वाराणसी में सपा नेता हरीश मिश्रा पर हमला: काशी विद्यापीठ कैंपस के पास हिंसक घटना ने बढ़ाया राजनीतिक तनाव
वाराणसी, 12 अप्रैल 2025: उत्तर प्रदेश के वाराणसी में शनिवार को उस समय सनसनी फैल गई, जब समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता हरीश मिश्रा पर काशी विद्यापीठ कैंपस के समीप कथित तौर पर जानलेवा हमला हुआ। इस घटना ने स्थानीय राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है, और सपा कार्यकर्ताओं में भारी आक्रोश देखा जा रहा है। हमले का आरोप करणी सेना से जुड़े लोगों पर लगाया गया है, जिसके बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है।
हमले की घटना और पृष्ठभूमि
जानकारी के अनुसार, हरीश मिश्रा, जो वाराणसी में सपा के सक्रिय नेताओं में से एक हैं, शनिवार दोपहर काशी विद्यापीठ कैंपस के आसपास किसी निजी काम से जा रहे थे। इसी दौरान कुछ अज्ञात हमलावरों ने उन पर चाकू और अन्य हथियारों से हमला कर दिया। मिश्रा को गंभीर चोटें आईं, और उन्हें तत्काल नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है, लेकिन सपा समर्थकों का गुस्सा सातवें आसमान पर है।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हमला अचानक हुआ और हमलावरों ने मिश्रा को घेरकर वार किए। स्थानीय लोगों ने तुरंत हस्तक्षेप किया और दो हमलावरों को मौके पर ही दबोच लिया। गुस्साई भीड़ ने दोनों हमलावरों की पिटाई कर दी, जिसके बाद उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया। इस घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं, जिसमें हमलावरों को पकड़ने और पिटाई की तस्वीरें साफ दिखाई दे रही हैं।
हरीश मिश्रा ने हाल ही में करणी सेना को लेकर कुछ बयान दिए थे, जिसमें उन्होंने संगठन की गतिविधियों पर सवाल उठाए थे। सपा नेताओं का दावा है कि यह हमला उनके बयानों का जवाब देने के लिए एक सुनियोजित साजिश थी। मिश्रा ने करणी सेना पर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने और हिंसक गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया था, जिसके बाद दोनों पक्षों में तल्खी बढ़ गई थी।

सपा का आरोप: सत्ता का दुरुपयोग
सपा नेताओं ने इस हमले को लोकतंत्र पर हमला करार दिया है। सपा के स्थानीय नेता ओम प्रकाश पटेल ने कहा, “हरीश मिश्रा पर हुआ हमला सत्ता समर्थित लोगों की कुंठा और हताशा को दर्शाता है। योगी सरकार में कानून-व्यवस्था अपने निम्नतम स्तर पर है। करणी सेना जैसे संगठन खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं, और पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है।”
सपा समर्थकों ने वाराणसी के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं और इस मामले में तत्काल कार्रवाई की मांग की है। कुछ कार्यकर्ताओं ने इसे “जातिवादी गुंडों” की साजिश करार देते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधा है। एक अन्य सपा नेता ने कहा, “यह हमला सिर्फ हरीश मिश्रा पर नहीं, बल्कि बहुजन नेतृत्व और सामाजिक न्याय की आवाज को दबाने की कोशिश है।”
करणी सेना का खंडन
दूसरी ओर, करणी सेना ने इन आरोपों का खंडन किया है। संगठन के एक स्थानीय प्रतिनिधि ने कहा, “हमारी कोई संलिप्तता इस हमले में नहीं है। यह सपा की ओर से बदनाम करने की साजिश है। हम शांतिपूर्ण संगठन हैं और हिंसा में विश्वास नहीं करते।” उन्होंने पुलिस से निष्पक्ष जांच की मांग की है और कहा कि सच्चाई जल्द सामने आएगी।
पुलिस और प्रशासन की प्रतिक्रिया
वाराणसी पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया है और दो हमलावरों को हिरासत में लिया है। पुलिस अधीक्षक (एसपी) ने बताया, “हमने दोनों संदिग्धों को हिरासत में लिया है और उनसे पूछताछ की जा रही है। प्रारंभिक जांच में यह व्यक्तिगत रंजिश का मामला प्रतीत हो रहा है, लेकिन हम सभी पहलुओं की जांच कर रहे हैं।” पुलिस ने यह भी स्पष्ट किया कि अतिरिक्त बल तैनात किया गया है ताकि क्षेत्र में शांति बनी रहे।
पुलिस ने हमलावरों के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और अन्य संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है। सीसीटीवी फुटेज और प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के आधार पर जांच को आगे बढ़ाया जा रहा है।
राजनीतिक तनाव और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
इस घटना ने वाराणसी में पहले से ही संवेदनशील राजनीतिक माहौल को और गरमा दिया है। वाराणसी, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है, पहले भी कई बार राजनीतिक और सामाजिक विवादों का केंद्र रहा है। सपा नेताओं का कहना है कि यह हमला योगी सरकार की नाकामी को दर्शाता है, जबकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे कानून-व्यवस्था का मामला बताते हुए पुलिस को त्वरित कार्रवाई का निर्देश दिया है।
स्थानीय लोगों में भी इस घटना को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ का मानना है कि यह हमला राजनीतिक गुटबाजी का नतीजा है, जबकि अन्य इसे सामाजिक सौहार्द पर हमला मान रहे हैं। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “हरीश मिश्रा सामाजिक मुद्दों पर मुखर रहे हैं। उनके बयानों से कुछ लोग नाराज थे, लेकिन हिंसा का रास्ता अपनाना गलत है।”
काशी विद्यापीठ का महत्व
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, जहां यह घटना हुई, वाराणसी का एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान है। 1921 में स्थापित यह विश्वविद्यालय स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय समाजवादी आंदोलन का गढ़ रहा है। कैंपस के आसपास का क्षेत्र अक्सर छात्र राजनीति और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र रहता है, जिसके चलते यह घटना और भी चर्चा में है।
पहले भी हो चुके हैं विवाद
वाराणसी में राजनीतिक नेताओं पर हमले की यह पहली घटना नहीं है। हाल के वर्षों में शहर में कई बार राजनीतिक और सामाजिक विवाद हिंसक रूप ले चुके हैं। खासकर करणी सेना जैसे संगठनों के साथ तनाव की खबरें पहले भी सामने आ चुकी हैं। इस घटना ने एक बार फिर प्रशासन के सामने कानून-व्यवस्था बनाए रखने की चुनौती खड़ी कर दी है।
