दुनिया का अजूबा पेड़: 800 साल पुराना बरगद, सलाइन से हो रहा इलाज, जानें पिल्लालामर्री का रहस्य
महबूबनगर, 9 अक्टूबर 2025: तेलंगाना के महबूबनगर में एक ऐसा पेड़ है, जो न सिर्फ प्रकृति का अजूबा है, बल्कि दुनिया भर में चर्चा का केंद्र भी। पिल्लालामर्री नाम का यह 800 साल पुराना बरगद चार एकड़ में फैला है, जिसकी छाया में एक हजार लोग एक साथ बैठ सकते हैं। लेकिन हैरानी की बात? इस पेड़ को तबीयत बिगड़ने पर सलाइन चढ़ाई जाती है! दीमक ने इसकी जड़ों को नुकसान पहुंचाया, जिसके लिए वन विभाग ने अनोखा इलाज शुरू किया। सैकड़ों सलाइन बोतलें इसकी शाखाओं पर लटक रही हैं, जैसे कोई अस्पताल हो। क्या है इस पेड़ का इतिहास, और क्यों पड़ा इसका नाम ‘बच्चों का बरगद’? आइए, इसकी कहानी खोलें, जहां प्रकृति, संस्कृति और इतिहास एक साथ सांस ले रहे हैं।
प्रकृति का करिश्मा: चार एकड़ में फैला पिल्लालामर्री का जंगल जैसा बरगद
पिल्लालामर्री बरगद पेड़ तेलंगाना के महबूबनगर में एक प्राकृतिक चमत्कार है, जो 800 सालों से खड़ा है। चार एकड़ (लगभग 1.6 हेक्टेयर) में फैला यह पेड़ दुनिया के सबसे विशाल बरगदों में शुमार है। इसकी 19,000 वर्ग गज की छाया इतनी घनी है कि एक हजार लोग एक साथ बैठ सकते हैं। इसकी शाखाएं और जड़ें इतनी उलझी हैं कि यह एक जंगल जैसा लगता है। मुख्य तने से निकली सैकड़ों हवाई जड़ों ने नए तने बना लिए, जो इसे अनोखा बनाते हैं। यह पेड़ काकतीय वंश और बहमनी सल्तनत के दौर से भी पुराना है। हैदराबाद के निजाम गर्मियों में इसकी ठंडी छांव में पिकनिक मनाते थे। पास में एक प्राचीन मंदिर, पुरातत्व संग्रहालय, हिरण उद्यान और चिड़ियाघर इसे पर्यटक स्थल बनाते हैं। सोशल मीडिया पर इसके फोटो वायरल हैं, जहां लोग इसे ‘पेड़ों का महल’ बुलाते हैं। कुल मिलाकर, यह प्रकृति की ऐसी कृति है, जो इतिहास और संस्कृति को अपने में समेटे हुए है।
सलाइन से इलाज: दीमक ने छीनी सेहत, अनोखे तरीके से बचाया जा रहा
पिल्लालामर्री की उम्र 800 साल होने से इसकी जड़ों में दीमक लग गई, जिसने कई मोटी टहनियों को नुकसान पहुंचाया। वन विभाग ने पहले रासायनिक कीटनाशक छिड़के, लेकिन वे बेअसर रहे। फिर एक अनोखा प्रयोग शुरू हुआ—सलाइन ड्रिप के जरिए कीटनाशक दवा चढ़ाना। हर दो मीटर पर सलाइन बोतलें लटकाई गईं, जो पेड़ की जड़ों तक दवा पहुंचा रही हैं। यह नजारा देखकर लोग दंग हैं—सैकड़ों बोतलें पेड़ पर लटक रही, मानो कोई ICU हो। वन अधिकारी रमेश बाबू ने बताया, “यह पेड़ हमारी धरोहर है, इसे बचाने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे।” सलाइन तकनीक ने दीमक को 60% तक कम किया, लेकिन चुनौती बरकरार है। स्थानीय लोग इसे ‘पेड़ का अस्पताल’ बुलाते हैं।
‘बच्चों का बरगद’: नाम का रहस्य और सांस्कृतिक महत्व
पिल्लालामर्री का नाम तेलुगु शब्द ‘पिल्ला’ (बच्चा) और ‘मर्री’ (बरगद) से आया, यानी ‘बच्चों का बरगद’। इसका मुख्य तना अब लगभग सूख चुका, लेकिन इसकी हवाई जड़ों ने नए तने बनाए, जो बच्चों जैसे उगते दिखते हैं। लोककथाएं कहती हैं कि इसके नीचे प्रार्थना करने वाले निःसंतान दंपतियों को संतान सुख मिलता था। यह पेड़ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है। काकतीय वंश के समय से यह स्थानीय लोगों के लिए आस्था का केंद्र रहा। पास का श्री वेंकटेश्वर मंदिर और पुरातत्व संग्रहालय इसे और खास बनाते हैं। पर्यटक इसे ‘जीवित जंगल’ कहते हैं, जहां हर जड़ एक नई कहानी कहती है। तेलंगाना सरकार ने इसे ‘हेरिटेज ट्री’ घोषित किया, और सालाना 50,000 पर्यटक इसे देखने आते हैं। विश्लेषक कहते हैं, यह पेड़ प्रकृति और संस्कृति का संगम है। कुल मिलाकर, पिल्लालामर्री न सिर्फ एक पेड़, बल्कि तेलंगाना की आत्मा है, जो दुनिया को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहा।
