रोजगार सृजन केंद्र सरकार की प्राथमिकता
पिछले 10 वर्ष में मोदी सरकार ने स्पष्ट रूप से निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने की नीति पर कार्य किया है। सरकार का ध्येय वाक्य था ”न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन”। स्पष्ट है कि सरकार जो कार्य करेगी और रोजगार पैदा करेगी दोनों ही दृष्टियों से उसके आकार में कमी आएगी। सरकार की सभी नीतियों और सुशासन का उद्देश्य निजी क्षेत्र की सहभागिता को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में रोजगार पैदा करना और आर्थिक समृद्धि को तेज करना होगा। इसलिए सरकार राजकोषीय घाटे को कम करके बाजार से कम ऋण लेगी, जिससे की निजी क्षेत्र के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध हो सके। आधारिक संरचना पर अधिक व्यय करके उसे मजबूत करने के लिए प्रयास करेगी जिससे कि निजी निवेश बढ़े। अर्थव्यवस्था के औपचारिकरण एवं डिजिटलीकरण से सरकार अपनी दक्षता को बढ़ाएगी। साथ ही अर्थव्यवस्था में होने वाले हस्तक्षेप को कम करेगी जिससे कि इंस्पेक्टरराज, लालफीताशाही या नौकरशाही के हस्तक्षेप में कमी आए। कुल मिलाकर यह सरकार की शुरू से नीति रही है कि निजी क्षेत्र को बढ़ावा देकर आर्थिक समृद्धि को तेज किया जाए, जिससे अर्थव्यवस्था में रोजगार बढ़ेगा।
मोदी सरकार की एक खासियत है नीतिगत निरंतरता। पिछले 10 वर्ष में सरकार ने नीतियों की जो दिशा निर्धारित की है नए बजट में उसी को आगे बढ़ाया गया है। परंतु साथ ही सरकार ने उन मुद्दों को भी बजट में समाहित करने का प्रयास किया है जिसके कारण उसे चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई। इसीलिए रोजगार के नए अवसरों के सृजन पर खास जोर दिया गया है। बजट 2024 में ऐसे नौ क्षेत्रों का उल्लेख किया गया है जिन पर आने वाले वर्षों में भी सरकार का फोकस रहेगा और जो भारत को विकसित देश की कतार में खड़ी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। ये क्षेत्र हैं – कृषि क्षेत्र, कौशल विकास, मानव संसाधन विकास और सामाजिक न्याय, विनिर्माण एवं सेवाएं, बुनियादी ढांचा, शहरी विकास, नवाचार शोध एवं विकास, ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक सुधार। इन नौ क्षेत्रों से संबंधित ज्यादातर घोषणाएं रोजगार को बढ़ाने वाली है और युवाओं को केंद्र में रखकर के तैयार की गई है।
इस वित्तीय वर्ष में भी सरकार ने बुनियादी ढांचे पर सकल घरेलू उत्पाद का 3.4 प्रतिशत व्यय रखा है जो कि लगभग 11.11 लाख करोड रुपये है। साथ ही राज्यों को 1.50 लाख करोड रुपये बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बिना ब्याज के देने की घोषणा की गई है। यह सरकार की नीतिगत निरंतरता को दर्शाता है। बुनियादी ढांचे पर निवेश बढ़ने से भी बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन की संभावना रहती है। भारत में पर्यटन क्षेत्र की असीम संभावनाएं हैं बल्कि रोजगार सृजन के लिहाज से भी यह क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण है। बजट में पर्यटन के लिए ढाई हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
रोजगार वृद्धिः सरकार ने रोजगार बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार की योजनाओं की घोषणा की है जोकि विशेष रूप से निजी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित कर सकते हैं। बजट के अनुसार अगले दो से चार वर्षो में चार करोड़ से अधिक युवाओं को रोजगार मिलेगा, जिस पर 2 लाख करोड रुपये का व्यय होगा।पिछले कार्यकाल में, सरकार की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत बड़ी कंपनियों को सब्सिडी प्रदान की गई जोकि उत्पादन के स्तर से जुड़ी थी। भारत जैसे श्रम-अधिशेष देश में पीएलआई ने रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई। पीएलआई से कंपनियों के लिए श्रम को मशीनरी से बदलना और सब्सिडी लाभ लेना ही मुख्य रहा। इस बजट की बड़ी प्राथमिकता रोजगार और कौशल विकास है। इन योजनाओं में सरकार पहली बार कर्मचारियों और उनके नियोक्ताओं को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। यह पीएलआई से ”इम्प्लॉयमेंट लिंक्ड इंसेंटिव” या ईएलआई में बदलाव है।
