उत्तर प्रदेश फसल बीमा महाघोटाला: केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने मांगी विस्तृत रिपोर्ट, महोबा-झांसी समेत कई जिलों के अफसरों पर गिर सकती है गाज
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के नाम पर करोड़ों रुपये के बंदरबांट का बड़ा खुलासा होने के बाद अब केंद्र सरकार ने सख्त रुख अख्तियार कर लिया है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने इस पूरे प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए उत्तर प्रदेश शासन से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। मंत्रालय ने उन सभी जिलों का ब्योरा मांगा है जहां फर्जीवाड़ा कर सरकारी खजाने को चूना लगाया गया। इस कदम के बाद उत्तर प्रदेश के कृषि और राजस्व विभाग के गलियारों में हड़कंप मच गया है, क्योंकि जांच की आंच अब उन अधिकारियों और कर्मचारियों तक पहुंचने वाली है जिनकी नाक के नीचे यह पूरा खेल चल रहा था।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय की दखल और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पूछताछ
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में हुए इस व्यापक फर्जीवाड़े की गूंज अब दिल्ली तक पहुंच गई है। सूत्रों के मुताबिक, दो दिन पहले केंद्रीय कृषि मंत्रालय के उच्चाधिकारियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उत्तर प्रदेश के संबंधित विभागों के साथ लंबी समीक्षा बैठक की। इस बैठक में मंत्रालय ने फसल बीमा के तरीकों, फर्जीवाड़े के सामने आए तथ्यों और अब तक की गई कानूनी कार्रवाई का पूरा ब्योरा मांगा है।
मंत्रालय ने विशेष रूप से यह सवाल उठाया है कि गड़बड़ी रोकने की जिम्मेदारी निभाने वाले जिले और तहसील स्तर के अधिकारियों ने किस स्तर पर चूक की? मंत्रालय ने पूछा है कि आखिर कैसे रेल लाइनों, नदियों और सरकारी जमीनों का बीमा कर दिया गया और संबंधित अधिकारियों ने इसका सत्यापन क्यों नहीं किया? केंद्र के इस कड़े रुख से स्पष्ट है कि केवल बीमा कंपनियों के कर्मचारियों पर ही नहीं, बल्कि लापरवाह सरकारी अफसरों पर भी बड़ी कार्रवाई होना तय है।
बुंदेलखंड से लेकर पश्चिमी यूपी तक फैला है फर्जीवाड़े का जाल
इस घोटाले की शुरुआत बुंदेलखंड के महोबा और झांसी जिलों से हुई थी, लेकिन अब इसकी जड़ें जालौन, फतेहपुर, फर्रुखाबाद और मथुरा जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों तक फैली हुई नजर आ रही हैं। जांच में सामने आया है कि जालसाजों ने स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से नदी की तलहटी, रेलवे लाइनों के किनारे की भूमि, तालाबों और बंजर सरकारी जमीनों पर कागजी फसलें उगाकर उनका बीमा करा लिया।
हैरानी की बात तो यह है कि झांसी के सांसद अनुराग शर्मा की निजी भूमि पर भी दूसरे लोगों ने अपना दावा ठोकते हुए बीमा क्लेम हड़प लिया। यह मामला सामने आने के बाद स्पष्ट हो गया कि बीमा पोर्टल और राजस्व रिकॉर्ड के साथ बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ की गई है। शिकायतों के अंबार को देखते हुए अब इन सभी जिलों के जिलाधिकारियों (DM) को तत्काल प्रभाव से तीन सदस्यीय टीम गठित कर जांच रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए गए हैं।
बीमा कंपनियों और सरकारी तंत्र की मिलीभगत का पर्दाफाश
अधिकारियों की मानें तो इस घोटाले में बीमा कंपनियों के प्रतिनिधियों की भूमिका सबसे संदिग्ध रही है। महोबा और अन्य जिलों में हुई जांच में किसानों ने खुद गवाही दी है कि किस तरह बीमा कंपनी से जुड़े कार्मिक उनके पास आए और उन्हें प्रलोभन दिया। खेल इतना शातिर था कि जैसे ही फर्जी क्लेम का पैसा किसानों के खातों में पहुंचा, बीमा कंपनी के एजेंट और बिचौलिए वसूली के लिए उनके घरों पर धमकने लगे।
