सुप्रीम कोर्ट की सलाह: शिवराज सिंह चौहान और विवेक तन्खा से मानहानि मामले को बातचीत से सुलझाने की अपील
नई दिल्ली, 23 अप्रैल 2025: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा को आपसी बातचीत के जरिए मानहानि मामले को सुलझाने की सलाह दी। यह मामला 2021 में मध्य प्रदेश के पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण से जुड़े विवाद के दौरान कथित तौर पर तन्खा के खिलाफ अपमानजनक बयानबाजी से संबंधित है। जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने दोनों पक्षों के वरिष्ठ वकीलों से कहा, “कृपया हमें यह मामला सुनने के लिए मजबूर न करें। आप दोनों मिलकर इसे सुलझाएं।”
मामले का विवरण
विवेक तन्खा ने शिवराज सिंह चौहान, मध्य प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वी.डी. शर्मा, और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था। तन्खा का आरोप है कि 2021 में पंचायत चुनावों के दौरान इन नेताओं ने उन्हें ओबीसी आरक्षण का विरोधी बताकर “संगठित, दुर्भावनापूर्ण, और झूठा” अभियान चलाया, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को गहरा नुकसान पहुंचा। तन्खा ने 10 करोड़ रुपये के हर्जाने और आपराधिक मानहानि की कार्यवाही शुरू करने की मांग की है।
यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर 2021 को मध्य प्रदेश में पंचायत चुनावों पर रोक लगाई थी, क्योंकि चुनावों में रोटेशन और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी। तन्खा ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी की थी। बीजेपी नेताओं ने तन्खा पर ओबीसी आरक्षण का विरोध करने का आरोप लगाया, जिसे तन्खा ने झूठा और अपमानजनक बताया।
20 जनवरी 2024 को जबलपुर की विशेष अदालत ने तन्खा की शिकायत पर संज्ञान लेते हुए तीनों बीजेपी नेताओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 500 (मानहानि) के तहत कार्यवाही शुरू की और उन्हें समन जारी किया। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 25 अक्टूबर 2024 को इस मामले को रद्द करने की चौहान की याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस सुंदरेश और जस्टिस बिंदल की पीठ ने दोनों पक्षों से सौहार्दपूर्ण समाधान की अपील की। कोर्ट ने कहा, “नेता होने के नाते आपको मोटी चमड़ी वाला होना चाहिए। कोई आसमान नहीं गिर पड़ेगा।” पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस मामले को बंद करना चाहती है और दोनों पक्षों को आपसी सहमति से हल निकालने का मौका देना चाहती है।
विवेक तन्खा की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, “अगर शिवराज सिंह चौहान अपने बयानों के लिए खेद व्यक्त करते हैं, तो मैं मामले को सुलझाने के लिए तैयार हूं।” वहीं, चौहान की ओर से वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने जवाब दिया, “अगर कोई गलती ही नहीं हुई है, तो मंत्री को खेद क्यों व्यक्त करना चाहिए?” हालांकि, जेठमलानी ने सिब्बल के साथ बैठक कर चर्चा करने की इच्छा जताई।
कोर्ट ने अगली सुनवाई 21 मई 2025 को निर्धारित की है और चौहान को ट्रायल कोर्ट में व्यक्तिगत पेशी से छूट जारी रखी है। साथ ही, तीनों बीजेपी नेताओं के खिलाफ जमानती वारंट पर पहले से लगी रोक को भी बरकरार रखा है।

दोनों पक्षों के तर्क
विवेक तन्खा का पक्ष: तन्खा ने दावा किया कि बीजेपी नेताओं ने बिना तथ्यों के उन्हें ओबीसी विरोधी बताकर उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में उनकी याचिका केवल रोटेशन और परिसीमन से संबंधित थी, न कि ओबीसी आरक्षण के खिलाफ। तन्खा ने इसे एक वकील के रूप में अपनी छवि पर हमला बताया और 10 करोड़ रुपये के हर्जाने की मांग की।
शिवराज सिंह चौहान का पक्ष: चौहान के वकील महेश जेठमलानी ने तर्क दिया कि कथित बयान विधानमंडल में दिए गए थे, जो संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत संरक्षित हैं। उन्होंने यह भी कहा कि तन्खा द्वारा पेश किए गए सबूत, जैसे समाचार पत्रों की कतरनें, मानहानि के आरोपों की पुष्टि नहीं करते। जेठमलानी ने जमानती वारंट को अनुचित ठहराया, क्योंकि पक्षकार वकील के माध्यम से कोर्ट में पेश हो सकते थे।
सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस मामले ने मध्य प्रदेश की राजनीति में खासी हलचल मचाई है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कुछ यूजर्स ने सुप्रीम कोर्ट की सलाह की सराहना की, जबकि अन्य ने इसे राजनेताओं के बीच बढ़ते टकराव का उदाहरण बताया। एक यूजर ने लिखा, “सुप्रीम कोर्ट ने सही कहा, नेताओं को छोटी-मोटी बातों पर मोटी चमड़ी दिखानी चाहिए। बातचीत से हल निकल सकता है।”
कांग्रेस और बीजेपी के स्थानीय नेताओं ने इस मामले को लेकर एक-दूसरे पर निशाना साधा है। कांग्रेस ने इसे बीजेपी की “बदले की राजनीति” का हिस्सा बताया, जबकि बीजेपी ने तन्खा के आरोपों को “बेबुनियाद” करार दिया।
कानूनी और सामाजिक संदर्भ
भारत में मानहानि के कानून के तहत, कोई भी व्यक्ति जो किसी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने वाली टिप्पणी सार्वजनिक रूप से करता है, उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 500 के तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है। इस मामले में तन्खा को केवल यह साबित करना होगा कि बयान अपमानजनक थे और सार्वजनिक रूप से दिए गए। वहीं, बचाव पक्ष को यह साबित करना होगा कि बयान सत्य थे या संवैधानिक संरक्षण के दायरे में आते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी कि “नेताओं को मोटी चमड़ी वाला होना चाहिए” राजनीति में बढ़ते मानहानि के मुकदमों पर एक व्यापक टिप्पणी है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामले अक्सर राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा देते हैं और अदालतों का समय बर्बाद करते हैं। कानूनी विश्लेषक प्रो. अनिल शर्मा ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट की सलाह व्यावहारिक है। राजनेताओं को व्यक्तिगत हमलों से ऊपर उठकर बातचीत से समाधान निकालना चाहिए।”
