जाति जनगणना और पीडीए की एकजुटता: अखिलेश यादव ने सामाजिक न्याय की जीत को बताया ऐतिहासिक कदम
लखनऊ, 1 मई 2025: समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार के जाति जनगणना कराने के फैसले को सामाजिक न्याय की दिशा में एक ऐतिहासिक जीत करार दिया है। लखनऊ में आयोजित एक पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा कि “जाति जनगणना का फैसला 90 फीसदी पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की एकजुटता की 100 फीसदी जीत है।” अखिलेश ने जोर देकर कहा कि देश की 90 फीसदी आबादी पीडीए समुदाय से आती है, और अगर यह समुदाय एकजुट हो जाए तो उनकी जीत सुनिश्चित है। उन्होंने सरकार से अपील की कि जाति जनगणना को पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ कराया जाए, ताकि हर जाति को उसकी जनसंख्या के अनुपात में हक और अधिकार मिल सके। यह बयान न केवल उत्तर प्रदेश की सियासत में हलचल मचा रहा है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी सामाजिक न्याय और समावेशी राजनीति के लिए एक नया विमर्श शुरू कर रहा है।
जाति जनगणना: सामाजिक न्याय का नया अध्याय
अखिलेश यादव ने अपनी पत्रकार वार्ता में केंद्र सरकार के हालिया फैसले का स्वागत किया, जिसमें आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े शामिल करने की घोषणा की गई है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को बताया था कि जनगणना में जातियों की गणना को “पारदर्शी” तरीके से शामिल किया जाएगा। अखिलेश ने इसे इंडिया गठबंधन और पीडीए की निरंतर लड़ाई का परिणाम बताया। उन्होंने कहा, “हम सबके सम्मिलित दबाव से भाजपा सरकार मजबूरन यह निर्णय लेने को बाध्य हुई है। यह सामाजिक न्याय की लड़ाई में पीडीए की जीत का एक अतिमहत्वपूर्ण चरण है।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि जाति जनगणना सामाजिक न्याय का गणितीय आधार है। यह न केवल विभिन्न जातियों की जनसंख्या का सटीक आंकड़ा देगी, बल्कि उनके सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को भी उजागर करेगी। अखिलेश ने बिहार की जातिगत जनगणना का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां 63 फीसदी ओबीसी आबादी के आंकड़े ने सामाजिक न्याय की दिशा में नया रास्ता खोला। उन्होंने अनुमान लगाया कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी आबादी 40 से 45 फीसदी तक हो सकती है, जो सियासी समीकरणों को पूरी तरह बदल सकती है।
90 फीसदी पीडीए: सियासत का नया मंत्र
अखिलेश यादव ने अपनी पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) रणनीति को फिर से रेखांकित करते हुए कहा कि देश की 90 फीसदी आबादी इस समुदाय से आती है। उन्होंने कहा, “ये लोग अगर साथ आ जाते हैं, तो जीत सौ फीसदी पक्की है।” सपा अध्यक्ष ने दावा किया कि पीडीए की एकजुटता न केवल सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेगी, बल्कि भविष्य की राजनीति की दिशा भी तय करेगी।
उन्होंने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा कि जब लोगों को अपनी जनसंख्या का सटीक आंकड़ा पता चलता है, तो उनमें आत्मविश्वास जागता है। यह आत्मविश्वास उनकी एकता को मजबूत करता है और सामाजिक-आर्थिक अधिकारों की मांग को और बल देता है। अखिलेश ने सपा के पुराने नारे “जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी” को फिर से उछाला, जो जातिगत जनगणना के बाद और प्रासंगिक हो गया है।

भाजपा पर निशाना: “वर्चस्ववादियों की हार”
अखिलेश ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि भाजपा ने लंबे समय तक जाति जनगणना का विरोध किया, क्योंकि यह उनके “वर्चस्ववादी” एजेंडे के खिलाफ है। उन्होंने चेतावनी दी कि “भाजपा सरकार अपनी चुनावी धांधली को जाति जनगणना से दूर रखे। एक ईमानदार जनगणना ही हर जाति को उसका हक दिलाएगी।” सपा अध्यक्ष ने दावा किया कि भाजपा के शासन में पीडीए समुदाय के साथ भेदभाव और अन्याय बढ़ा है, और जाति जनगणना इस अन्याय को उजागर करने का एक बड़ा कदम है।
