यूपी: रामजीलाल सुमन के जरिए दलितों में पैठ बढ़ाएगी सपा, धार्मिक के बजाय जातीय ध्रुवीकरण को मिला बल
लखनऊ, 21 अप्रैल 2025: उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी (सपा) एक बार फिर दलित वोट बैंक को साधने की रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी के राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय महासचिव रामजीलाल सुमन को केंद्र में रखकर सपा दलित समुदाय में अपनी पैठ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। हाल के घटनाक्रमों और सुमन के विवादित बयानों ने जहां सियासी हलचल मचाई है, वहीं सपा इसे जातीय ध्रुवीकरण के जरिए अपने पक्ष में भुनाने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है।
राणा सांगा विवाद से शुरू हुई सियासी सरगर्मी
रामजीलाल सुमन ने हाल ही में राज्यसभा में राणा सांगा को लेकर विवादित बयान दिया था, जिसके बाद करणी सेना और क्षत्रिय संगठनों ने उनके खिलाफ तीखा विरोध जताया। सुमन के घर पर हमले और प्रदर्शनों ने इस मामले को और तूल दिया। हालांकि, सपा ने इस घटना को दलित समुदाय पर हमले के रूप में पेश करते हुए इसे अपने पक्ष में करने की कोशिश की। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सुमन के समर्थन में आगरा पहुंचकर उनके परिवार से मुलाकात की और योगी सरकार पर जमकर निशाना साधा।
रामजीलाल सुमन ने हाल ही में राज्यसभा में राणा सांगा को लेकर विवादित बयान दिया था, जिसके बाद करणी सेना और क्षत्रिय संगठनों ने उनके खिलाफ तीखा विरोध जताया। सुमन के घर पर हमले और प्रदर्शनों ने इस मामले को और तूल दिया। हालांकि, सपा ने इस घटना को दलित समुदाय पर हमले के रूप में पेश करते हुए इसे अपने पक्ष में करने की कोशिश की। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सुमन के समर्थन में आगरा पहुंचकर उनके परिवार से मुलाकात की और योगी सरकार पर जमकर निशाना साधा।
जातीय ध्रुवीकरण पर सपा की रणनीति
सियासी जानकारों का मानना है कि सपा धार्मिक ध्रुवीकरण के बजाय जातीय ध्रुवीकरण को बढ़ावा देकर दलित और पिछड़े वर्गों को एकजुट करने की कोशिश कर रही है। सुमन के बयानों, खासकर आंबेडकर जयंती के मौके पर दिए गए उस बयान में, जिसमें उन्होंने कहा कि “हर मस्जिद के नीचे मंदिर की बात करने वालों को हम कहेंगे कि हर मंदिर के नीचे बौद्ध मठ है,” ने दलित और बौद्ध समुदाय को आकर्षित करने का प्रयास किया। इस बयान ने जहां धार्मिक विवाद को जन्म दिया, वहीं सपा ने इसे दलित अस्मिता से जोड़कर अपनी रणनीति को धार दी।
सियासी जानकारों का मानना है कि सपा धार्मिक ध्रुवीकरण के बजाय जातीय ध्रुवीकरण को बढ़ावा देकर दलित और पिछड़े वर्गों को एकजुट करने की कोशिश कर रही है। सुमन के बयानों, खासकर आंबेडकर जयंती के मौके पर दिए गए उस बयान में, जिसमें उन्होंने कहा कि “हर मस्जिद के नीचे मंदिर की बात करने वालों को हम कहेंगे कि हर मंदिर के नीचे बौद्ध मठ है,” ने दलित और बौद्ध समुदाय को आकर्षित करने का प्रयास किया। इस बयान ने जहां धार्मिक विवाद को जन्म दिया, वहीं सपा ने इसे दलित अस्मिता से जोड़कर अपनी रणनीति को धार दी।

दलित संगठनों का समर्थन
रामजीलाल सुमन के समर्थन में आगरा के कई दलित संगठन भी सामने आए हैं। आंबेडकर अनुयायी एकता फाउंडेशन जैसे संगठनों ने करणी सेना को खुली चुनौती दी और सुमन के बयानों को दलित सम्मान से जोड़ा। इन संगठनों का कहना है कि सुमन पर हमला दलित समुदाय पर हमला है, और वे इसका जवाब इतिहास पढ़ाकर देंगे। सपा इस समर्थन को भुनाने की कोशिश में है और इसे अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले का हिस्सा बना रही है।
