वामपंथी इतिहासकारों द्वारा जान-बूझकर आजादी की लड़ाई लड़ने वाले अधिकतर स्वतंत्रता सेनानी को रखा गया गुमनाम
अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सौजन्य से इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एंड कल्चरल स्टडीज और संस्कार भारती बिहार प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में विकास विद्यालय में ‘ बेगूसराय के धरतीपुत्र स्वतंत्रता आंदोलन में ‘ विषय पर संगोष्ठी आयोजित किया गया।कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद दीप प्रज्वलित कर किया गया।
विकास विद्यालय के निदेशक राजकिशोर सिंह ने अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्र देकर किया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता शिक्षाविद प्रो. अमरेश शांडिल्य, सामाजिक कार्यकर्ता योगेन्द्र प्रसाद सिंह एवं शिक्षाविद सिद्धार्थ शंकर शर्मा थे। मंच संचालन चर्चित रंगकर्मी कुमार अभिजीत मुन्ना ने किया। धन्यवाद ज्ञापन रंग निर्देशक एवं संस्कार भारती के कार्यकारी जिलाध्यक्ष प्रवीण कुमार गुंजन ने किया।
संगोष्ठी में राजकिशोर सिंह ने कहा कि बेगूसराय के एक हजार से ज्यादा लोग आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। वामपंथी इतिहासकारों द्वारा जान-बूझकर आजादी की लड़ाई लड़ने वाले अधिकतर स्वतंत्रता सेनानी को गुमनाम रखा गया। यही वजह है कि आज के युवा वर्ग एवं आमलोगों को इन गुमनाम लोगों व उनके परिवार के बारे में जानकारी नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता सिद्धार्थ शंकर शर्मा ने कहा कि जंग-ए-आजादी के राष्ट्रीय आंदोलन में बेगूसराय के वीर सपूतों की भूमिका को मेरा मन टटोलता है तो बेचैन हो उठता है। गोधुलि बेला में जब हमारे दादा, चाचा, भाई बैरकों में बंद हो जाते थे । अरुणिमा में इंकलाब जिंदाबाद की ध्वनि भर सुनाई देती थी।
वक्ताओं ने कहा कि बीपी उच्च विद्यालय के सामने भैरवार निवासी चन्द्रशेखर सिंह, पहसारा के बनारसी सिंह, रतनपुर के छट्टू सिंह एवं वनद्वार के रामचन्द्र सिंह सहित छह युवाओं को गोलियों से उड़ा दिया गया। यह चौरी-चौरा की घटना के बाद देश में दूसरी सबसे बड़ी घटना और शहादत थी।
बेगूसराय के बीहट में रामचरित्र सिंह और नमुनी सिंह के नेतृत्व में किसानों की विशाल सभा हुई। फैसला किया गया की अंग्रेजों को एक भी पैसा का कोई टैक्स नहीं देना है। आंदोलनकारी ने शराब की दुकानों को बंद करवा दिया, सिगरेटों की बिक्री पर रोक लगाई गई। अंग्रेजों को जब पता चला तो लाठी चार्ज किया गया। लड्डू सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया, पिटाई के कारण जेल में ही मौत हो गई। बीहट यह खबर पहुंची तो फिर युवाओं ने रेल की पटरियों को उखाड़ कर फेंक दिया। राम चरित्र शर्मा की गिरफ्तारी हुई तो निर्ममता से पिटाई के कारण जेल में ही इनकी भी मौत गई। बीहट की यह घटना देश की दूसरी बारडोली के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस शहादत को भी इतिहासकारों ने जगह नहीं दिया।