एक लोकप्रिय विलेन, जो किसान बना
असहयोग आंदोलन का समय। अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारों से पूरे देश के साथ इलाहाबाद भी गूंज रहा था। इसी दौरान जुलूस पर गोली चलाने के दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष की तो मृत्यु हुई ही, कई छात्र घायल भी हुए और लापता भी। विश्वविद्यालय का हॉस्टल तुरंत बंद कर दिया गया। हजारों छात्र पुलिस से बचने के लिए अंडरग्राउंड हो गए। इस जुलूस में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दो मित्र रामचंद्र द्विवेदी जो कि बाद में कवि प्रदीप के नाम से फिल्मों के विख्यात गीतकार बने और दूसरे प्रतापगढ़ के रहने वाले उनके दोस्त राम बहादुर सिंह जो बीए की पढ़ाई कर चुके थे भी थे। गोली तथा लाठीचार्ज के बाद दोनों ही लापता हो गए थे। रामचंद्र द्विवेदी उर्फ प्रदीप तो कुछ दिन बाद अपने परिवार के संपर्क में आ गए लेकिन राम बहादुर सिंह का कहीं कुछ पता न चला। लंबे समय तक उनका परिवार उनका इंतजार करता रहा और जब काफी दिनों तक कोई सूचना नहीं मिली तो यह सोचकर चुप बैठ गया कि हो सकता है वह गोली या अन्य किसी दुर्घटना के शिकार हो गए हो ।
उनका परिवार अभी उन्हें भूलने की कोशिश कर ही रहा था कि 1944 में प्रतापगढ़ के सिनेमा हॉल में प्रभात फिल्म कंपनी पुणे की फिल्म राम शास्त्री प्रदर्शित हुई। प्रतापगढ़ के रहने वाले राम बहादुर सिंह के एक मित्र ने जब यह फिल्म देखी तो उन्हें लगा कि फिल्म में काम कर रहे एक पात्र की शक्ल और आवाज बिल्कुल राम बहादुर सिंह जैसी है। वे तुरंत राम सिंह के परिवार के पास गए और उन्हें यह सूचना दी। परिवारवालों को विश्वास नहीं हुआ। लेकिन फिर भी अगले दिन उनके परिवार के लोग जो गांव ईशनपुर में रहते थे दो बैलगाड़ियों पर सवार होकर फिल्म देखने पहुंचे। जब उन्होंने फिल्म में सतीश नाम के पात्र को देखा तो सकते में आ गए। यह तो बिल्कुल उनके राम बहादुर सिंह की ही शक्ल और आवाज थी। आनन-फानन में गांव की पंचायत बैठी और तय हुआ कि गांव के चार नौजवान मुंबई जाकर इस बात की सच्चाई का पता लगाएं।
अगले दिन चार लोग मुंबई से पता करते हुए पुणे की प्रभात फिल्म कंपनी जा पहुंचे और जब उन्होंने वहां राम बहादुर सिंह को जीवित और सकुशल देखा तो वह उनके गले से लिपट गए। राम सिंह ने उन्हें बताया कि वह पुलिस वालों की नजर में आ गए थे तो उनसे बचने के लिए तथा पुलिस उनके परिवार को परेशान न करें इसलिए अंडरग्राउंड हो गए थे और मुंबई होते हुए पुणे पहुंच गए थे। पुलिस उन पर शक न करे इसलिए उन्होंने परिवार से भी कोई पत्र व्यवहार नहीं किया था। खैर उसके बाद वे प्रतापगढ़ आए और अपने परिवार और दोस्तों से मिले।
अभिनेता राम सिंह का पूरा नाम ठाकुर राम बहादुर सिंह था और उनका जन्म 1920 में उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ के ईशनपुर गांव के एक जमींदार घराने में हुआ था। वी.शांताराम ने प्रभात फिल्म कंपनी के बैनर तले उन्हें कुछ फिल्मों में हीरो तथा अन्य महत्वपूर्ण रोल दिए थे। 1946 में आई फिल्म हम एक हैं जो की देवानंद की पहली फिल्म थी में राम सिंह ने खलनायक की भूमिका की थी। दिलीप कुमार की फिल्म शहीद (1948) में राम सिंह ने पुलिस अधिकारी का रोल किया था। राजकपूर और रेहाना के साथ उन्होंने फिल्म सरगम (1950) में विलेन का दमदार रोल किया था। इसी वर्ष आई फिल्म अपराधी में उन्होंने अभिनेत्री मधुबाला के साथ हीरो का रोल किया था।
उनकी ज्यादातर फिल्मों की हीरोइन रणजीत कुमारी हुआ करती थीं। वी . शांताराम ने जब प्रभात फिल्म कंपनी से अलग होकर मुंबई में राजकमल कला मंदिर की स्थापना की तो अपनी कई फिल्मों में विलेन के रोल दिए। देवानंद और गुरुदत्त से जो दोस्ती हम एक हैं के दौरान हुई वह ताउम्र रही और उनकी फिल्मों बाज, जाल (1952)आदि में उन्होंने नकारात्मक भूमिकाएं निभाईं । गुरुदत्त की फिल्म साहब बीवी और गुलाम (1962) में भी उनको मझले सरकार का रोल दिया गया था लेकिन वह स्वास्थ्य खराब होने के कारण इसे नहीं कर पाए जिसे बाद में सप्रू ने किया ।
1955 में उन्होंने एक ऐसा कदम उठाया जो उनके लिए बहुत घातक सिद्ध हुआ। गीता बाली से अपनी घनिष्ठता के चलते उन्होंने सौ का नोट फिल्म बनाई जिसमें हीरो करण दीवान थे और वह विलेन। यह फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो गई और उनकी जिंदगी भर की जमा पूंजी इस फिल्म में खत्म हो गई।
परदे से कुछ समय दूर रहने के कारण उनकी मांग भी कम होती चली गई। थक-हार कर उन्होंने धार्मिक फिल्मों में काम करना शुरू किया । कण-कण में भगवान फिल्म में उनकी महत्वपूर्ण और यादगार भूमिका थी लेकिन फिर उन्हें धार्मिक और सी ग्रेड फिल्मों में भी काम मिलना बंद हो गया और वह धीरे-धीरे गुमनामी के गहरे अंधेरे में खो गए। उनकी अंतिम फिल्म सती सुलोचना (1969) थी।1970 में माहिम में शीतला देवी मंदिर रोड पर बने अपने आलीशान बंगले को बेचकर वह अपने गांव ईशनपुर आ गए और यहां खेती-बाड़ी का अपना पुश्तैनी काम करने लगे। उनके साथ उनकी कई फिल्मों में नायिका रही रणजीत कुमारी (कौर ) भी साथ दूसरी शादी कर साथ आई थीं। राम सिंह की मृत्यु 1984 में दिल का दौरा पड़ने से हो गई थी।
चलते-चलते
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा बीए में राम सिंह के सहपाठी रह चुके थे। जब वे मुंबई से वापस आए तो उनसे मिलने गए। उन्हें निराश देख बहुगुणा जी ने तुरंत ही उनकी अध्यक्षता में उत्तर प्रदेश चित्रपट निगम की स्थापना कर दी और उसके उद्घाटन पर महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद के जीवन पर अमर शहीद आजाद फिल्म बनाने की घोषणा भी कर दी। यह 1975 का समय था। इसी दौरान इमरजेंसी लागू हो गई और बहुगुणा कांग्रेस को छोड़कर जगजीवन राम की अलग पार्टी में चले गए और उसी के साथ ही राम सिंह की अंतिम आस उत्तर प्रदेश चित्रपट निगम भी अपनी जमीन खो बैठा।






