• December 25, 2025

पांडवों ने की थी हस्तिनापुर के पांडवेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना

 पांडवों ने की थी हस्तिनापुर के पांडवेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना

कौरवों और पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर की धरती अपने भीतर कई रहस्य समेटे हुए है। यहां के प्राचीन पांडव टीले से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को उत्खनन में महाभारत काल के अवशेष मिल चुके हैं। इस टीले पर पांडवों द्वारा स्थापित पांडेश्वर महादेव मंदिर है। इस मंदिर में श्रावण मास में जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

कुरु राजधानी हस्तिनापुर की पूरे विश्व में पहचान है। आज भी हस्तिनापुर में महाभारतकालीन अवशेष उपस्थित है। हस्तिनापुर का प्राचीन पांडव टीले में कई सभ्यताओं के अवशेष समाए हुए हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पुरातत्वविद प्रो. बीबी लाल द्वारा 1952-52 में कराए गए उत्खनन में पहली बार पांडव टीले से चित्रित धूसर मृदभांड मिले। प्रो. बीबी लाल ने इन पुरावशेषों को महाभारत काल का करार दिया था। इसके बाद 2022 में हुई खुदाई में एएसआई को फिर से महाभारत काल के अवशेष प्राप्त हुए। इनमें कांच बनाने का यंत्र, लंबी दीवार, प्राचीन दीवारों के अवशेष, चित्रित मृदभांड, प्राचीन बर्तनों के अवशेष, मिट्टी के बर्तन, चूड़ियां, आग में जली हुई हड्डियां और जानवरों की हड्डियों के अवशेष मिले हैं। इन अवशेषों को दिल्ली स्थित संग्रहालय में रखा गया है और शोध किए जाते रहे हैं। हस्तिनापुर में भी बड़ा संग्रहालय बनाने की प्रक्रिया चल रही है।

पांडवों ने की थी मंदिर की स्थापना

पांडव टीले पर स्थित प्राचीन पांडवेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी। राजकीय संग्रहालय झांसी के उप निदेशक डॉ. मनोज गौतम बताते हैं कि पांडवों द्वारा स्थापित इस मंदिर की बहुत मान्यता है। इस मंदिर में पांच पांडवों और द्रौपदी की प्राचीन प्रतिमा विराजमान है। पांडव इस मंदिर में आकर पूजा किया करते थे। इस मंदिर को देखने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं। श्रावण मास में जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है।

समय-समय पर होता रहा है मंदिर का जीर्णोद्धार

पांडवेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार समय-समय पर होता रहा है। वर्तमान में मराठा शैली में निर्मित मंदिर का जीर्णोद्धार 1798 में राजा नैन सिंह ने कराया। इस मंदिर के प्रांगण में विशाल वट वृक्ष आज भी है। जिसे बहुत प्राचीन बताया जाता है। इस वट वृक्ष के नीचे श्रद्धालु दीप जलाकर पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर में स्थित शिवलिंग प्राकृतिक है, जो लगातार जलाभिषेक के कारण आधा रह गया है।

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