काशी में स्वयंभू शिवलिंग पर लगता है खिचड़ी का भोग

 काशी में स्वयंभू शिवलिंग पर लगता है खिचड़ी का भोग

वाराणसी, 25 जुलाई । भगवान आदि विश्वेश्वर की नगरी काशी का कण-कण शिवमय है। यहां शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के प्रतीक मंदिर विराजमान हैं। तीन खंड में विभाजित काशी के केदारखंड, विश्वेश्वर खंड और ओंकारेश्वर खंड में स्थित हर शिव मंदिर की अपनी महिमा और विशेषता है। ऐसे ही काशी के केदारखंड में केदारनाथ महादवे स्वयं गौरी केदारेश्वर स्वरूप में विराजते हैं। केदारघाट स्थित मंदिर में भगवान केदारेश्वर का शिवलिंग दो भागों में बंटा है। शिवलिंग के एक भाग में स्वयं महादेव और माता पार्वती हैं तो दूसरे भाग में जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु अपनी अर्धांगिनी मां लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं। दोनों शिवलिंगों के दर्शन से भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी के दर्शन व कृपा की प्राप्ति होती है। स्वयंभू शिवलिंग पर बेलपत्र, दूध और गंगाजल के साथ ही भोग में खिचड़ी चढ़ाई जाती है।

काशी खंड के अनुसार भगवान स्वयं खिचड़ी का भोग ग्रहण करने आते हैं। शिव आराधना समिति के डॉ मृदुल मिश्रा बताते हैं कि इस मंदिर में बिना सिला हुआ वस्त्र पहनकर ही ब्राह्मण शिवलिंग की चार पहर की आरती करते हैं। शिवलिंग पर बेलपत्र, दूध, गंगाजल के साथ ही भोग में खिचड़ी जरूर लगाई जाती है। यहां पर दर्शन करने से श्रद्धालु शिवभक्तों को केदारनाथ धाम से 7 गुना अधिक पुण्य फल मिलता है। मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा है। आज जहां मंदिर है वहां कभी ऋषि मान्धाता कुटिया बनाकर रहते थे। शिवभक्त ऋषि जप-तप के बाद भोजन करते थे। वे भोजन करने से पहले भगवान शिव और पार्वती जी के लिए पहले अन्न निकाल देते थे। फिर उस खिचड़ी के दो भाग कर देते थे।

शिवपुराण के मुताबिक ऋषि मान्धाता अपने हाथों से बनाई खिचड़ी के एक हिस्से को लेकर रोजाना पहले गौरी केदारेश्वर को खिलाने हिमालय पर्वत जाते और फिर वापस आने पर आधी खिचड़ी के दो भाग कर एक हिस्सा अतिथि को देते और एक स्वयं खाते। एक बार ऋषि मान्धाता बीमार हो गये। उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गयी। एक दिन वो खिचड़ी बना कर भगवान को भोग लगाने के लिए हिमालय जाने में असमर्थ हो गये। तब बहुत दुखी होकर उन्होंने महादेव को पुकार लगायी और बेहोश हो गए। तब हिमालय से गौरी केदारेश्वर इस स्थान पर प्रकट हुए और खुद ही अपने हिस्से की खिचड़ी लेकर भोग लगाया। महादेव ने आधे हिस्से में से वहां मौजूद मान्धाता ऋषि के अतिथियों को मां पार्वती के साथ अपने हाथों से खिलाया। इसके बाद ऋषि मान्धाता को जगा कर उन्हें खिचड़ी खिलाई और आशीर्वाद दिया कि आज के बाद मेरा एक स्वरूप काशी में वास करेगा। यह मंदिर श्री काशी विश्वनाथ से भी प्राचीन है।

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