• October 16, 2025

सर्वोदय के लिए संपूर्ण क्रांति और ग्रामोदय

 सर्वोदय के लिए संपूर्ण क्रांति और ग्रामोदय

सर्वोदय 20वीं शताब्दी के भारत के सामाजिक चिंतन की केंद्रीय अवधारणा है। गांधी द्वारा विकसित यह सिद्धांत वर्गमूलक पश्चिम, समाजवाद एवं पूंजीवाद का भारतीय विकल्प था। यद्यपि रस्किन की रचना ‘अन टू दिस लास्ट’ का प्रभाव गांधी ने भी स्वीकार किया है, परंतु सर्वोदय की जो अवधारणा गांधी प्रस्तावित करते हैं, वह रस्किन और उसके बाद भी पश्चिम में कहीं पल्लवित होती हुई दिखाई नहीं देती। इसलिए कि सर्वोदय अपने मूल और प्रकृति, दोनों में विशुद्ध भारतीय अवधारणा है, जो ‘सर्वे भवंतु सुखिन:’ और ‘मा कश्चिद् दु:खभाग्भवेत्’ पर आधारित है। पश्चिम के विचार का विकल्प मानकर इसे पश्चिमी विचारों के प्रत्युत्तर के रूप में नहीं देखा जा सकता। ऐसा करना भूल होगी क्योंकि यह प्रत्युत्तर नहीं, समावेशी वैकल्पिक सभ्यता का प्रस्ताव है। यह भारत की चिरंतन राजनीतिक एवं सामाजिक विचारसरणी का समकालीन आख्यान है।

गांधी के विचारों का यह प्रवाह स्वातंत्र्योत्तर भारत में अंतिम आदमी के उत्थान या अंत्योदय की अवधारणा में दिखाई देता है। दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय को एकात्म मानव दर्शन की सभ्यता की प्राप्ति के साधन के रूप में देखते हैं। गांधी और दीनदयाल के इस चिंतन को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने समग्र क्रांति के रूप में व्याख्यायित किया। राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख ने संपूर्ण क्रांति के प्रारंभ के बिंदु को पहचानकर ग्रामोदय की अवधारणा प्रस्तुत की और यह प्रतिपादित किया कि ग्रामोदय ही अंत्योदय का साधन एवं सर्वोदय के साध्य की प्राप्ति का एकमात्र रास्ता है। ग्रामोदय का विचार एक ऐसी समरस सामाजिक स्थिति की प्राप्ति है, जिसमें जाति के होते हुए भी जातिविहीन समाज का निर्माण संभव है। जिसमें हजारों वर्षों से वर्ण और जाति ने जो सगुण शक्ति शिल्प, कौशल एवं व्यापार के अनुभव से अर्जित की है, उसे ग्रामोत्थान के सामूहिक प्रयास के रूप में रूपांतरित किया जाए तो गांव एक ऐसी सुगठित इकाई की स्थिति प्राप्त करे, जिसमें सहयोग, सहकार, क्षमता के साथ समरसतापूर्ण जीवन सहज ही अभिव्यंजित होगा।

इस सुविचार का आधार गांधी का सर्वोदय और दीनदयाल का अंत्योदय है और इसकी गति-शक्ति जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति है। पटना के गांधी मैदान में जयप्रकाश ने यह ऐतिहासिक नारा दिया था कि “जात पात को तोड़ दो, तिलक दहेज छोड़ दो। समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो।” तो यह आवाज केवल राजनीतिक आजादी के लिए आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल नहीं था, अपित संपूर्ण क्रांति की पीठिका थी। संपूर्ण क्रांति को अंत्योदय के रूप में परिभाषित करते हुए जेपी ने कहा था कि संपूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है। उन्होंने इस समय कहा कि यही संपूर्ण क्रांति है। विधानसभा का विघटन इस क्रांति का उद्देश्य नहीं है। यह तो महज एक मील का पत्थर है। हमारी मंजिल तो बहुत दूर है और हमें अभी बहुत दूर तक जाना है।

जयप्रकाश ने जब यह हुंकार भरी थी तो उनके पीछे जो चट्टान की भांति अडिग खड़ा व्यक्ति था, वह नानाजी देशमुख थे। उन्होंने जयप्रकाश के आंदोलन को केवल सत्ता परिवर्तन तक सीमित नहीं होने दिया और संपूर्ण क्रांति को समग्र व्यवस्था परिवर्तन माना। जेपी ने समग्र व्यवस्था परिवर्तन के जो प्रमुख बिंदु गिनाए थे, उनमें भ्रष्टाचार का खात्मा, बेरोजगारी का समापन, शिक्षा में समग्र परिवर्तन आदि थे। निस्संदेह इस संपूर्ण जड़ता, गुलामी तथा क्लेश का कारण राजसत्ता थी, जिसमें एक सघन संघर्ष के बाद परिवर्तन हुआ। 1977 में राजसत्ता परिवर्तन के बाद जेपी के आंदोलन के सिपाही जब सत्ता में हिस्सेदारी के लिए व्यस्त हो गए, तब नानाजी देशमुख ने मंत्री पद के निमंत्रण को ठुकराते हुए समाज जीवन में प्रत्यक्ष कार्य करने का निर्णय लिया। संपूर्ण क्रांति को केंद्रित कर किए जाने वाले कार्यों की शुरुआत दिल्ली से नहीं, भारत के सबसे उपेक्षित और वंचित भाग के गरीबों की स्थिति परिवर्तन से होगी।

