तेलंगाना बंद: आरक्षण की लड़ाई में एकजुट हुआ राज्य, जानें हैदराबाद समेत कहां-कहां लगेगा ताला
हैदराबाद, 18 अक्टूबर 2025: आज तेलंगाना में एक ऐसी लहर उठी है जो सामाजिक न्याय की मांग को नई ताकत दे रही है। पिछड़ा वर्ग संगठनों के आह्वान पर राज्यव्यापी बंद ने राजनीतिक दलों को एक मंच पर ला खड़ा किया है। सड़कों पर उतर आए लोग, जो वर्षों से चली आ रही आरक्षण की लड़ाई को नई दिशा देना चाहते हैं। लेकिन यह बंद सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि एक संदेश है कि पिछड़े वर्गों के हक के लिए कोई समझौता नहीं। क्या यह बंद रोजमर्रा की जिंदगी को पूरी तरह ठप कर देगा? हैदराबाद की चहल-पहल वाली गलियां शांत हो जाएंगी या आवश्यक सेवाएं सुचारू रहेंगी? आइए, जानते हैं इस बंद के पीछे की कहानी, इसका असर और उन चुनौतियों को जो राज्य के लाखों लोगों के भविष्य से जुड़ी हैं।
आरक्षण की मांग: क्यों सड़कों पर उतरा तेलंगाना?
पिछड़ा वर्ग समुदाय के लिए 42 प्रतिशत आरक्षण की मांग ने आज तेलंगाना को हिला दिया। स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़ी जातियों को यह कोटा देने के राज्य सरकार के फैसले पर तेलंगाना हाईकोर्ट ने 9 अक्टूबर को रोक लगा दी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन वहां भी 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा की याद दिलाई गई। प्रस्तावित व्यवस्था में ओबीसी, एससी, एसटी और अन्य के लिए कुल 67 प्रतिशत कोटा था, जिसे सभी दलों ने समर्थन दिया। लेकिन कोर्ट के फैसले ने लाखों युवाओं के सपनों पर पानी फेर दिया। बीसी जॉइंट एक्शन कमिटी (जेएसी) ने 136 संगठनों के साथ बंद बुलाया, जिसे बीआरएस, भाजपा, कांग्रेस और वामपंथी दलों ने जॉइन किया। भाजपा सांसद आर कृष्णैया ने इसे पिछड़े वर्गों की सामूहिक आवाज बताया। डिप्टी सीएम भट्टी विक्रमarka ने केंद्र पर दोष मढ़ा। यह बंद न सिर्फ विरोध है, बल्कि न्याय की गुहार भी। प्रदर्शनकारी शांतिपूर्ण तरीके से सड़कों पर उतरे, लेकिन पुलिस ने सतर्कता बरती। हैदराबाद, वारंगल और करीमनगर में रैलियां हुईं, जो राज्य के भविष्य को बदल सकती हैं। यह आंदोलन आरक्षण को रोजगार और स्थानीय निकायों में लागू करने की दिशा में बड़ा कदम है। लाखों लोग उम्मीद बांधे हैं कि यह संघर्ष फलित होगा।
बंद का असर: शिक्षा से परिवहन तक, क्या-क्या ठप?
आज का बंद तेलंगाना की जिंदगी को गहराई से छू गया। सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूल, कॉलेज बंद रहे, क्योंकि टीआरएसएमए ने छुट्टी घोषित कर दी। फेडरेशन ऑफ तेलंगाना एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस ने भी समर्थन दिया। सरकारी कार्यालयों में उपस्थिति न्यूनतम रही, हालांकि आधिकारिक छुट्टी नहीं घोषित हुई। हैदराबाद के एमजीबीएस, अप्पल और कुukatपल्ली डिपो पर प्रदर्शनकारियों ने बसें रोकीं, जिससे टीएसआरटीसी की सेवाएं सीमित रूट्स पर सिमट गईं। मेट्रो सामान्य चली, लेकिन यात्रियों की संख्या घटी। ऑटो और टैक्सी यूनियनों की भागीदारी अस्पष्ट रही। बाजारों और दुकानों में हैदराबाद के सेंट्रल इलाकों में ताले लटके, खासकर छोटे व्यापारियों ने बंद का पालन किया। वारंगल, निजामाबाद, खम्मम और महबूबनगर में भी दुकानें बंद रहीं। ट्रैफिक जाम और रोड ब्लॉक ने शहरों को प्रभावित किया। पुलिस ने प्रमुख चौराहों पर तैनाती बढ़ाई, डीजीपी बी शिवाधर रेड्डी ने शांति बनाए रखने की अपील की। अवैध गतिविधियों पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी। यह बंद न सिर्फ आर्थिक गतिविधियों को रोका, बल्कि सामाजिक जागरूकता भी फैलाई। लोगों ने घरों में रहना चुना, जबकि प्रदर्शन ने मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उछाला। कुल मिलाकर, बंद ने राज्य को एकजुट दिखाया, लेकिन आवश्यक सेवाओं पर असर न के बराबर रहा।
आवश्यक सेवाएं बरकरार: जीवन रुका नहीं, संघर्ष तेज
बंद के बावजूद तेलंगाना में जीवन पूरी तरह ठप नहीं पड़ा। अस्पताल, पुलिस स्टेशन, होटल और इमरजेंसी सेवाएं पूरी तरह चालू रहीं। मेडिकल इमरजेंसी में कोई रुकावट नहीं आई, न ही कानून-व्यवस्था प्रभावित हुई। दूध, सब्जी और किराना जैसी एसेंशियल दुकानें आंशिक रूप से खुलीं, हालांकि ग्राहकी कम रही। प्राइवेट ऑफिसों में भी न्यूनतम स्टाफ ने काम किया। हैदराबाद में मेट्रो ने सुबह से ही यात्रियों को सुविधा दी, जबकि ग्रामीण इलाकों में आवश्यक वाहन चलते रहे। राजनीतिक एकता ने बंद को मजबूती दी—कांग्रेस ने इसे बीजेपी के खिलाफ हथियार बनाया, जबकि बीआरएस ने पिछड़ों के लिए हमेशा खड़े होने का दावा किया। सीपीआई और सीपीएम जैसे वाम दलों ने भी साथ दिया। भविष्य में कैबिनेट मीटिंग 23 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा करेगी। यह बंद आरक्षण विधेयक को मंजूरी दिलाने की दिशा में दबाव बनेगा। लोगों से अपील की गई कि शांतिपूर्ण रहें। कुल मिलाकर, यह दिन संघर्ष का प्रतीक बना, जहां आवश्यक सेवाओं ने सामान्यता बनाए रखी। तेलंगाना अब इंतजार कर रहा है कि न्याय कब मिलेगा।
