Shanghai Street Goes Silent: शंघाई की सड़कें हो गईं खामोश, गायब हो गए थे प्रदर्शनकारी
शंघाई, 16 नवंबर 2025: 26 नवंबर 2022 की रात, शंघाई की वुलुमुकी रोड पर मोमबत्तियों की रोशनी में शुरू हुआ शांत शोक एक ऐतिहासिक आंदोलन में बदल गया। उरुमकी अग्निकांड के बाद भड़के गुस्से ने शून्य-कोविड नीति और सत्ता को चुनौती दी। मगर 48 घंटों में सड़कें वीरान, प्रदर्शनकारी गायब, और हर निशान मिटा दिया गया। कैसे चीन की हाई-टेक निगरानी और दमन ने इस आंदोलन को चुप करा दिया? यह कहानी केवल शंघाई की नहीं, बल्कि तकनीक-चालित सत्तावाद की वैश्विक तस्वीर है। आइए, इस चौंकाने वाली घटना की परतें खोलें और जानें कि कैसे एक रात की चिंगारी को पलभर में बुझा दिया गया।
मोमबत्तियों से चिंगारी: आंदोलन का जन्म
26 नवंबर 2022 की शाम, शंघाई की वुलुमुकी रोड मोमबत्तियों से जगमगाई। उरुमकी में एक अपार्टमेंट में लगी आग, जिसमें लॉकडाउन के कारण 10 लोग जिंदगी हार गए, ने स्थानीय लोगों को सड़कों पर ला दिया। यह शोक जल्द ही शून्य-कोविड नीति के खिलाफ गुस्से में बदल गया। प्रदर्शनकारी A4 की खाली शीट थामे अभिव्यक्ति की आजादी का प्रतीक बन गए। रात गहराते ही भीड़ बढ़ी, और नारे सत्ता को चुनौती देने लगे। “शी जिनपिंग इस्तीफा दो!” जैसे नारे दशकों में पहली बार गूंजे। यह श्वेत-पत्र आंदोलन का आगाज था। शंघाई से लेकर बीजिंग तक, छात्रों, युवाओं और आम नागरिकों ने सड़कों पर डटकर साहस दिखाया। मगर सत्ता की नजरें इस चिंगारी पर थीं। रात के अंधेरे में दमन की स्क्रिप्ट तैयार हो रही थी। सादे कपड़ों में सुरक्षाकर्मी भीड़ में घुस चुके थे, और तकनीकी जाल बिछाया जा रहा था। यह केवल शुरुआत थी।
हाई-टेक दमन: आवाज़ का गला घोंटना
27 नवंबर की सुबह 4:30 बजे तक वुलुमुकी रोड का माहौल बदल चुका था। पुलिस ने सटीक कार्रवाई शुरू की। A4 शीट थामे शांत प्रदर्शनकारियों को वैन में खींच लिया गया। विदेशी पत्रकार एड लॉरेंस को पीटा और हिरासत में लिया गया। यह दमन का पहला चरण था। दूसरा चरण था डिजिटल विलोपन। दोपहर तक “Shanghai”, “Urumqi” और “A4” जैसे शब्द वेइबो से गायब हो गए। लाखों पोस्ट डिलीट कर दिए गए। ट्विटर पर विरोध हैशटैग को स्पैम से दबाया गया। चीनी इंटरनेट की ग्रेट फायरवॉल ने हर डिजिटल निशान मिटा दिया। स्मार्टफोन डेटा और सीसीटीवी फुटेज से प्रदर्शनकारियों की पहचान शुरू हुई। एक प्रदर्शनकारी ने बताया कि उसने चेहरा छुपाया, मगर मोबाइल टावर डेटा ने उसे पकड़ लिया। पुलिस रातोंरात घरों तक पहुंची। यह न केवल भीड़ को तितर-बितर करना था, बल्कि आंदोलन के वजूद को ही खत्म करने की रणनीति थी।
निगरानी का जाल: स्वतंत्रता की कीमत
28 नवंबर से चीन की निगरानी मशीनरी ने पूरी ताकत दिखाई। एआई-आधारित फेशियल रिकग्निशन ने मास्क पहने प्रदर्शनकारियों को भी पकड़ लिया। मोबाइल टावर डेटा से पुलिस ने हर उस शख्स को ट्रैक किया, जो प्रदर्शन स्थल के पास था। झांग जैसे कई प्रदर्शनकारी घरों में पकड़े गए। अनुच्छेद 293 के तहत “अशांति फैलाने” का आरोप लगाकर काओ ज़िक्सिन, यांग लियू जैसे पत्रकारों को जेल भेजा गया। ह्यूमन राइट्स वॉच ने बताया कि निष्पक्ष सुनवाई का हक छीना गया। कई प्रदर्शनकारी आज भी हिरासत में हैं, कुछ दबाव में कबूलनामे दे चुके। परिवारों पर नजर, करियर तबाह, और रिहाई के बाद भी अधिकार छीने गए। यह दमन तियानमेन की तरह खूनी नहीं, मगर उतना ही क्रूर था। बीजिंग इस मॉडल को बेल्ट एंड रोड देशों में फैला रहा है। शंघाई की खामोशी चेतावनी है—तकनीक स्वतंत्रता ला सकती है, मगर दमन को भी अभेद्य बनाती है।