इस दृढ़ मान्यता के साथ उन्होंने उत्तर प्रदेश के अत्यंत पिछड़े जिले गोंडा से ग्रामोत्थान अभियान का प्रारंभ करने का निश्चय किया। संपूर्ण क्रांति, समग्र क्रांति या सर्वोदय को साकार करने के लिए पांच बिंदुओं पर केंद्रित कर वास्तविक परिवर्तन का यत्न प्रारंभ किया। 1. कोई बेकार न रहे, 2. कोई गरीब न रहे 3. कोई बीमार न रहे 4. कोई अशिक्षित न रहे, और 5. हरगांव हरा-भरा और विवाद मुक्त हो। सर्वोदय की अवधारणा इन पांच बिंदुओं में ही समाहित है। सर्वोदय तभी है, जब भय,भूख, अशिक्षा, रोग और बेकारी न हो। सभी समर्थ हो, सबको जीवनयापन के लिए काम मिले। जीवनयापन की व्यवस्था पारस्परिक सहयोग एवं सहकार से निर्मित हो। जिस सामुदायिक जीवन में विवादों से मुक्ति के लिए न्यायालय की आवश्यकता न हो, वही सर्वोदय है। यह स्थिति प्राप्त हो तो गांधी का रामराज्य साकार होता है। यही विनोबा का सर्वोदय है। गोलवलकर का धर्मराज्य और जयप्रकाश नारायण की समग्र क्रांति है।

आदर्श समाज, समर्थ मनुष्य और संपन्न गांव निर्माण के विविध प्रयोगों को अनुष्ठित करते हुए नानाजी ने गोंडा के जयप्रभा ग्राम से लेकर चित्रकूट के ग्रामोदय प्रकल्प तक इसको व्यावहारिक रूप से सफल करके दिखाया। नानाजी ने यह सिद्ध कर दिया कि व्यक्ति निर्माण, अंत्योदय और ग्रामोदय विविक्त प्रयोगभूमियाँ नहीं हैं। इनमें संसक्तता और इसको राज्य का सहकार प्राप्त हो तो भारत में आर्थिक, सामाजिक परिवर्तन की गति को तीव्रतर करके भव्य भारत बनाया जा सकता है। भारत निर्माण के इन दोनों महान शिल्पकारों, जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख ने सर्वोदय के लिए अंत्योदय, अंत्योदय के लिए ग्रामोदय, ग्रामोदय के लिए जड़ व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करने वाली संपूर्ण क्रांति, जो भारत के आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित होगी, उसका अनुपम पथ प्रशस्त किया। यह रास्ता गांधी और गोलवलकर, सावरकर और आंबेडकर, सबके श्रेष्ठ चिंतन से प्रेरित था।

नानाजी के सफल प्रयोगों ने नए भारत की निर्मिति पर व्यापक प्रभाव डाला है। आत्मनिर्भर भारत का आह्वान हो या आयुष्मान भारत का मिशन या राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से सबके लिए शिक्षा का लक्ष्य हो, सबको काम, सबको शिक्षा, सबका स्वास्थ्य और सबकी गरीबी का उन्मूलन पर जोर देने वाली नीति, संपूर्ण क्रांति अथवा समग्र व्यवस्था परिवर्तन के व्यापक परिप्रेक्ष्य में किया जा रहा यत्न है। कोई गरीब न रहे, इसके लिए हर गांव को समर्थ एवं संपन्न बनाना होगा। गांव समर्थ हो, इसके लिए गांव को कृषि के साथ-साथ उत्पादन का केंद्र भी बनाना होगा। कोई बेकार न हो, इसके लिए प्रत्येक कार्य को गौरवशाली एवं व्यक्ति को कौशल संपन्न भी बनाना होगा।

भारत में कौशल एवं ज्ञान के बीच का रिश्ता समाप्त हो गया है। उसे जोड़ना होगा। श्रम का कार्य भी बुद्धि के कार्य के समान ही महत्त्वपूर्ण एवं सम्मानजनक है, इस भाव से युक्त समाज का निर्माण करना होगा। निस्संदेह भारत में इस दिशा में व्यापक परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहा है। गांव के उत्पाद को वैश्विक पहचान, भारत की सांस्कृतिक विरासतों की गौरवशाली प्रस्तुति, दासता के मनोभाव से मुक्ति वाली व्यवस्था के निर्माण और गुलामी के हर चिह्न से मुक्ति के संकल्प के साथ-साथ किसान, दस्तकार और श्रमिकों को राष्ट्रीय सम्मान मिलने हेतु जहां गांव के जीवन को गौरव का जीवन बनाया है, वहीं नये भारत ने गांवों को नवीन प्रौद्योगिकी और सूचना क्रांति से जोड़ कर ग्राम जीवन को गौरवपूर्ण जीवन के रूप में प्रतिस्थापित किया है। तकनीक का अंतिम व्यक्ति के उदय के लिए उपयोग की नीति से अंतिम आदमी की सरकार तक पहुंच बनी है। राष्ट्रीय जीवन में प्रत्येक व्यक्ति की सहभागिता सुनिश्चित हुई है। ग्रामोत्थान द्वारा अंत्योदय को साकार कर सशक्त समाज, समृद्ध राष्ट्र एवं संस्कारित मनुष्य के निर्माण की सर्वोदय दृष्टि चरितार्थ होती दिखाई दे रही है। यही संपूर्ण क्रांति है, जिसका लक्ष्य सर्वोदय है, जो अंत्योदय से साकार होती है और जिसका एकमात्र रास्ता ग्रामोदय है। यही लोकनायक और राष्ट्रऋषि का प्रवर्तित पथ और देय है।

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Rama Niwash Pandey

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