कोडीन सिरप तस्करी कांड: लखनऊ की फर्म ने बेची ‘मौत की दवा’, करोड़ों के काले कारोबार और सिपाही की संलिप्तता का बड़ा खुलासा
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में कोडीन युक्त कफ सिरप की अवैध तस्करी का जाल गहराता जा रहा है। लखनऊ की एक और फार्मास्युटिकल फर्म द्वारा नियमों को ताक पर रखकर हजारों की संख्या में नशीले सिरप की बोतलों को खपाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस मामले में औषधि विभाग ने लखनऊ के इंदिरानगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई है, जिससे इस सिंडिकेट की जड़ों तक पहुंचने का रास्ता खुल गया है। कोडीन सिरप का उपयोग चिकित्सा के बजाय नशे के लिए करने वाला यह नेटवर्क न केवल राजधानी लखनऊ, बल्कि कानपुर, रायबरेली और कई अन्य जिलों तक फैला हुआ है।
कान्हा फार्मास्युटिकल्स पर एफआईआर और तस्करी का तरीका
राजधानी के औषधि निरीक्षक विवेक कुमार सिंह ने इंदिरानगर थाने में मेसर्स कान्हा फार्मास्युटिकल्स के संचालक आरुष सक्सेना के खिलाफ गंभीर धाराओं में मामला दर्ज कराया है। जांच में यह तथ्य सामने आया है कि इस फर्म ने बेहद कम समय में कोडीन युक्त कफ सिरप की भारी खेप खरीदी और उसे अवैध तरीके से बाजारों में खपा दिया। औषधि विभाग की ओर से दाखिल की गई एफआईआर के मुताबिक, साजिश के तहत केवल मुनाफा कमाने के उद्देश्य से इन दवाओं को उन लोगों तक पहुंचाया गया, जो इसका उपयोग नशे के लिए करते हैं।
जांच के दौरान खुलासा हुआ कि मेसर्स कान्हा फार्मास्युटिकल्स ने 1 अप्रैल 2024 से 31 अक्टूबर 2024 के बीच कोडीन युक्त सिरप की कुल 11,783 शीशियां क्रय की थीं। नियमानुसार, इतनी बड़ी मात्रा में नशीली दवाओं की बिक्री का पूरा रिकॉर्ड और डॉक्टर के पर्चे का होना अनिवार्य है, लेकिन फर्म के पास इसका कोई हिसाब-किताब नहीं मिला। यह दवाइयां तकरोही स्थित फर्म के माध्यम से विभिन्न शहरों में सप्लाई की गईं।
कई जिलों से जुड़ी कड़ियां: रायबरेली और कानपुर कनेक्शन
कोडीन तस्करी का यह मामला केवल एक दुकान या एक जिले तक सीमित नहीं है। उच्चाधिकारियों के निर्देश पर जब रायबरेली के औषधि निरीक्षक शिवेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी जांच शुरू की, तो कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए। रायबरेली की फर्म ‘मेसर्स अजय फार्मा’ (कल्लू का पुरवा, रतापुर) ने कान्हा फार्मास्युटिकल्स को बड़ी मात्रा में सिरप की सप्लाई की थी। जांच में यह भी पता चला कि अजय फार्मा ने खुद यह स्टॉक ट्रांसपोर्ट नगर स्थित ‘मेसर्स बायोहब लाइफसाइंसेज’ से खरीदा था।
सिर्फ रायबरेली ही नहीं, कानपुर भी इस अवैध व्यापार का एक बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। कानपुर नगर के औषधि निरीक्षक ओमपाल सिंह ने विभाग को दी गई रिपोर्ट में बताया कि आरोपी आरुष सक्सेना ने कानपुर की ‘मेसर्स मेडिसीना हेल्थकेयर’ (कोपरगंज) और ‘मेसर्स अग्रवाल ब्रदर्स’ (बिरहाना रोड) से भी भारी मात्रा में सिरप की खरीदारी की थी। यह पूरा खेल थोक भाव में कम कीमत पर दवा खरीदने और उसे नशेड़ियों को महंगे दामों पर फुटकर में बेचने का था।
पोर्टल पर फर्जीवाड़ा: ऑफिस की जगह मिला जनरल स्टोर