बजट में रोजगार पैदा करने के लिए सरकार निजी क्षेत्र को मदद देगी। प्रधानमंत्री रोजगार और कौशल प्रशिक्षण पैकेज के तहत निजी कंपनियों के लिए तीन तरह के प्रोत्साहन के घोषणा की गई है। पहला, निजी कंपनी में पहली बार नौकरी पाने वाले युवा को पहले महीने का वेतन का भुगतान सरकार करेगी यदि वेतन प्रति माह एक लाख रुपये से कम है। इसमें प्रति युवा अधिकतम सहायता राशि ₹15000 निर्धारित की गई है। या रकम सीधे संबंधित व्यक्ति के खाते में जाएगी और तीन किस्तों में दी जाएगी। दूसरा, 1 वर्ष में 50 या उससे अधिक नौकरी सृजित करने वाले प्रतिष्ठानों में पहली बार नौकरी पाने वाले युवाओं के वेतन का एक हिस्सा सरकार देगी। पहले और दूसरे वर्ष में वेतन का 24 प्रतिशत, तीसरे वर्ष में 16 और चौथे वर्ष में 8 प्रतिशत प्रोत्साहन राशि दी जाएगी । यह राशि नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच बराबर-बराबर बांट दी जाएगी। तीसरा, ईपीएफओ में अंशदान करने वाले नियोक्ताओं को विनिर्माण क्षेत्र में नई नौकरी सृजित करने पर सरकार सहायता देगी। ईपीएफओ में नियोक्ता और कर्मचारियों की राशि के एक हिस्से का भुगतान सरकार करेगी यदि नौकरी पाने वाला युवा पहले ईपीएफओ में शामिल न हुआ हो और वेतन प्रतिमाह एक लाख रुपये से कम हो।
युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए सरकार की एक और योजना महत्वपूर्ण है। देश की शीर्ष 500 कंपनियों में उन्हें पढ़ाई के तुरंत बाद इंटर्नशिप का एक मौका मिलेगा। इसके अंतर्गत 5 वर्ष में एक करोड़ युवाओं के लिए प्रशिक्षण की योजना है जिसमें 21 से 24 साल की युवा आवेदन कर सकते हैं। इस दौरान 12 महीने के प्रशिक्षण के साथ ही प्रतिमाह ₹5000 का भत्ता मिलेगा। इस दौरान ₹6000 की एकमुश्त मदद अलग से मिलेगी। इस दौरान इंटर्नशिप व प्रशिक्षण लागत पर होने वाले कुल व्यय का 10 प्रतिशत कंपनियां अपने सीएसआर फंड से व्यय करेंगी। उल्लेखनीय है कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत 4 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम में छात्रों के लिए इंटर्नशिप अनिवार्य है। लक्ष्य यह है कि स्नातक के बाद छात्रों के पास कुछ रोजगारपरक कौशल का विकास हो। इस तरह की पहल शैक्षणिक संस्थाओं और उद्योगों के बीच संबंध मजबूत करने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। परंतु इस योजना की सफलता कंपनियों की रुचि और सहयोग पर निर्भर करेगा।
उच्च शिक्षा के लिए शिक्षा ऋण में राहत भी एक उचित कदम है भारत में उच्च शिक्षा के लिए 10 लाख रुपये तक शिक्षा ऋण दिया जाएगा और ब्याज में भी तीन प्रतिशत की छूट दी जाएगी। कौशल विकास के तहत बजट में देश के 1000 आईटीआई के उन्नयन के लिए अगले 5 वर्षों में 30,000 करोड रुपये व्यय करने की योजना है। आईटीआई को बाजार की जरूरत के अनुसार कौशल हब के रूप में विकसित करने का सरकार की योजना है। सरकार का लक्ष्य 5 वर्ष में 20 लाख युवाओं के कौशल विकास का है। रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली पीएम मुद्रा योजना के अंतर्गत तरुण श्रेणी में पंजीकृत उद्यमी बैंकों से अब ₹20 लाख तक का ऋण ले सकते हैं। पहले इसके अंतर्गत सिर्फ 10 लाख रुपये तक का ही ऋण लेने का प्रावधान था। पिछले 8 वर्षों में इस योजना के अंतर्गत लगभग 41 करोड़ लोगों को लाभ दिया गया है। महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से कामकाजी महिला छात्रावास की स्थापना और उद्योग के सहयोग से क्रेच की स्थापना भी एक सराहनीय पहल है।
