• December 25, 2025

अखलाक मॉब लिंचिंग कांड: सरकार की केस वापसी की अर्जी खारिज, अब फास्ट ट्रैक कोर्ट में होगी रोजाना सुनवाई

गौतमबुद्ध नगर (ग्रेटर नोएडा): दादरी के चर्चित बिसाहड़ा गांव के अखलाक मॉब लिंचिंग मामले में मंगलवार को एक बड़ा न्यायिक घटनाक्रम सामने आया है। उत्तर प्रदेश की एक फास्ट ट्रैक अदालत (FTC) ने राज्य सरकार द्वारा इस मामले में मुकदमा वापस लेने के लिए दायर की गई याचिका को पूरी तरह से ‘महत्वहीन और आधारहीन’ करार देते हुए निरस्त कर दिया है। अदालत के इस सख्त रुख के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि साल 2015 के इस बहुचर्चित हत्याकांड की न्यायिक प्रक्रिया निर्बाध रूप से जारी रहेगी। न्यायाधीश ने न केवल अर्जी खारिज की, बल्कि मामले की संवेदनशीलता और लंबित समय को देखते हुए अब इस पर प्रतिदिन सुनवाई करने का भी आदेश जारी किया है।

अभियोजन की दलील और अदालत की कड़ी टिप्पणी

अदालत में मंगलवार को हुई इस महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष के बीच तीखी बहस देखने को मिली। बता दें कि इसी वर्ष अक्टूबर महीने में राज्य सरकार के अधिवक्ता ने अदालत में एक आवेदन देकर दलील दी थी कि इस मुकदमे को वापस ले लिया जाना चाहिए। सरकार का तर्क था कि मुकदमा वापस लेने से क्षेत्र में सामाजिक सौहार्द बहाल होगा और आपसी भाईचारा बढ़ेगा। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। न्यायाधीश ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि मुकदमे को वापस लेने के लिए अभियोजन द्वारा दी गई अर्जी में कोई ठोस कानूनी आधार नहीं है। अदालत ने इसे महत्वहीन मानते हुए खारिज कर दिया और न्याय की प्रक्रिया को सर्वोपरि रखा।

6 जनवरी से गवाहों के बयानों की शुरू होगी प्रक्रिया

अर्जी खारिज होने के बाद अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 6 जनवरी की तारीख तय की है। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि अब मामले में कोई और देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। 6 जनवरी से अभियोजन पक्ष को अपने गवाहों को अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना होगा और उनके बयान दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अखलाक के परिवार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता यूसुफ सैफी और अंदलीब नकवी ने अदालत के इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने बताया कि अदालत ने अब इस मामले को फास्ट ट्रैक मोड में चलाने का निर्णय लिया है, जिससे वर्षों से न्याय का इंतजार कर रहे परिवार को एक नई उम्मीद मिली है।

गवाहों की सुरक्षा के लिए पुलिस कमिश्नर को सख्त निर्देश

अखलाक मामले की संवेदनशीलता और पूर्व में गवाहों द्वारा महसूस किए गए दबाव को देखते हुए अदालत ने सुरक्षा व्यवस्था पर भी कड़े निर्देश दिए हैं। अदालत ने ग्रेटर नोएडा के पुलिस आयुक्त (CP) और पुलिस उपायुक्त (DCP) को निर्देशित किया है कि वे मामले से जुड़े सभी महत्वपूर्ण गवाहों की सुरक्षा की समीक्षा करें। यदि किसी भी गवाह को जान-माल का खतरा महसूस होता है या उसे सुरक्षा की आवश्यकता है, तो तत्काल प्रभाव से उन्हें पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराई जाए। अदालत का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गवाह बिना किसी डर या दबाव के अपना बयान दर्ज करा सकें, ताकि मामले की निष्पक्ष सुनवाई संपन्न हो सके।

क्या था बिसाहड़ा का अखलाक मॉब लिंचिंग कांड

न्यायिक घटनाक्रम के बीच यह समझना आवश्यक है कि यह मामला आखिर क्या था जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। 28 सितंबर 2015 की रात को दादरी के बिसाहड़ा गांव में एक भीड़ ने 52 वर्षीय मोहम्मद अखलाक के घर पर हमला बोल दिया था। भीड़ को संदेह था कि उनके घर में प्रतिबंधित मांस रखा गया है। इस हिंसक हमले में अखलाक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी, जबकि उनका बेटा दानिश गंभीर रूप से घायल हो गया था। इस घटना के बाद देश भर में ‘असहिष्णुता’ और ‘मॉब लिंचिंग’ को लेकर एक लंबी बहस छिड़ गई थी। पुलिस ने इस मामले में गांव के ही करीब 18 लोगों को आरोपी बनाया था, जिनमें से कुछ फिलहाल जमानत पर बाहर हैं।

सामाजिक सौहार्द बनाम न्याय की अवधारणा

राज्य सरकार द्वारा मुकदमा वापस लेने के पीछे दिया गया ‘सामाजिक सौहार्द’ का तर्क कानूनी विशेषज्ञों के बीच भी चर्चा का विषय रहा है। सरकार का मानना था कि सालों पुराने इस जख्म को कुरेदने के बजाय केस खत्म कर देना शांति के लिए बेहतर होगा। लेकिन, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पीड़ित पक्ष के वकीलों का कहना है कि जहां जघन्य अपराध हुआ हो, वहां न्याय के बिना स्थाई शांति संभव नहीं है। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने भी संभवतः इसी कानूनी सिद्धांत को तवज्जो दी है कि गंभीर आपराधिक मामलों में केवल सामाजिक सद्भाव के नाम पर न्यायिक प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता।

प्रतिदिन सुनवाई से न्याय मिलने की जगी उम्मीद

करीब नौ साल से चल रहे इस मामले में गवाहों की गवाही और कानूनी पेचीदगियों के कारण सुनवाई की गति काफी धीमी रही है। अब जबकि अदालत ने ‘डे-टू-डे’ (प्रतिदिन) सुनवाई का आदेश दिया है, तो यह माना जा रहा है कि अगले कुछ महीनों में इस चर्चित हत्याकांड का फैसला आ सकता है। पीड़ित परिवार के अधिवक्ताओं का कहना है कि वे 6 जनवरी की तैयारी कर रहे हैं ताकि बिना किसी रुकावट के गवाहों के बयान दर्ज कराए जा सकें। पुलिस प्रशासन भी अब अदालत के आदेश के बाद सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने में जुट गया है।

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