गुलजार और गुड्डी फिल्म का वह अमर प्रार्थना गीत…
गुलजार साहब बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं । वह केवल गीतकार ही नहीं फिल्म निर्देशक, पटकथा लेखक यहां तक हजारों कविताओं के लेखक और अनेक किताबों के अनुवादक भी हैं। उनके अनेक गाने भारतीय जनजीवन की सामाजिक बुनावट का हिस्सा बन चुके हैं। “हमको मन की शक्ति देना” आज भी स्कूलों में प्रार्थना गीत के रूप में गया जाता है या अभी हाल फिलहाल का उनका गाना “कजरारे- कजरारे “के बिना शायद ही कोई शादी पूरी होती हो। उनके लिखे गीतों में इतनी विविधता है कि हम उनमें जीवन से जुड़े सभी जज्बातों को पा सकते हैं। उनमें राजनीति की बात है, दर्शन की बात है तो गहरा रूमानी प्यार भी वहां हमको मिल जाएगा। उनके कुछ गाने तो एकबारगी आपसी बातचीत ही मालूम होती है जैसे फिल्म इजाजत का गीत, “मेरा कुछ सामान…”।
गुलजार ने बंदिनी के अपने पहले ही गीत “मोरा गोरा अंग लै ले” से ही एक बिल्कुल नई शैली विकसित की जिसे बहुत जल्दी श्रोताओं द्वारा पसंद भी किया जाने लगा । उनके कुछ यादगार गीतों पर हाल ही में एक किताब राजकमल प्रकाशन से जिया जले , गीतों की कहानी, गुलजार शीर्षक से आई है। यह नसरीन मुन्नी कबीर की अंग्रेजी पुस्तक का यूनुस खान द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद है। नसरीन मुन्नी कबीर हिंदी सिनेमा की गंभीर अध्येता हैं और गुरुदत्त पर किए गए महत्त्वपूर्ण शोध कार्य के अलावा फिल्मों के गीत- संगीत पर भी उन्होंने उल्लेखनीय काम किया है। गुलजार से बातचीत के आधार पर तैयार इस पुस्तक में उनके लोकप्रिय गानों के रचने की रोचक प्रक्रिया से रूबरू हुआ जा सकता है।
फिल्म गुड्डी के गाने “हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें” को ही लें तो यह गीत आज भी उत्तर भारत के हजारों स्कूलों में प्रार्थना गीत के रूप में गाया जाता है। यह गीत फिल्म गुड्डी में जया बच्चन जो उस समय जया भादुड़ी थीं पर फिल्माया गया था जो गुड्डी का किरदार कर रहीं थीं । फिल्म में वह स्कूल लेट आई है और जल्दी से प्रार्थना के लिए जा रही है। टीचर ने गुड्डी को आते हुए देख लिया है उसे आंख के इशारे से उसे स्टेज पर आकर गाने को कहती है। गाने में एक लाइन है “साथ दें तो धर्म का, चलें तो धर्म पर”। धर्म का मतलब है आस्था लेकिन यहां पर गुलजार साहब ने एक तंज किया है क्योंकि फिल्म में गुड्डी फिल्म स्टार धर्मेंद्र से प्यार करती है इसलिए इस लाइन के दोहरे मायने हैं, एक तो यह लाइन कहती है कि हम सही रास्ते पर चलें पर इस लाइन का फिल्म में यह भी मतलब है कि धर्मेंद्र की तरफ चलें या उन्हें प्यार करें।
इस फिल्म का संगीत वसंत देसाई ने दिया था। आज के बहुत सारे श्रोता ही नही बल्कि बहुत से संगीत निर्देशक या निर्देशक भी यह मानते हैं कि यह कोई लोकगीत है। गुलजार ने स्वयं के सामने घटित एक उदाहरण दिया है कि एक दिन वे शंकर- एहसान- लॉय के रिकॉर्डिंग स्टूडियो में थे जहां शाद अली,राकेश ओमप्रकाश मेहरा भी स्टूडियो में थे और इस गाने पर बात हो रही थी तो सब कह रहे थे कि यह कोई प्रार्थना गीत है जिसे गुलजार साहब ने गुड्डी फिल्म में इस्तेमाल किया है। शंकर ने जब उनकी तरफ देखा तब उन्होंने बताया कि भई यह गीत मैंने खुद गुड्डी के लिए लिखा है तो वह सब आश्चर्यचकित रह गए। यहां गुलजार ने उस बात का भी जिक्र किया है कि कैसे हिंदी के प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह ने एक कार्यक्रम में इस गाने का उल्लेख करते हुए कहा कि यह गीत कैसे एक पारंपरिक प्रार्थना गीत बनकर उनसे कहीं आगे निकल चुका है। हिंदी के इतने बड़े कवि द्वारा की गई यह तारीफ गुलजार के लिए बहुत मायने रखती है ।
यहां गुलजार यह भी बताते हैं कि ऐसे कई गाने हैं जो हमें लगता है कि यह पारंपरिक लोकगीत होंगे लेकिन यह गीतकारों द्वारा लिखे गए हैं। जैसे फिल्म परिणीता का वह गाना जो हर शादी में लड़की की सहेलियां गाती हैं “गोरे गोरे हाथों में मेहंदी रचा के” जिसे भरत व्यास ने लिखा है या फिर “एक पैसा दे दे” गाना जिसे गाकर भिखारी भीख मांगते हैं, प्रेम धवन ने लिखा था।
गुड्डी के इस गीत को वाणी जयराम ने गाया था । उनका चयन वसंत देसाई ने ही किया था उनकी आवाज में एक किशोर लड़की यानी गुड्डी वाले मिजाज को देखते हुए । गुड्डी की कहानी भी गुलजार की थी और उसका स्क्रीन प्ले , डायलॉग भी उन्होंने ही लिखे थे। असल में यह उनकी बहन जीत जिनका असली नाम सुरजीत कौर था की कहानी थी जो अपने समय में दिलीप कुमार की दीवानी हुआ करती थी और उनकी तस्वीरें काट-काट कर नोटबुक में लगाया करती थीं। पहली बार यह कहानी गुड्डी नाम से 1960 में प्रकाशित हुई थी और उनके पहले कहानी संग्रह चौसर रात में भी थी। गुलजार ने पहले गुड्डी के रूप में डिंपल को सोचा था जो उन्हें एचएस रवैल के यहां मिली थी। लेकिन ऋषि दा उन दिनों एफटीटी आई, पुणे में पढ़ रही जया भादुड़ी को यह भूमिका देने का मन बना चुके थे।
चलते-चलते
पहले फिल्म के अंत में गुड्डी सूरदास का एक भजन गाती है। पहले दिन और पहले शो में यह फिल्म दिल्ली के डिलाइट सिनेमा हॉल में देखने पहुंचे सभी लोग आश्चर्य चकित रह गए जब दर्शकों ने वह गाना देखकर हंसना और हूट करना शुरू कर दिया। हॉल से बाहर निकलते ही ऋषि दा और फिल्म के निर्माता एनसी सिप्पी ने ऋषि दा के घर की छत पर एक सेट लगवाकर यह अंतिम गाना दोबारा शूट किया। अब यह गाना मधुमति फिल्म का गाना “आजा रे परदेसी” था जिसे रातों रात शूट करके पूरे देश के प्रिंट में बदला गया और एक फिल्म जो आखिरी सीन की वजह से डूब रही थी बहुत बड़ी हिट हो गई…।




