पाकिस्तान का गाजा मिशन: 20,000 सैनिकों का फैसला, लेकिन क्यों मच रही है मुस्लिम दुनिया में हलचल?
इस्लामाबाद, 30 अक्टूबर 2025: पाकिस्तान की विदेश नीति में एक ऐसा उलटफेर आया है, जिसने न सिर्फ पड़ोसी देशों को चौंकाया, बल्कि पूरी मुस्लिम दुनिया में सवालों का सैलाब खड़ा कर दिया। जिस गाजा के लिए इस्लामाबाद सड़कों पर प्रदर्शन कर रहा था, अब वहीं 20,000 सैनिक भेजने की तैयारी। ट्रंप के शांति प्लान के तहत यह कदम ‘स्थिरीकरण’ का नाम ले रहा है, लेकिन पीछे छिपी कूटनीतिक डील क्या है? CIA-मोसाद की गुप्त बैठकें, आर्थिक राहत का लालच और इजरायल के साथ नरमी—सब कुछ सामने आ रहा है। ईरान-तुर्की क्यों भड़क रहे हैं? क्या पाकिस्तान की साख दांव पर है? अभी तो बस संकेत हैं। आइए जानते हैं पूरी खबर क्या है।
गाजा के नाम पर कूटनीतिक सौदेबाजी
सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान गाजा पट्टी में लगभग 20,000 सैनिक भेजने की तैयारी कर रहा है। यह कदम “स्थिरीकरण और पुनर्निर्माण” के नाम पर उठाया जा रहा है, लेकिन असली उद्देश्य कुछ और बताया जा रहा है। मिस्र में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर, इजरायल की मोसाद और अमेरिकी CIA के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच इस समझौते को अंतिम रूप दिया गया। माना जा रहा है कि यह निर्णय पश्चिमी देशों की निगरानी में चलने वाले युद्धोत्तर मिशन का हिस्सा है। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान का यह कदम उसकी पारंपरिक मुस्लिम एकजुटता की नीति से बिल्कुल उलट है। इस्लामी देशों में इसे “विश्वासघात” की तरह देखा जा रहा है, जबकि अमेरिका इसे पाकिस्तान की नई रणनीतिक भूमिका का संकेत मान रहा है। पाकिस्तान की सूचना मंत्रालय ने कुछ रिपोर्ट्स को ‘झूठा’ बताकर खारिज किया, लेकिन आधिकारिक फैसला लंबित है।
क्या इजरायल को मान्यता देने जा रहा है पाकिस्तान?
यह सवाल अब पूरी दुनिया में उठ रहा है। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान के नए पासपोर्टों से “इजरायल के लिए मान्य नहीं” वाली पंक्ति हटा दी गई है, जो उसके रुख में नरमी का बड़ा संकेत है। खुफिया सूत्रों का दावा है कि पाकिस्तान गाजा में मानवीय पुनर्निर्माण के बहाने सीमित सैन्य उपस्थिति रखेगा, लेकिन असली लक्ष्य हमास के बचे हुए लड़ाकों को निष्क्रिय करना है। इस मिशन में इंडोनेशिया और अजरबैजान जैसे देश भी शामिल हो सकते हैं, जबकि वास्तविक नियंत्रण अमेरिका, इजरायल और अरब मध्यस्थों के पास रहेगा। ईरान, तुर्की और कतर ने इस कदम पर कड़ी आपत्ति जताई है, इसे अमेरिका समर्थक और हमास-विरोधी चाल करार दिया है। इससे पाकिस्तान की मुस्लिम दुनिया में साख पर गहरा असर पड़ सकता है। विदेश मंत्री इशाक डार ने कहा कि नेतृत्व फैसला लेगा, लेकिन पाकिस्तान हमेशा फिलिस्तीन का समर्थक रहा है।
आर्थिक मजबूरी या पश्चिमी दबाव?
रिपोर्टों के अनुसार पाकिस्तान इस समझौते के बदले में अमेरिका और इजरायल से आर्थिक राहत पैकेज प्राप्त करेगा। इसमें वर्ल्ड बैंक की किस्तों में ढील, कर्ज भुगतान की समय सीमा बढ़ाने और खाड़ी देशों से आर्थिक मदद जैसे प्रावधान शामिल हैं। यही नहीं, पाकिस्तान को कुछ राजनयिक राहतें भी मिलने की उम्मीद है — जैसे भारत की ओर से नियंत्रण रेखा पर दबाव में कमी और पश्चिमी देशों द्वारा मानवाधिकार मुद्दों पर नरमी। एक खुफिया अधिकारी के अनुसार, यह पाकिस्तान के लिए “सर्वाइवल डील” है, जहां आर्थिक राहत और अंतरराष्ट्रीय वैधता के बदले उसे पश्चिमी सुरक्षा गठजोड़ का हिस्सा बनना पड़ा है। यह पाकिस्तान की विदेश नीति में एक गहरा झुकाव दर्शाता है, जो उसकी स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। ट्रंप के 20-पॉइंट प्लान के तहत यह मिशन UN मंडेट के बिना चल रहा है, जिससे विवाद बढ़ रहा है।
नई कूटनीतिक दिशा या ऐतिहासिक पलट?
राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका और इजरायल पाकिस्तान की सेना को अब ईरान के खिलाफ एक संतुलनकारी ताकत के रूप में देख रहे हैं। इजरायली सेना के बिना जो काम सीधे नहीं हो सकता, वही पाकिस्तान के सैनिक अब अप्रत्यक्ष रूप से करेंगे। यह पाकिस्तान के लिए वैचारिक बदलाव नहीं बल्कि आर्थिक दबाव से उपजा कदम है। हालांकि पाकिस्तान इसे मानवीय मिशन का नाम दे रहा है, लेकिन मुस्लिम देशों में इसे ‘धोखा’ करार दिया जा रहा है। जो देश कभी गाजा के समर्थन में सड़कों पर उतरता था, वही अब गाजा में पश्चिमी हितों की सुरक्षा करेगा— यह पाकिस्तान के कूटनीतिक इतिहास की सबसे बड़ी पलटी मानी जा रही है। पाकिस्तान के पासपोर्ट पर इजरायल-विरोधी क्लॉज हटाने की खबरें भी सर्कुलेट हो रही हैं, जो संबंधों में नया दौर का संकेत दे रही हैं।