काशी में भीमेश्वर ज्योर्तिलिंग के दर्शन का पुण्य लाभ,काशी करवत मंदिर में विराजित

मंदिरों के शहर बनारस में बाबा श्री काशी विश्वनाथ के साथ भीमेश्वर ज्योर्तिलिंग के दर्शन का पुण्य लाभ भी शिवभक्तों को मिलता है। खास बात यह है कि काशी करवत मंदिर में ही भीमेश्वर ज्योर्तिलिंग विराजित हैं।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के गेट नं0-2 (सरस्वती फाटक) के पास स्थित मंदिर में भीमेश्वर ज्योर्तिलिंग भू-तल में स्थापित है। भीमेश्वर महादेव का शिवलिंग जमीन से लगभग 25 फीट नीचे है। पावन ज्योर्तिलिंग का दर्शन ऊपर से ही किया जा सकता है। भीमेश्वर ज्योर्तिलिंग के दर्शन करने से श्रद्धालु के सभी पाप तुरंत नष्ट हो जाते हैं। माना जाता है कि द्वापर काल में काशी में द्वादश ज्योर्तिलिंग का उद्भव हुआ था। यह मंदिर द्वापर काल में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के पूर्व का है।
काशी खंड में उल्लेख है कि भीमेश्वर महादेव द्वादश ज्योर्तिलिंग में सबसे पहले प्रकट हुए थे। मंदिर का स्कंदपुराण में भी जिक्र है। एक कथा के अनुसार राजा दिवोदास के मोक्ष प्राप्ति के बाद महादेव पुन: द्वादश ज्योर्तिलिंग काशी में ही विराजमान हो गए। कहा जाता है कि काशी करवत में विराजमान भीमेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे क्षेत्र में सह्य पर्वत पर स्थित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की प्रतिकृति है। पुराणों में वर्णित सात मोक्ष पुरियों ‘अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जैन), द्वारकापुरी में काशी की प्रधानता के कारण लोग मोक्ष के लिए यहांं प्राचीनकाल में देहत्याग करते थे।
शिवाराधना समिति के डॉ मृदुल मिश्र बताते है कि काशी में जीव मात्र को भगवान शिव मोक्ष प्रदान करते हैं। काशी करवत में भीमेश्वर के समक्ष आरा (करवत) से शीश कटा कर प्राण दान करने का उल्लेख स्कंद पुराण है। प्राचीन काल में संत साधक, हठयोगी और संन्यासी मोक्ष की कामना से भीमेश्वर के निकट प्राण त्यागते थे। कहा जाता है कि भीमेश्वर के सम्मुख शीश अर्पण कर प्राणदान के लिए लोग अपनी गर्दन पर करवत (आरा) चलवा देते है। धार्मिक मृत्यु (मोक्ष) के लिए करवत चलवाने का उल्लेख महाकवि सूरदास ने भी किया है। महाकवि सूरदास लिखते है ‘काहू के मन की कोवु न जाने, लोगन के मन हासी। सूरदास प्रभु तुम्हारे दरस बिन, लेहो करवट कासी। मीरा, संत कबीर, गुरुनानक देव, मलिक मोहम्मद जायसी ने भी अपनी रचनाओं में काशी करवत के बारे में उल्लेख किया है।
डॉ मिश्र बताते है कि भीमा शंकर भोग और मोक्ष दोनों के प्रदाता हैं। काशी खंड में उल्लेख है कि इनके दर्शन करने मात्र से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं। ये जीवित रहते हुए भोग और मृत्यु के उपरांत मोक्ष के प्रदाता हैं। यह स्थान काशी में मोक्ष के लिए प्रसिद्ध रहा है।
डॉ मिश्र बताते हैं कि शिव महापुराण में भीमेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राकट्य की विस्तार से कथा है। मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोगों के अनुसार मंदिर का निर्माण लगभग सौ वर्ष पूर्व तत्कालीन महंत पं. किशोरी लाल उपाध्याय (स्मृतिशेष) ने कराया था। सावन मास में प्रतिदिन शाम को शृंगार एवं रुद्राभिषेक होता है। पूर्णिमा को विशेष श्रृंगार व रुद्राभिषेक होता है।
