जापान के सकुराजिमा ज्वालामुखी में जोरदार विस्फोट, 4 किलोमीटर तक हवा में उड़ी राख, Alert जारी
जापान के दक्षिण-पश्चिम क्यूशू स्थित सकुराजिमा ज्वालामुखी में 16 नवंबर, 2025 की सुबह भीषण विस्फोट हुआ, जिससे ज्वालामुखी की राख और धुएं का एक विशाल गुबार 4,400 मीटर (लगभग 14,400 फीट) की ऊंचाई तक फैल गया। मिनामिडाके क्रेटर से शुरू हुए इस विस्फोट से निकली बड़ी मात्रा में राख काफी दूर तलक फैल गईं, जिसके कारण कागोशिमा, कुमामोटो और मियाज़ाकी सहित आसपास के कई प्रान्तों में राख गिरने की चेतावनी जारी कर दी गई है।
विस्फोट के प्रभाव और सुरक्षा उपाय
विस्फोटों के बावजूद, किसी हताहत या पाइरोक्लास्टिक प्रवाह (गर्म गैस और ज्वालामुखी पदार्थों की तेज धाराओं) की कोई रिपोर्ट नहीं आई है, जो राहत की बात है। हालांकि, राख के बादलों ने कागोशिमा हवाई अड्डे पर कई उड़ानें रद्द कर दीं, जिससे यात्रियों को परेशानी हुई। प्रभावित क्षेत्रों के निवासियों को मास्क पहनने, घरों को बंद रखने और राख हटाने के लिए सुरक्षात्मक उपकरण उपयोग करने की सलाह दी गई है। जेएमए ने चेतावनी जारी की कि ज्वालामुखी अभी सक्रिय है और आगे विस्फोट संभव हैं, इसलिए आधिकारिक अपडेट्स पर नजर रखें। स्थानीय प्रशासन ने आपातकालीन ड्रिल आयोजित कीं, जबकि पर्यटक क्षेत्रों को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया। सकुराजिमा की गतिविधियां 1914 के बड़े विस्फोट से जुड़ी हैं, जब शहर आंशिक रूप से नष्ट हो गया था। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह विस्फोट मैग्मा चैंबर के दबाव से प्रेरित था, जो भविष्य की निगरानी को मजबूत करने की जरूरत बताता है।
वैश्विक संदर्भ और सतर्कता की आवश्यकता
सकुराजिमा ज्वालामुखी की यह घटना वैश्विक स्तर पर ज्वालामुखीय जोखिमों की याद दिलाती है, खासकर जब 2025 में अफगानिस्तान में 6.3 तीव्रता का भूकंप (20 मौतें) और फिलीपींस में टाइफून कलमाएगी (2 मौतें, हजारों विस्थापित) जैसी आपदाएं हो रही हैं। जापान, रिंग ऑफ फायर पर स्थित, नियमित रूप से भूकंप और ज्वालामुखी गतिविधियों का सामना करता है। जेएमए की अलर्ट प्रणाली ने समय पर प्रतिक्रिया दी, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े बदलाव इन घटनाओं को प्रभावित कर सकते हैं। स्थानीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है, क्योंकि कागोशिमा पर्यटन पर निर्भर है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग, जैसे यूएन की आपदा प्रबंधन पहल, ऐसी स्थितियों में महत्वपूर्ण है। निवासियों को सतर्क रहने और निकासी योजनाओं का पालन करने की सलाह दी जाती है, जबकि वैज्ञानिक आगे की गतिविधियों पर नजर रखेंगे।