शुरुआत में बीमा कंपनियों ने खुद को पीड़ित बताते हुए रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश की थी, लेकिन पुलिसिया जांच में उनकी संलिप्तता स्पष्ट रूप से उजागर हो गई है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने भी बीमा कंपनियों के प्रतिनिधियों की भूमिका पर नाराजगी जताई है। महोबा में इस मामले में अब तक 20 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जिनमें बिचौलिए और कुछ निचले स्तर के कर्मी शामिल हैं।
महोबा की रिपोर्ट शासन को भेजी गई, अन्य जिलों में देरी पर सख्ती
महोबा के जिलाधिकारी ने अपने जिले में हुए घोटाले की विस्तृत रिपोर्ट शासन को भेज दी है, जिसमें दोषियों को चिन्हित किया गया है। हालांकि, झांसी, जालौन, फर्रुखाबाद और मथुरा जैसे जिलों से अभी तक अंतिम जांच रिपोर्ट नहीं मिल पाई है। इस देरी पर शासन ने सख्त नाराजगी जताई है। कृषि विभाग के उच्चाधिकारियों ने इन जिलों के डीएम को कड़े निर्देश दिए हैं कि वे जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट भेजें ताकि संयुक्त रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी जा सके।
वर्तमान में कृषि और राजस्व विभाग के अधिकारी इस घोटाले की जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालने की कोशिश कर रहे हैं। राजस्व विभाग का तर्क है कि बीमा कंपनियों को खतौनी और रिकॉर्ड की जांच स्वयं करनी चाहिए थी, जबकि कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सत्यापन की मुख्य जिम्मेदारी स्थानीय राजस्व कर्मियों (लेखपालों) की थी। इस ‘लेटर वॉर’ के बीच अब दोनों विभागों के कई अधिकारियों का नपना तय माना जा रहा है।
कैसे हुआ यह करोड़ों का खेल? समझिए पूरा मोडस ऑपेरंडी
इस घोटाले का तरीका (Modus Operandi) बेहद चौंकाने वाला रहा है। बिचौलियों ने उन जमीनों का चयन किया जो या तो विवादित थीं या जिन पर खेती संभव नहीं थी। इसके बाद, राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से इन जमीनों पर फर्जी गिरदावरी (फसल रिकॉर्ड) तैयार की गई। जब प्राकृतिक आपदा या मौसम की खराबी की स्थिति बनी, तो इन फर्जी भूखंडों पर भारी भरकम क्लेम फाइल किए गए। चूंकि बीमा कंपनियां और राजस्व विभाग के सत्यापन अधिकारी एक ही सिंडिकेट का हिस्सा थे, इसलिए करोड़ों रुपये के क्लेम बिना किसी भौतिक सत्यापन के पास कर दिए गए।
यह मामला केवल उत्तर प्रदेश का ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना की साख पर भी सवाल खड़े करता है। इसी कारण केंद्र सरकार इस मामले को उदाहरण के रूप में पेश करना चाहती है ताकि भविष्य में तकनीकी सुरक्षा को और पुख्ता किया जा सके।
भविष्य की कार्रवाई: तहसील स्तर पर गठित हुईं जांच टीमें
घोटाला सामने आने के बाद अब उत्तर प्रदेश के प्रभावित जिलों की हर तहसील में जिला स्तरीय तीन सदस्यीय टीम गठित की गई है। यह टीमें पिछले दो वर्षों के दौरान वितरित किए गए सभी बीमा क्लेम का रैंडम वेरिफिकेशन करेंगी। शासन ने निर्देश दिए हैं कि यदि किसी भी किसान या फर्जी व्यक्ति के खाते में गलत तरीके से पैसा गया है, तो उसकी वसूली भू-राजस्व की भांति की जाए और संबंधित बैंक मैनेजरों की भूमिका की भी जांच की जाए।
आने वाले सप्ताह में कृषि मंत्रालय को भेजी जाने वाली रिपोर्ट के आधार पर कई बड़े अधिकारियों के निलंबन और उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू होने की संभावना है। इस घोटाले के उजागर होने के बाद अब बीमा क्लेम की प्रक्रिया में आधार प्रमाणीकरण और जीपीएस टैगिंग को और अधिक अनिवार्य करने पर विचार किया जा रहा है।