वैसे जिस प्रकार से तकनीकी बदल रही है जरूरी कौशल में बदलाव आ रहा है और अर्थव्यवस्था की जो जरूरतें हैं, उसके अनुरूप अभी भी भारत में युवाओं को वैश्विक बाजार की बदलती मांग के अनुरूप तैयार करने के लिए यह कदम बहुत थोड़े हैं। भारत में उच्च शिक्षा सिर्फ डिग्रियां हासिल करने का एक माध्यम बनकर रह गया है। अच्छे संस्थान गिने-चुने हैं। अभी भी बाजार के हिसाब से और उद्योग जगत की भागीदारी को सुनिश्चित करने वाले पाठ्यक्रमों और संस्थाओं की बड़े पैमाने पर कमी है, नवाचार को बढ़ावा देने और कौशल हासिल कर रोजगार की क्षमता हासिल करने वाले संस्थाओं की बड़े पैमाने पर कमी है। सरकार और निजी क्षेत्र अभी भी शोध और अनुसंधान पर बहुत कम व्यय करते हैं। हमारे अधिकतर शिक्षण संस्थान बाजार की चुनौतियों का सामना करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। पूरे उच्च शिक्षा के इको सिस्टम को बदलने की आवश्यकता है जिस पर सरकार के प्रयास बहुत ही नाकाफी हैं।
रोजगार पैदा करने के संदर्भ में एक बात बहुत महत्वपूर्ण है, और वह है अधिक उत्पादकता और अधिक आय वाला रोजगार उत्पन्न हो तथा पारंपरिक क्षेत्र पर रोजगार सृजन की निर्भरता कम किया जाए। भारत में अभी भी कुल श्रमशक्ति का लगभग 45प्रतिशत, लगभग 57 करोड लोग कृषि क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जबकि किसी क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान लगभग 16 प्रतिशत रह गया है। इसलिए आवश्यकता यह है कि ऐसे क्षेत्रों में रोजगार सृजन पर फोकस किया जाए जोकि बड़ी संख्या में रोजगार सृजन करने की क्षमता रखते हैं। बजट में सरकार ने इस पर थोड़ा ध्यान दिया है। विनिर्माण, निर्माण, कपड़ा, पर्यटन और सेवा क्षेत्र बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन कर सकते हैं।पिछले बजटों में कपड़ा और चमड़े के उत्पादों जैसे श्रम-गहन उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए बहुत कम काम किया गया है।
इस बजट में देश के 100 शहरों में प्लग एंड प्ले वाले औद्योगिक पार्क बनाने की घोषणा की गई है, जिसमें किसी वस्तु के उत्पादन से जुड़ी सभी सुविधाएं होंगी। केंद्र राज्य और निजी क्षेत्र की आपसी सहभागिता से विकसित ये औद्योगिक पार्क विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार और उत्पादन, साथ ही निर्यात बढ़ाने के लिहाज से महत्वपूर्ण होंगे। इससे कम से कम 100 प्रकार की वस्तुओं का बड़े पैमाने पर उत्पादन हो सकता है। औद्योगिक पार्क में ही श्रमिकों के लिए आवास की भी सुविधा होगी। राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम के तहत 12 औद्योगिक पार्क बनाने की भी घोषणा की गई है।
विनिर्माण के साथ ही निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए कई फिनिश्ड उत्पादों के कच्चे माल के आयात शुल्क में कटौती की गई है जिससे लागत कम हो। चमड़ा और कपड़ा उद्योग में कच्चे माल के आयात शुल्क में कटौती रोजगार को बढ़ावा देने के लिहाज से महत्वपूर्ण है। सभी प्रकार के क्रिटिकल मिनरल्स के आयात पर लगने वाले आयात शुल्क को भी पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है। इससे मोबाइल फोन,सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रिक वाहन जैसे क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलेगा।भारत में पर्यटन क्षेत्र की असीम संभावनाएं हैं बल्कि रोजगार सृजन के लिहाज से भी यह क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण है बजट में पर्यटन के लिए ढाई हजार करोड रुपये का प्रावधान किया गया है। एंजल टैक्स को समाप्त करके सरकार ने स्टार्टअप के लिए भी प्रोत्साहन दिया है। इससे स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा मिलेगा और इसमें शोध और अनुसंधान भी बढ़ेगा नए उद्योगों को निवेशकों को विदेश से पूंजी मिलने का रास्ता आसान होगा।
मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यमः नोटबंदी और महामारी के कारण लगे लॉकडाउन जैसे अचानक आए अप्रत्याशित झटकों से लेकर जीएसटी और डिजिटलीकरण जैसे नीतिगत बदलावों तक, मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यम या एमएसएमई को तगड़ा वित्तीय झटका लगा। ये उद्यम विनिर्माण उत्पादन का लगभग 45 प्रतिशत, निर्यात का 40 प्रतिशत से अधिक और सकल घरेलू उत्पाद का 28 प्रतिशत से अधिक योगदान करते हैं, जबकि 11 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देते हैं। इनसे उद्योगों का विकेंद्रीकरण होता है और क्षेत्रीय असमानताएं भी कम होने की सबसे अधिक गुंजाइश बनती है। फिर भी अधिकांश नीतिगत निर्णय, प्रोत्साहन और फोकस बड़े व्यवसायों पर केंद्रित रहे।
बजट में एमएसएमई और विनिर्माण, विशेष रूप से श्रम आधारित विनिर्माण, पर विशेष फोकस है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को मदद के लिए बजट में मशीनरी की खरीदारी के लिए क्रेडिट गारंटी स्कीम शुरू की गई है जिसके तहत सेल्फ फाइनेंसिंग गारंटी फंड बनाया जाएगा जिसमें 100 करोड रुपये तक के ऋण की गारंटी होगी। एमएसएमई को डिजिटल लेनदेन के आधार पर भी बैंक रेट देंगे। एमएसएमई से जुड़े सभी बड़े क्लस्टर में अगले तीन वर्ष में सिडबी अपने शाखा खोलेगा और वहां के एमएसएमई को ऋण देगा। इस क्षेत्र के निर्यात प्रोत्साहन के लिए निजी सरकारी सहयोग से बजट में ई-कॉमर्स एक्सपोर्ट हब बनाने की भी घोषणा की गई है जो कि निजी सरकारी सहभागिता से बनाए जाएंगे। विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार एमएसएमई को उत्पादन आधारित प्रोत्साहन देगी, ऐसी संभावना थी, परंतु सरकार ने ऐसी घोषणा नहीं की। वर्तमान में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना का लाभ लेने के लिए 100 करोड़ से अधिक निवेश की आवश्यकता होती है इसलिए एमएसएमई को इसका लाभ नहीं मिल पाता है।
सरकार के रोजगार के संबंध में प्रयास श्रम बाजार के आपूर्ति पक्ष पर ही फोकस है। अभी भी रोजगार को बढ़ाने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की कमी दिखती है। रोजगार के बाजार में श्रम की मांग पैदा करना, रोजगार पैदा करना अभी भी एक समस्या है। रोजगार सृजन वाले क्षेत्रों पर अत्यधिक फोकस करके, उनके लिए बुनियादी सुविधाओं का विकास करके, कर व अन्य तरह के प्रोत्साहन से मध्यम व लघु उद्योगों क्षेत्र को बढ़ावा देकर बाजार में श्रम मांग को बढ़ाने पर अधिक बल देने की आवश्यकता है। एमएसएमई देश की कुल श्रम शक्ति के लगभग दो तिहाई से अधिक को रोजगार देते हैं परंतु अभी भी इनकी वास्तविक समस्याओं को हल करने का आधार तंत्र तैयार नहीं हो पाया है। अभी भी यह क्षेत्र इंस्पेक्टर राज के भय से ग्रस्त है, निवेश के लिए पर्याप्त पूंजी तक पहुंच में अनेक बाधाएं हैं, इन उद्योगों में तकनीकी समस्याएं हैं, भूमि और श्रम सुधारो के अनुकूल न होने का दंश भी यह झेल रहे हैं। इन उद्योगों को तकनीक उन्नयन और नवाचार तथा विपणन में पर्याप्त मदद की आवश्यकता है। इन उद्यमों के लिए अनुकूल कारोबारी माहौल को बढ़ावा देने में अभी भी सरकार सफल नहीं हो सकी है।
अंत में, बजट समावेशी विकास और आर्थिक लचीलापन की दिशा में भारत की यात्रा में एक मील का पत्थर है, जोकि दीर्घकाल के विकास की ठोस रणनीति की ओर इंगित करता है। रोजगार सृजन, बुनियादी ढांचे के विकास, एमएसएमई के लिए समर्थन और सस्ते आवास पर रणनीतिक जोर देने के साथ, यह बजट राजकोषीय घाटे को 4.9 प्रतिशत तक कम करते हुए देश की महत्वपूर्ण जरूरतों को संबोधित करता है। बजट में ऐसी योजनाओं की घोषणा है जो नियोक्ताओं और शिक्षाविदों को शामिल करके सीधे रोजगार को बढ़ावा देने के साथ-साथ कौशल को भी बढ़ावा देंगी। अधिक रोजगार की आवश्यकता भारत के आर्थिक विकास के केंद्र में है। बजट में अर्थव्यवस्था की वर्तमान हालात और भविष्य की संभावनाओं तथा चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न वर्गों और क्षेत्रों की स्थिति में सुधार के लिए प्रयास किए गए। रोजगार बढ़ाने के लिए ठोस उपायों की घोषणा की है जोकि आवश्यक थे, परन्तु उसके परिणाम निश्चित नहीं हैं।