पंचमी पर नागों को मिला था वरदान, नाग रक्षा का संदेश देता है नागपंचमी

नागपंचमी का त्यौहार नाग रक्षा का संदेश देता है। वेद एवं पुराणों में नागों का उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से माना गया है। नागपंचमी के कथा के श्रवण का बड़ा महत्व है।
इस कथा के वाचक सुमंत मुनि एवं श्रोता पाण्डन वंश के राजा शतानीक थे। एक बार देवताओं तथा असुरों में समुद्र मंथन द्वारा 14 रत्नों में उच्चैरू श्रवा नामक अश्व रत्न प्राप्त हुआ। यह अश्व अत्यन्त श्वेत वर्ण का था। उसे देखकर नाग माता कद्रू तथा विमाता विनिता दोनों में अश्व के रंग के संबंध में विवाद हुआ। कद्रू ने कहा कि अश्व के केश श्याम वर्ण के है। यदि मैं अपने कथन में असत्य सिद्ध हो जाऊंगी तो तुम्हारी दासी बनूंगी अन्यथा तुम मेरी दासी बनोगी। कद्रू ने नागों को बाल के समान सुक्ष्म बनकर अश्व के शरीर में आवेष्टित होने का निर्देश दिया, किंतु नागों ने अपनी असमर्थता प्रकट की इस पर क्रोधित होकर माता कद्रू ने सांपों को श्राप दिया कि पाण्डव वंश के राजा जन्मेजय के यज्ञ में जलकर भष्म हो जाएंगे। श्राप से भयभीत नागों ने वासुकि के नेतृत्व में ब्रम्हा जी से श्राप मुक्ति का उपाय पूछा तो ब्रम्हा जी ने बताया कि यायावर वंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारु तुम्हारे बहनोई होंगे। उनका पुत्र आस्तीक तुम्हारी रक्षा करेगा। ब्रम्हा जी ने नागों को यह वरदान पंचमी तिथि को दिया था। इसी तिथि पर आस्तीक मुनि ने नागों का परिरक्षण किया था। तभी से नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा का विधान बन गया।
आचार्य डा. रामलाल त्रिपाठी बताते हैं, पूजा में नागों का पृथ्वी पर चित्राकंन करके अथवा स्वर्ण, रजत, काष्ठ या मृतिका से नाग बनाकर गंध, धूप, दीप, दूध आदि से नागों का पूजन करना चाहिए। यही नागपंचमी का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व है।
