• October 15, 2025

कानपुर में युवाओं में नई किस्म की डायबिटीज की चपेट: बिना मोटापे के बढ़ रहा शुगर लेवल, चिंता का विषय

कानपुर, 13 अप्रैल 2025: उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में स्वास्थ्य विशेषज्ञ एक नई और चिंताजनक प्रवृत्ति को देख रहे हैं। युवाओं में एक नई तरह की डायबिटीज तेजी से बढ़ रही है, जिसमें न तो मोटापा इसका कारण है और न ही पारंपरिक जोखिम कारक पूरी तरह लागू होते हैं। इस प्रकार की डायबिटीज में शुगर लेवल लगातार बढ़ता रहता है, और यह सामान्य टाइप-1 या टाइप-2 डायबिटीज से अलग व्यवहार करती है। यह स्थिति न केवल चिकित्सकों के लिए चुनौती बन रही है, बल्कि युवा आबादी के स्वास्थ्य पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रही है। आइए, इस नई स्वास्थ्य समस्या के कारणों, लक्षणों और समाधानों पर विस्तार से जानते हैं।
क्या है यह नई डायबिटीज?
कानपुर के मेडिकल विशेषज्ञों और स्थानीय अस्पतालों के अनुसार, यह डायबिटीज न तो पूरी तरह टाइप-1 (जो आमतौर पर ऑटोइम्यून और बचपन में देखी जाती है) है और न ही टाइप-2 (जो मोटापे और जीवनशैली से जुड़ी है)। इसे कुछ विशेषज्ञ “हाइब्रिड डायबिटीज” या “युवा-प्रारंभिक डायबिटीज” (Young-Onset Diabetes) कह रहे हैं। इसकी खास बात यह है कि यह 20 से 35 साल की उम्र के युवाओं में देखी जा रही है, जिनका बॉडी मास इंडेक्स (BMI) सामान्य है और जिनमें मोटापे या मेटाबॉलिक सिंड्रोम (जैसे हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई बीपी) के लक्षण नहीं हैं।
स्थानीय एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. संजय गुप्ता ने बताया, “हमारे पास ऐसे कई मरीज आ रहे हैं, जिनका शुगर लेवल बिना किसी स्पष्ट कारण के बढ़ रहा है। ये युवा न तो मोटे हैं, न ही उनकी जीवनशैली पूरी तरह अस्वस्थ है। यह डायबिटीज टाइप-1 और टाइप-2 के बीच का एक मिश्रित रूप प्रतीत होता है।” कुछ मामलों में, मरीजों में ऑटोएंटीबॉडीज (जो टाइप-1 का संकेत हैं) और इंसुलिन रेजिस्टेंस (टाइप-2 की विशेषता) दोनों के लक्षण देखे गए हैं।
कानपुर में क्यों बढ़ रही यह समस्या?
कानपुर में इस नई डायबिटीज के बढ़ने के कई संभावित कारण सामने आ रहे हैं। विशेषज्ञों ने निम्नलिखित कारकों को इसके लिए जिम्मेदार माना है:
  1. आनुवंशिक प्रवृत्ति: दक्षिण एशियाई, खासकर भारतीय आबादी में डायबिटीज की आनुवंशिक संवेदनशीलता अधिक होती है। कानपुर में कई युवाओं में पारिवारिक इतिहास देखा गया है, जहां माता-पिता या दादा-दादी को डायबिटीज थी। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि कुछ जीन, जैसे TCF7L2, भारतीयों में डायबिटीज के जोखिम को बढ़ाते हैं, भले ही मोटापा न हो।
  2. जीवनशैली में बदलाव: भले ही मोटापा इस डायबिटीज का कारण नहीं है, लेकिन कानपुर जैसे औद्योगिक शहरों में युवाओं की जीवनशैली में तनाव, अनियमित नींद, और स्क्रीन टाइम (मोबाइल/लैपटॉप) की अधिकता देखी जा रही है। ये कारक इंसुलिन संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक स्थानीय सर्वे में पाया गया कि 70% युवा रोजाना 6 घंटे से कम सोते हैं, जो हार्मोनल असंतुलन को बढ़ावा देता है।
  3. पर्यावरणीय कारक: कानपुर में वायु प्रदूषण और औद्योगिक रसायनों का स्तर चिंताजनक है। कुछ शोधों ने संकेत दिया है कि लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ सकता है। इसके अलावा, पानी और भोजन में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स और रसायनों का प्रभाव भी अध्ययन का विषय है।
  4. पोषण संबंधी कमी: कानपुर के कई युवा फास्ट फूड और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों पर निर्भर हैं, जिनमें पोषक तत्वों की कमी होती है। विटामिन डी, मैग्नीशियम, और ओमेगा-3 जैसे तत्वों की कमी डायबिटीज के जोखिम को बढ़ा सकती है, भले ही व्यक्ति का वजन सामान्य हो।
  5. मोबाइल और डिजिटल लत: हाल के हादसों और स्वास्थ्य अध्ययनों ने कानपुर में मोबाइल फोन की लत को एक उभरता खतरा बताया है। ड्राइविंग के दौरान फोन का उपयोग न केवल हादसों का कारण बन रहा है, बल्कि लंबे समय तक स्क्रीन पर रहने से तनाव हार्मोन (कॉर्टिसोल) का स्तर बढ़ता है, जो ब्लड शुगर को प्रभावित करता है।
लक्षण और पहचान
इस नई डायबिटीज के लक्षण पारंपरिक डायबिटीज से मिलते-जुलते हैं, लेकिन कई बार इन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है क्योंकि युवा खुद को स्वस्थ मानते हैं। सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:
  • बार-बार प्यास लगना और पेशाब आना
  • थकान और कमजोरी
  • वजन में अचानक कमी (कुछ मामलों में)
  • धुंधला दिखना
  • घावों का देर से ठीक होना
कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के एक अध्ययन में पाया गया कि 60% युवा मरीजों को डायबिटीज का पता तब चला, जब उनका रैंडम ब्लड शुगर 200 मिलीग्राम/डीएल से अधिक था। विशेषज्ञों का कहना है कि नियमित स्वास्थ्य जांच ही इस स्थिति को शुरुआती चरण में पकड़ने का सबसे अच्छा तरीका है।
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Rama Niwash Pandey

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