सुप्रीम कोर्ट की CBI जांच पर सख्त टिप्पणी: ‘नियमित आदेश नहीं, अंतिम उपाय होना चाहिए’
नई दिल्ली, 17 अक्टूबर 2025: सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक अदालतों को CBI जांच के आदेश देने पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने कहा कि CBI जांच का निर्देश ‘अंतिम उपाय’ होना चाहिए, और इसका इस्तेमाल केवल तभी करना चाहिए जब जांच की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल हों या मामला राष्ट्रीय स्तर पर जटिल हो। यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द करते हुए आई, जिसमें उत्तर प्रदेश विधान परिषद भर्ती में कथित अनियमितताओं की CBI जांच का निर्देश दिया गया था। क्या यह फैसला जांच एजेंसियों पर दबाव कम करेगा? या निष्पक्षता की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं के लिए नई चुनौती बनेगा? आइए, इस मामले और सुप्रीम कोर्ट के रुख को विस्तार से समझते हैं।
मामला क्या है: इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश रद्द
जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें उत्तर प्रदेश विधान परिषद के कर्मचारी भर्ती प्रक्रिया में अनियमितताओं की CBI जांच का आदेश दिया गया था। याचिकाकर्ताओं ने भर्ती में भ्रष्टाचार और पक्षपात का आरोप लगाया था, जिसके आधार पर हाईकोर्ट ने CBI को जांच सौंपी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने बिना पर्याप्त सबूतों के और सामान्य संदेह के आधार पर यह आदेश दिया, जो उचित नहीं है। कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह मामले की मेरिट पर दोबारा विचार करे और स्थानीय पुलिस या अन्य एजेंसियों की जांच की संभावनाएं तलाशे।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: ‘CBI जांच अंतिम विकल्प’
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि CBI जांच का आदेश नियमित रूप से नहीं दिया जाना चाहिए। बेंच ने कहा, “संवैधानिक अदालतों को अपनी शक्तियों का उपयोग संयम और सावधानी से करना चाहिए। CBI जांच तभी जरूरी है जब प्रथम दृष्टया अपराध साबित हो और जांच की निष्पक्षता पर गंभीर संदेह हो।” कोर्ट ने निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया:
- सामान्य संदेह पर्याप्त नहीं: केवल राज्य पुलिस पर अविश्वास या संदेह के आधार पर CBI जांच नहीं दी जा सकती।
- असाधारण परिस्थितियां जरूरी: मामला जटिल, व्यापक या राष्ट्रीय महत्व का होना चाहिए, जहां CBI की विशेषज्ञता जरूरी हो।
- न्यायिक संयम: अदालतों को CBI पर अनावश्यक बोझ नहीं डालना चाहिए, खासकर उन मामलों में जो स्थानीय एजेंसियां संभाल सकती हैं।
कोर्ट ने कहा कि CBI जांच का आदेश ‘अंतिम उपाय’ के रूप में देखा जाना चाहिए, जब अन्य सभी विकल्प खत्म हो जाएं और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल हों।
प्रभाव और सवाल: CBI की स्वायत्तता और जांच का बोझ
यह फैसला CBI पर बढ़ते दबाव को कम करने की दिशा में एक कदम है। हाल के वर्षों में CBI को कई मामलों में जांच सौंपी गई, जिससे संसाधनों और समय की कमी सामने आई। X पर वायरल चर्चाओं में कुछ यूजर्स इसे ‘CBI की स्वायत्तता की रक्षा’ बता रहे हैं, जबकि अन्य का मानना है कि यह निष्पक्ष जांच की मांग करने वालों के लिए रास्ता कठिन करेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट का यह रुख स्थानीय पुलिस को और जवाबदेह बनाएगा, लेकिन अगर राज्य सरकारें जांच को प्रभावित करती हैं, तो याचिकाकर्ताओं के पास सीमित विकल्प रह जाएंगे। क्या यह फैसला CBI की विश्वसनीयता को और मजबूत करेगा? या भ्रष्टाचार के मामलों में देरी का कारण बनेगा? यह भविष्य की सुनवाइयों में स्पष्ट होगा।
