SGPGI Report: ब्रेन डेड के बाद अंगदान में सिर्फ पांच परिवार आए आगे, जीवित अंगदान के मामले रहे अधिक
14 अप्रैल, 2025, लखनऊ संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI), लखनऊ ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि ब्रेन डेड घोषित मरीजों के अंगदान के लिए पिछले एक वर्ष में केवल पांच परिवार ही आगे आए। इसके विपरीत, अंगदान के ज्यादातर मामले जीवित व्यक्तियों द्वारा किए गए दान के रहे। यह आंकड़ा न केवल अंगदान के प्रति जागरूकता की कमी को दर्शाता है, बल्कि ब्रेन डेड के बाद अंगदान से जुड़ी सामाजिक और भावनात्मक बाधाओं को भी उजागर करता है।
SGPGI में अंगदान की स्थिति
SGPGI उत्तर भारत का एक प्रमुख चिकित्सा संस्थान है, जो अंग प्रत्यारोपण और ब्रेन डेड मरीजों की देखभाल में अग्रणी भूमिका निभाता है। संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक वर्ष में 50 से अधिक मरीजों को ब्रेन डेड घोषित किया गया, लेकिन इनमें से केवल पांच मामलों में परिवारों ने अंगदान के लिए सहमति दी। इन पांच परिवारों के निर्णय से 10 से अधिक लोगों को नया जीवन मिल सका, जिसमें किडनी, लिवर और हृदय प्रत्यारोपण शामिल हैं।
SGPGI के निदेशक प्रो. आर. के. धीमन ने बताया, “ब्रेन डेड के बाद अंगदान एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें परिवारों का भावनात्मक और नैतिक समर्थन बहुत जरूरी है। हमारी काउंसलिंग टीमें परिवारों को समझाने की पूरी कोशिश करती हैं, लेकिन कई बार सामाजिक मान्यताएँ और गलतफहमियाँ रास्ते में आड़े आती हैं।”
जीवित अंगदान की अधिकता
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि SGPGI में अंगदान के कुल मामलों में से 70% से अधिक जीवित व्यक्तियों द्वारा किए गए थे। इनमें ज्यादातर किडनी और लिवर प्रत्यारोपण शामिल हैं, जो परिवार के सदस्यों—जैसे माता-पिता, भाई-बहन या पति-पत्नी—द्वारा अपने प्रियजनों के लिए किए गए। जीवित अंगदान में मरीज और दाता दोनों की सहमति और चिकित्सकीय जाँच के बाद प्रक्रिया पूरी की जाती है।
SGPGI के ट्रांसप्लांट विभाग के प्रमुख डॉ. नारायण प्रसाद ने कहा, “जीवित अंगदान में लोग अपने परिजनों को बचाने के लिए स्वेच्छा से आगे आते हैं, लेकिन ब्रेन डेड के बाद अंगदान के लिए परिवारों को मनाना चुनौतीपूर्ण होता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जहाँ परिवार अपने प्रियजन को खोने के दुख में होता है, और अंगदान का निर्णय उनके लिए आसान नहीं होता।”
ब्रेन डेड के बाद अंगदान में कम रुचि के कारण
रिपोर्ट में ब्रेन डेड के बाद अंगदान में कम सहमति के कई कारणों का जिक्र किया गया है:
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जागरूकता की कमी: आम लोगों में ब्रेन डेड और अंगदान के बीच के अंतर को लेकर भ्रम बना हुआ है। कई परिवारों को लगता है कि ब्रेन डेड मरीज अभी भी जीवित हो सकता है।
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धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ: कुछ परिवार धार्मिक कारणों से अंगदान को स्वीकार नहीं करते। उनके लिए मृत्यु के बाद शरीर की अखंडता बनाए रखना महत्वपूर्ण होता है।
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चिकित्सा प्रणाली पर अविश्वास: कुछ मामलों में परिवारों को लगता है कि अंगदान के लिए जल्दबाजी की जा रही है, जिससे वे असहज महसूस करते हैं।
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भावनात्मक बाधाएँ: ब्रेन डेड मरीज के परिवार को यह स्वीकार करना मुश्किल होता है कि उनका प्रियजन अब जीवित नहीं है, और अंगदान का विचार उनके दुख को और बढ़ा सकता है।
