संसद सत्र के बीच राहुल गांधी अचानक लंदन रवाना, हंगामेदार सत्र का अंतिम चरण और रामलीला मैदान में ‘वोट चोरी’ का बड़ा आरोप
नई दिल्ली: संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र के बीच, लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के प्रमुख सांसद राहुल गांधी सोमवार तड़के अचानक लंदन के लिए रवाना हो गए। उनकी यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब संसद का शीतकालीन सत्र अपने अंतिम और निर्णायक चरण में है, और सत्र अब तक विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच तीखी नोकझोंक और हंगामे से भरा रहा है।
सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार, राहुल गांधी ने दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय (IGI) हवाई अड्डे से सोमवार को सुबह करीब 3 बजकर 20 मिनट पर ब्रिटिश एयरवेज की फ्लाइट नंबर BA 142 से लंदन के लिए उड़ान भरी। उनकी इस यात्रा का उद्देश्य क्या है, इस बारे में आधिकारिक तौर पर कोई विस्तृत जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन सूत्रों ने संकेत दिया है कि लंदन के बाद उनका अगला पड़ाव जर्मनी हो सकता है।
शीतकालीन सत्र: हंगामेदार 18 दिन और आगे की चुनौती
संसद का शीतकालीन सत्र, जो 1 दिसंबर को शुरू हुआ था, अब अपने अंतिम सप्ताह में प्रवेश कर चुका है। यह सत्र 19 दिसंबर तक चलेगा और इसके लिए कुल 15 बैठकें निर्धारित की गई हैं। राहुल गांधी की अनुपस्थिति में सोमवार को दोनों सदनों की कार्यवाही एक बार फिर शुरू होगी, जहाँ मुख्य ध्यान लंबित विधेयकों को पारित कराने पर रहेगा।
सत्र की मुख्य सुर्खियाँ और गतिरोध
यह शीतकालीन सत्र शुरू से ही काफी हंगामेदार रहा है। विपक्ष ने कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और चुनावी मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश की है, जिसके परिणामस्वरूप कई बार सदन की कार्यवाही बाधित हुई है।
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वंदे मातरम् पर बहस: सत्र के दौरान एक प्रमुख गतिरोध ‘वंदे मातरम्’ को लेकर हुई बहस के दौरान देखने को मिला। इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के सांसदों के बीच तीखी वैचारिक नोंकझोंक हुई, जिसने सदन के भीतर राजनीतिक माहौल को गरमा दिया।
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मतदाता सूची और चुनावी सुधार: सत्र में सबसे ज्यादा विवाद का विषय विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) मतदाता सूची संशोधन और चुनावी सुधारों से संबंधित मुद्दे रहे हैं। विपक्ष ने इन प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि मतदाता सूची में जानबूझकर अनियमितताएं की जा रही हैं और चुनावी प्रक्रिया में “वोट चोरी” की जा रही है। यह आरोप हाल ही में संपन्न हुए विभिन्न चुनावों के परिणामों और तैयारियों के संदर्भ में लगाया गया है।
संसद के इस माहौल को देखते हुए, अंतिम चरण में बचे हुए विधेयकों को पारित कराने की राह सत्ता पक्ष के लिए आसान नहीं होगी। विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस, चुनावी निष्पक्षता के मुद्दे पर अपना आक्रामक रुख बनाए हुए है, जैसा कि रविवार को रामलीला मैदान की रैली से स्पष्ट हुआ।
रामलीला मैदान से ‘वोट चोरी’ का आक्रामक अभियान
राहुल गांधी के लंदन रवाना होने से ठीक एक दिन पहले, कांग्रेस पार्टी ने रविवार को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया। यह रैली कांग्रेस के उस राष्ट्रव्यापी अभियान का हिस्सा थी, जिसके तहत पार्टी मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन में कथित वोट चोरी और अनियमितताओं के खिलाफ अपनी आवाज तेज कर रही है।
इस रैली का समय राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह संसद में सरकार और विपक्ष के बीच चुनावी निष्पक्षता को लेकर चल रही तीखी बहस के चरम पर हुई। रैली में भारी संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता और समर्थक शामिल हुए, जिन्होंने पार्टी के ‘वोट बचाओ’ अभियान को बल दिया।
