• October 14, 2025

हिंदी सिनेमा के गीतों का सफर: ग्रामोफोन से डिजिटल युग तक की कहानी

15 सितम्बर 2025 , लखनऊ: हिंदी सिनेमा और इसके गीत हमारी संस्कृति का एक अनमोल हिस्सा हैं। ये गीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि भावनाओं, कहानियों और समाज के बदलते रंगों का आईना भी हैं। ग्रामोफोन के दौर से लेकर आज के डिजिटल प्लेलिस्ट तक, हिंदी सिनेमा के गीतों ने एक लंबा और रोचक सफर तय किया है। आइए, इस सफर को करीब से देखें और समझें कि कैसे ये गीत हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए।ग्रामोफोन का जादू: शुरुआती दौरहिंदी सिनेमा की शुरुआत 1913 में राजा हरिश्चंद्र जैसी मूक फिल्मों से हुई थी। उस समय संगीत का कोई खास स्थान नहीं था, क्योंकि फिल्में बिना आवाज़ की होती थीं। लेकिन 1931 में आई फिल्म आलम आरा ने हिंदी सिनेमा में क्रांति ला दी। यह भारत की पहली बोलती फिल्म थी, जिसमें सात गीत शामिल थे। इन गीतों को ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स पर रिकॉर्ड किया गया और लोग इन्हें घरों में सुनने लगे। उस समय गाने छोटे और साधारण होते थे, लेकिन उनकी धुनें दिल को छू लेती थीं।1930 और 1940 के दशक में, केएल सहगल, पंकज मलिक और नूरजहां जैसे गायकों ने अपनी आवाज़ से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
फिल्म देवदास (1935) का गाना “बालम आय बसो मोरे मन में” आज भी उतना ही ताज़ा लगता है। उस समय गाने ज्यादातर शास्त्रीय संगीत और लोक धुनों पर आधारित होते थे। ग्रामोफोन की बड़ी-बड़ी डिस्क पर रिकॉर्ड होने वाले ये गीत रेडियो के ज़रिए घर-घर तक पहुंचते थे।रेडियो का सुनहरा युग1940 और 1950 के दशक में रेडियो ने हिंदी फिल्मी गीतों को और लोकप्रिय बना दिया। रेडियो सीलोन और आकाशवाणी जैसे स्टेशनों ने लोगों को लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, और मुकेश जैसे महान गायकों से जोड़ा। इस दौर में राज कपूर, गुरु दत्त, और दिलीप कुमार की फिल्मों के गीतों ने लोगों के दिलों में जगह बनाई। फिल्म आवारा (1951) का गाना “आवारा हूं” न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी मशहूर हुआ।इस समय के गीतों में कहानी और भावनाओं का गहरा मेल होता था। संगीतकार जैसे नौशाद, सी रामचंद्र, और शंकर-जयकिशन ने शास्त्रीय, लोक, और पश्चिमी संगीत का सुंदर मिश्रण तैयार किया। गीतों के बोल भी सरल लेकिन गहरे अर्थ वाले होते थे। उदाहरण के लिए, बरसात (1949) का गाना “हवा में उड़ता जाए” आज भी लोगों को झूमने पर मजबूर कर देता है।
कैसेट और टेप का ज़माना1970 और 1980 के दशक में तकनीक ने संगीत के क्षेत्र में नया रंग भरा। ग्रामोफोन की जगह कैसेट और टेप ने ले ली। अब लोग अपनी पसंदीदा फिल्मों के गाने आसानी से घर पर सुन सकते थे। इस दौर में आरडी बर्मन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, और कल्याणजी-आनंदजी जैसे संगीतकारों ने संगीत को और रंगीन बनाया।किशोर कुमार और आशा भोसले की जोड़ी ने कई हिट गाने दिए। शोले (1975) का “ये दोस्ती” और मिस्टर इंडिया (1987) का “काटे नहीं कटते” जैसे गाने आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं। इस समय गाने अधिक मॉडर्न और पॉप स्टाइल में बनने लगे। डिस्को और रॉक का प्रभाव भी गानों में दिखाई देने लगा, जैसे कयामत से कयामत तक (1988) का “पापा कहते हैं”।सीडी और डिजिटल क्रांति1990 के दशक में सीडी ने कैसेट की जगह ले ली। साथ ही, टीवी चैनलों जैसे एमटीवी और चैनल V ने संगीत को नया आयाम दिया। इस समय एआर रहमान, अनु मलिक, और जतिन-ललित जैसे संगीतकारों ने हिंदी सिनेमा के गीतों को वैश्विक स्तर पर ले जाने में मदद की। दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995) के गाने “मेहंदी लगा के रखना” और रंग दे बसंती (2006) का “रूबरू” जैसे गीतों ने युवाओं को खूब आकर्षित किया।
2000 के दशक में इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने संगीत को पूरी तरह बदल दिया। अब लोग यूट्यूब, स्पॉटिफाई, और गाना जैसे प्लेटफॉर्म्स पर गाने सुनने लगे। गाने अब सीधे मोबाइल फोन पर उपलब्ध होने लगे। इस दौर में प्रितम, विशाल-शेखर, और अमित त्रिवेदी जैसे संगीतकारों ने आधुनिक और पारंपरिक संगीत का मिश्रण तैयार किया। जब वी मेट (2007) का “तुम से ही” और बजरंगी भाईजान (2015) का “सेल्फी ले ले रे” जैसे गाने हर उम्र के लोगों को पसंद आए।डिजिटल युग और भविष्यआज का युग डिजिटल प्लेलिस्ट का है। लोग अपनी पसंद के गाने चुनकर अपनी प्लेलिस्ट बनाते हैं। जियोसावन, स्पॉटिफाई, और अमेज़न म्यूजिक जैसे प्लेटफॉर्म्स ने संगीत को और सुलभ बना दिया है। साथ ही, सोशल मीडिया ने गानों को वायरल करने में बड़ी भूमिका निभाई है। पद्मावत (2018) का “घूमर” और गली बॉय (2019) का “अपना टाइम आएगा” जैसे गाने रातोंरात मशहूर हो गए।आज के गाने पहले की तुलना में अधिक प्रयोगधर्मी हैं। रैप, इलेक्ट्रॉनिक, और इंडी म्यूजिक का प्रभाव साफ दिखता है। लेकिन पुराने गाने भी अपनी जगह बनाए हुए हैं। लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी के गाने आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं। डिजिटल युग में रीमिक्स और रीमेक का चलन भी बढ़ा है। पुराने गानों को नए अंदाज़ में पेश किया जा रहा है, जैसे लaila मैं लैला का रीमिक्स।
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Rama Niwash Pandey

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