उन्होंने हाल के कुछ उदाहरणों का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उत्तर प्रदेश में फर्जी एनकाउंटर में 60 फीसदी पीड़ित पीडीए समुदाय से थे। इसके अलावा, उन्होंने उपचुनावों में मुस्लिम मतदाताओं को वोट देने से रोकने और चुन-चुनकर उनके घरों को बुलडोजर से तोड़ने के आरोप भी लगाए। अखिलेश ने कहा, “संविधान हमारा कवच है, और यह पीडीए के लिए सबसे बड़ा सहारा है। हम इसे बचाने और जाति जनगणना कराने के लिए हर लड़ाई लड़ेंगे।”
सपा का इतिहास और नेताजी का योगदान
अखिलेश ने अपने पिता और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव को याद करते हुए कहा कि “नेताजी ने संसद में हर सरकार के सामने जाति जनगणना का मुद्दा पुरजोर तरीके से उठाया था।” उन्होंने कहा कि मुलायम सिंह जानते थे कि बिना जातिगत आंकड़ों के कमजोर और पिछड़े समुदायों के अधिकारों की हकमारी होती रहेगी। अखिलेश ने उन सभी समाजवादी नेताओं को नमन किया, जिन्होंने इस मुद्दे के लिए अपना जीवन समर्पित किया।
उन्होंने सपा की सामाजिक न्याय की लड़ाई को रेखांकित करते हुए कहा कि पार्टी ने हमेशा पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों के हक की आवाज उठाई है। 2012 से 2017 तक उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल में लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे, लखनऊ मेट्रो, मुफ्त लैपटॉप वितरण और लोहिया आवास योजना जैसी योजनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सपा ने हमेशा समाज के हर वर्ग को साथ लेकर विकास किया।
इंडिया गठबंधन की भूमिका
अखिलेश ने इंडिया गठबंधन को भी इस जीत का श्रेय दिया। उन्होंने कहा कि गठबंधन के सभी दलों ने एक सुर में जाति जनगणना की मांग उठाई, जिसके दबाव में भाजपा को यह फैसला लेना पड़ा। उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी, आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद और अन्य विपक्षी नेताओं के प्रयासों की सराहना की। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि सपा और पीडीए की रणनीति ने इस मुद्दे को जन-जन तक पहुंचाया।
पारदर्शी जनगणना की मांग
अखिलेश ने सरकार से मांग की कि जाति जनगणना को पूरी पारदर्शिता के साथ कराया जाए। उन्होंने कहा कि यह भारत की पहली डिजिटल जनगणना होगी, जिसमें मोबाइल ऐप और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के जरिए डेटा संग्रह होगा। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इसमें कोई हेरफेर हुआ, तो सपा सड़क से लेकर संसद तक इसका विरोध करेगी।
उन्होंने यह भी कहा कि जनगणना के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को अपडेट करने की प्रक्रिया पर नजर रखी जाएगी, क्योंकि इससे पहले NPR और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लेकर विवाद हो चुके हैं। अखिलेश ने कहा, “हम नहीं चाहते कि जनगणना के नाम पर किसी समुदाय को डराया जाए।”
सियासी समीकरण और भविष्य
जाति जनगणना का मुद्दा उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। हुकुम सिंह पैनल की 2001 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में ओबीसी आबादी 54 फीसदी, सवर्ण 18-20 फीसदी, और दलित 25 फीसदी थी। अखिलेश का मानना है कि नई जनगणना इन आंकड़ों को और स्पष्ट करेगी, जिससे सपा को अपनी पीडीए रणनीति को और मजबूत करने का मौका मिलेगा।
उन्होंने 2027 के विधानसभा चुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि सपा की सरकार बनने पर पीडीए को उसका पूरा हक दिलाया जाएगा। उन्होंने गोरखपुर में अपने हाल के बयान को दोहराया, जिसमें उन्होंने कहा था कि “2027 में सपा की सरकार बनेगी, और बुलडोजर का रुख गोरखपुर की ओर होगा।” यह बयान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर सीधा हमला था।