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प्रक्रियात्मक जटिलताएँ: अंगदान की प्रक्रिया में समय, कागजी कार्यवाही और काउंसलिंग की आवश्यकता होती है, जो कुछ परिवारों के लिए बोझिल हो सकती है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की स्थिति
वैश्विक स्तर पर ब्रेन डेड के बाद अंगदान की दर भारत की तुलना में कहीं अधिक है। उदाहरण के लिए, स्पेन में प्रति मिलियन जनसंख्या पर 40 से अधिक ब्रेन डेड अंगदान होते हैं, जबकि भारत में यह आंकड़ा 0.8 से भी कम है। SGPGI की रिपोर्ट इस अंतर को कम करने की आवश्यकता पर जोर देती है। भारत में अंग प्रत्यारोपण की माँग बहुत अधिक है—लगभग 2 लाख लोग किडनी और 50,000 लोग लिवर प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा सूची में हैं। फिर भी, ब्रेन डेड अंगदान की कमी के कारण कई मरीज समय पर उपचार नहीं पा रहे।
SGPGI की पहल और सुझाव
SGPGI ने अंगदान को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं:
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जागरूकता अभियान: संस्थान नियमित रूप से स्कूलों, कॉलेजों और सामुदायिक केंद्रों में अंगदान पर कार्यशालाएँ आयोजित करता है।
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प्रशिक्षित काउंसलर: ब्रेन डेड मरीजों के परिवारों के साथ संवेदनशीलता से बात करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित काउंसलर नियुक्त किए गए हैं।
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तकनीकी उन्नति: SGPGI ने अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया को और प्रभावी बनाने के लिए नवीनतम तकनीकों और उपकरणों को अपनाया है।
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सहयोगी नेटवर्क: संस्थान राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) और अन्य क्षेत्रीय OPO (Organ Procurement Organizations) के साथ मिलकर काम कर रहा है।
रिपोर्ट में कुछ सुझाव भी दिए गए हैं, जैसे:
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सार्वजनिक शिक्षा: अंगदान के लाभों और ब्रेन डेड की स्थिति को समझाने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए जाएँ।
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नीतिगत सुधार: अंगदान की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने के लिए नीतियों में सुधार की आवश्यकता है।
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चिकित्सकों का प्रशिक्षण: अस्पतालों में चिकित्सकों और कर्मचारियों को ब्रेन डेड मरीजों की पहचान और प्रबंधन के लिए और प्रशिक्षित किया जाए।
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मीडिया की भूमिका: मीडिया को अंगदान की सफल कहानियों को प्रचारित करना चाहिए ताकि समाज में सकारात्मक दृष्टिकोण बने।
सफल कहानियाँ और प्रेरणा
SGPGI ने उन पांच परिवारों की कहानियों को भी साझा किया, जिन्होंने ब्रेन डेड के बाद अंगदान का फैसला लिया। इनमें से एक मामला लखनऊ के एक 35 वर्षीय व्यक्ति का था, जो सड़क दुर्घटना में ब्रेन डेड हो गया था। उनके परिवार ने उनकी किडनी और लिवर दान करने का फैसला लिया, जिससे दो मरीजों को नया जीवन मिला। परिवार ने कहा, “हमारे भाई की मृत्यु के बाद भी उनकी वजह से किसी और की जिंदगी बच गई, यह हमारे लिए गर्व की बात है।”
एक अन्य मामले में, एक 50 वर्षीय महिला के परिवार ने उनके हृदय और किडनी दान किए। उनके बेटे ने बताया, “हमारी माँ हमेशा दूसरों की मदद करती थीं। अंगदान के जरिए हमने उनकी इच्छा को पूरा किया।”