रामजीलाल सुमन के समर्थन में आगरा के कई दलित संगठन भी सामने आए हैं। आंबेडकर अनुयायी एकता फाउंडेशन जैसे संगठनों ने करणी सेना को खुली चुनौती दी और सुमन के बयानों को दलित सम्मान से जोड़ा। इन संगठनों का कहना है कि सुमन पर हमला दलित समुदाय पर हमला है, और वे इसका जवाब इतिहास पढ़ाकर देंगे। सपा इस समर्थन को भुनाने की कोशिश में है और इसे अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले का हिस्सा बना रही है।
अखिलेश की सक्रियता और भविष्य की रणनीति
अखिलेश यादव ने सुमन के घर पहुंचकर न केवल उनके परिवार का हौसला बढ़ाया, बल्कि इस मुद्दे को और गरम रखने की रणनीति बनाई। सपा ने ईद के बाद बड़े आंदोलन की चेतावनी दी थी, और अब पार्टी इसे 2027 के विधानसभा चुनावों तक ले जाने की योजना बना रही है। सपा का मानना है कि दलित वोटरों को अपने पक्ष में करने से बसपा को कमजोर किया जा सकता है, जिसका नेतृत्व मायावती कर रही हैं। हाल ही में बसपा के पूर्व नेता दद्दू प्रसाद के सपा में शामिल होने से भी इस रणनीति को बल मिला है।
अखिलेश यादव ने सुमन के घर पहुंचकर न केवल उनके परिवार का हौसला बढ़ाया, बल्कि इस मुद्दे को और गरम रखने की रणनीति बनाई। सपा ने ईद के बाद बड़े आंदोलन की चेतावनी दी थी, और अब पार्टी इसे 2027 के विधानसभा चुनावों तक ले जाने की योजना बना रही है। सपा का मानना है कि दलित वोटरों को अपने पक्ष में करने से बसपा को कमजोर किया जा सकता है, जिसका नेतृत्व मायावती कर रही हैं। हाल ही में बसपा के पूर्व नेता दद्दू प्रसाद के सपा में शामिल होने से भी इस रणनीति को बल मिला है।
विपक्ष का हमला और सपा का जवाब
भाजपा और बसपा ने सपा की इस रणनीति को “घिनौनी राजनीति” करार दिया है। मायावती ने सपा पर दलित नेताओं को आगे करके जातीय हिंसा भड़काने का आरोप लगाया। वहीं, भाजपा विधायक जीएस धर्मेश ने सुमन के बयानों को “घटिया लोकप्रियता” पाने की कोशिश बताया। दूसरी ओर, सपा का कहना है कि वह इतिहास के एकपक्षीय narrativa को चुनौती दे रही है और दलित-पिछड़े वर्गों की आवाज उठा रही है।
भाजपा और बसपा ने सपा की इस रणनीति को “घिनौनी राजनीति” करार दिया है। मायावती ने सपा पर दलित नेताओं को आगे करके जातीय हिंसा भड़काने का आरोप लगाया। वहीं, भाजपा विधायक जीएस धर्मेश ने सुमन के बयानों को “घटिया लोकप्रियता” पाने की कोशिश बताया। दूसरी ओर, सपा का कहना है कि वह इतिहास के एकपक्षीय narrativa को चुनौती दे रही है और दलित-पिछड़े वर्गों की आवाज उठा रही है।
आगे की राह
सपा की यह रणनीति कितनी कारगर होगी, यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि रामजीलाल सुमन के जरिए पार्टी ने दलित वोटरों को लामबंद करने की कोशिश तेज कर दी है। सियासी हलकों में चर्चा है कि सपा इस मुद्दे को विधानसभा चुनाव तक जीवित रखकर जातीय समीकरणों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करेगी।
सपा की यह रणनीति कितनी कारगर होगी, यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि रामजीलाल सुमन के जरिए पार्टी ने दलित वोटरों को लामबंद करने की कोशिश तेज कर दी है। सियासी हलकों में चर्चा है कि सपा इस मुद्दे को विधानसभा चुनाव तक जीवित रखकर जातीय समीकरणों को अपने पक्ष में करने की कोशिश करेगी।