राहुल गांधी का सीधा हमला: ‘चुनाव आयोग भाजपा के साथ मिला हुआ’
रामलीला मैदान में जनसभा को संबोधित करते हुए, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके वैचारिक मार्गदर्शक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) दोनों को अपने निशाने पर लिया। उन्होंने चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सीधे सवाल खड़े करते हुए कई गंभीर आरोप लगाए।
राहुल गांधी ने अपने संबोधन में कहा, “वे वोट चोरी करते हैं। चुनाव के दौरान 10,000 रुपये दिए गए। भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) भाजपा के साथ मिलीभगत कर रहा है।“
उनका यह आरोप एक अभूतपूर्व राजनीतिक कदम है, क्योंकि यह पहली बार नहीं है जब किसी प्रमुख विपक्षी नेता ने सार्वजनिक मंच से सीधे तौर पर देश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्थाओं में से एक, निर्वाचन आयोग, की निष्पक्षता पर सवाल उठाया हो।
राहुल गांधी ने आगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने जानबूझकर कानून में बदलाव किए हैं, जिससे निर्वाचन आयुक्तों के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई करना मुश्किल हो गया है। उन्होंने आरोप लगाया, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कानून में बदलाव किया ताकि निर्वाचन आयुक्त के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो सके, चाहे वह कुछ भी करे।” उनका इशारा मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति और सेवा शर्तों से संबंधित हालिया विधायी संशोधनों की ओर था, जिस पर विपक्ष ने पहले भी कड़ा विरोध जताया था।
राहुल गांधी के इन आरोपों ने देश में चल रही चुनावी बहस को एक नया मोड़ दिया है। ये आरोप न केवल भाजपा पर लगाए गए हैं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के एक महत्वपूर्ण स्तंभ – चुनाव आयोग – पर भी सवाल उठाते हैं, जिससे इस मुद्दे पर राजनीतिक और कानूनी विवाद गहराने की पूरी संभावना है।
विदेश यात्रा का महत्व और राजनीतिक निहितार्थ
राहुल गांधी की यह अचानक विदेश यात्रा ऐसे महत्वपूर्ण समय में हुई है जब देश की राजनीति, विशेषकर संसदीय कार्यवाही, एक उच्च बिंदु पर है। उनकी अनुपस्थिति में संसद में विपक्ष की रणनीति पर क्या असर पड़ेगा, यह देखना बाकी है।
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विपक्ष की रणनीति: राहुल गांधी की अनुपस्थिति कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन के लिए चुनौती पेश कर सकती है, खासकर जब सदन में कई महत्वपूर्ण विधेयकों पर मतदान या चर्चा होनी बाकी है। पार्टी को अपने रुख को मजबूत बनाए रखने और सरकार को लगातार घेरने के लिए एक स्पष्ट और एकजुट रणनीति बनाए रखने की आवश्यकता होगी।
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अंतर्राष्ट्रीय संवाद: राहुल गांधी की यात्राएँ अक्सर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की घरेलू राजनीति और लोकतांत्रिक मुद्दों पर चर्चा का एक मंच रही हैं। लंदन और जर्मनी की यह यात्रा भी संभवतः इसी उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए हो सकती है, जहां वह अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक, शिक्षाविदों या प्रवासी भारतीयों के साथ बातचीत कर सकते हैं। विशेष रूप से, ‘वोट चोरी’ और ‘लोकतंत्र पर खतरा’ जैसे मुद्दों पर उनकी हालिया आक्रामक बयानबाजी को देखते हुए, उनकी अंतर्राष्ट्रीय बातचीत इन विषयों पर केंद्रित हो सकती है।
राहुल गांधी के अचानक लंदन रवाना होने से संसद के अंतिम चरण की कार्यवाही में उनकी सक्रियता पर प्रश्नचिह्न लग गया है। 19 दिसंबर तक चलने वाले इस सत्र में अब बाकी बचे विधायी एजेंडे और राजनीतिक गहमागहमी पर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी।