि दिल्ली के कुतुब मीनार और ताज महल के मामलों में।
भविष्य की दिशा
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि अगर रंगाई-पुताई या मरम्मत का काम किया जाता है, तो वह उस ऐतिहासिक संरचना की असली सुंदरता और वास्तुशिल्पीय रूप को नुकसान नहीं पहुँचाएगा। साथ ही, यह न्यायिक निर्णय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को भी यह संदेश देता है कि उन्हें अपनी प्रक्रियाओं में लचीलापन दिखाना चाहिए, ताकि ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने के साथ-साथ उनका सौंदर्य भी बनाए रखा जा सके।
संभल की जामा मस्जिद के मामले में इस निर्णय से यह आशा जगी है कि अन्य ऐतिहासिक स्थलों के मामले में भी ऐसी ही प्रक्रिया अपनाई जाएगी, और हमारी सांस्कृतिक धरोहरों की पूरी दुनिया में एक पहचान बनी रहेगी।