जब औषधि प्रशासन की टीम ने कान्हा फार्मास्युटिकल्स की भौतिक जांच करने का फैसला किया, तो प्रशासन के पैरों तले जमीन खिसक गई। विभागीय पोर्टल पर जो पता दर्ज था, टीम जब वहां पहुंची तो वहां कोई फार्मास्युटिकल फर्म नहीं बल्कि एक साधारण जनरल स्टोर मिला। स्थानीय लोगों और स्टोर के कर्मचारियों से पूछताछ करने पर पता चला कि उस दुकान का असली मालिक मोहम्मद अहसान है, जो वर्तमान में दुबई में रहता है।
आरोपी आरुष सक्सेना ने करीब चार-पांच महीने पहले ही उस जगह को खाली कर दिया था। विभाग ने आरोपी को कई बार नोटिस भेजा और पोर्टल पर उपलब्ध उसके मोबाइल नंबर पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। जांच अधिकारी विवेक कुमार सिंह के अनुसार, आरुष सक्सेना जानबूझकर जांच में सहयोग नहीं कर रहा है और फरार है। दस्तावेजी साक्ष्यों और भौतिक सत्यापन न होने के कारण अब पुलिस उसकी तलाश में छापेमारी कर रही है।
एसटीएफ की बर्खास्तगी और एनडीपीएस की धाराओं का शिकंजा
इस पूरे प्रकरण का सबसे गंभीर पहलू यह है कि इसमें कानून के रखवालों की मिलीभगत भी सामने आई है। सुशांत गोल्फ सिटी थाने में दर्ज इसी से संबंधित एक अन्य मामले में एसटीएफ से बर्खास्त सिपाही आलोक सिंह और उसके साथियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। यह सिपाही और उसका गिरोह कफ सिरप की तस्करी को सुरक्षा और संरक्षण प्रदान कर रहा था।
इस मामले में अब इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद पुलिस ने धाराओं को और कड़ा करने का निर्णय लिया है। सुशांत गोल्फ सिटी में दर्ज मुकदमे में अब एनडीपीएस (NDPS Act) की धाराएं बढ़ाई जाएंगी, जिससे आरोपियों की जमानत और सजा की प्रक्रिया और अधिक जटिल हो जाएगी। उत्तर प्रदेश एसटीएफ अब इस नेटवर्क के ‘मास्टरमाइंड’ और उन सफेदपोशों की तलाश कर रही है, जो पर्दे के पीछे से इस करोड़ों के कारोबार को संचालित कर रहे हैं।
नशे की दवा और यूपी की गर्म राजनीति
उत्तर प्रदेश में नशीले कफ सिरप की तस्करी का मामला अब राजनीतिक रंग भी ले चुका है। विपक्ष सरकार पर कानून-व्यवस्था और दवाओं की कालाबाजारी को लेकर हमलावर है। राज्य के अलग-अलग जिलों से जिस तरह से एक के बाद एक फर्में तस्करी के जाल में फंस रही हैं, उसने औषधि प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोडीन युक्त सिरप का दुरुपयोग युवाओं को खोखला कर रहा है। चूंकि यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है और अन्य नशीले पदार्थों की तुलना में सस्ता पड़ता है, इसलिए तस्कर इसे अपना मुख्य हथियार बना रहे हैं। शासन ने अब सभी औषधि निरीक्षकों को निर्देश दिए हैं कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में कोडीन युक्त दवाओं के स्टॉक का मिलान करें और संदिग्ध फर्मों के लाइसेंस तत्काल प्रभाव से निलंबित करें।
भविष्य की कार्रवाई और पुलिस की रणनीति
इंदिरानगर इंस्पेक्टर ने बताया कि औषधि विभाग की तहरीर के आधार पर केस दर्ज कर लिया गया है और आरोपी आरुष सक्सेना की गिरफ्तारी के लिए टीमें गठित की गई हैं। पुलिस उन सभी संपर्कों को खंगाल रही है जिनके माध्यम से यह नशीला सिरप कानपुर और रायबरेली से लखनऊ लाया गया और फिर यहां से फुटकर विक्रेताओं तक पहुंचाया गया।
आने वाले दिनों में इस मामले में कई और बड़े नामों का खुलासा होने की उम्मीद है। पुलिस अब उन बैंक खातों की भी जांच कर रही है जिनके माध्यम से इन दवाओं का भुगतान किया गया था। एनडीपीएस एक्ट के तहत कार्रवाई होने से अब इस सिंडिकेट पर आर्थिक प्रहार भी किया जाएगा, ताकि इस ‘मौत की दवा’ के अवैध कारोबार को पूरी तरह से नेस्तनाबूद किया जा सके।