कवि नवनीत पाण्डे और प्रज्ञा रावत केदार सम्मान से अलंकृत

इस साल (2024) का ‘मुक्तिचक्र जनकवि केदारनाथ अग्रवाल स्मृति सम्मान’ प्रखर कवियत्री प्रज्ञा रावत (भोपाल) को प्रदान किया गया। साथ ही पिछले साल (2023) के सम्मान से कवि, नाटककार और गीतकार नवनीत पाण्डेय (बीकानेर) को अलंकृत किया गया। इस सम्मान समारोह का आयोजन पिछले कुछ सालों से जनकवि केदारनाथ अग्रवाल की पुण्यतिथि पर उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में केन नदी के किनारे बसे बांदा में किया जाता है। स्मृतिशेष केदारनाथ अग्रवाल का कविता-संग्रह ‘फूल नहीं, रंग बोलते हैं’ सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित हो चुका है। कविता संग्रह ‘अपूर्वा’ को 1986 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। प्रकृति और विद्रोह के कवि केदार बाबू को इसके अलावा हिंदी संस्थान पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार आदि से अलंकृत किया गया।
सम्मान समारोह का आयोजन जैन धर्मशाला बांदा में 22 मार्च को ‘मुक्तिचक्र’ पत्रिका और जनवादी लेखक मंच ने संयुक्त रूप से किया। प्रथम सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि एवं गीतकार जवाहर लाल जलज और संचालन ‘मुक्तिचक्र’ के संपादक गोपाल गोयल ने किया। बीज वक्तव्य बांदा की जनवादी परम्परा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले प्रखर आलोचक, उम्दा कवि व व्यंग्य में अपने ठेठ देशी अंदाज में साहित्य सर्जना करने वाले उमाशंकर सिंह परमार ने दिया।
चार सत्रों में विभाजित सम्मान समारोह के पहले सत्र में अतिथि कवियों को अलंकृत किया गया। दूसरे सत्र में सम्मानित कवियों ने कविता पाठ किया। इनके साथ बांदा जनपद व जनपद के सुदूरवर्ती क्षेत्रों से पहुंचे कवियों ने रचनापाठ किया। सत्र की अध्यक्षता प्रो. रामगोपाल गुप्त और संचालन कवि दीन दयाल सोनी ने किया। तृतीय सत्र में जिला कचहरी परिसर में बाबू केदारनाथ अग्रवाल की प्रतिमा पर माल्यापर्ण किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता बांदा बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अशोक त्रिपाठी जीतू ने की। इस सत्र का संचालन प्रज्ञा रावत के पुत्र और फिल्मकार मल्लहार ने की। प्रथम दिवस आखिरी सत्र का समापन केदारनाथ अग्रवाल की प्रिय नदी केन के तट पर कवि गोष्ठी से हुआ। इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि नवनीत पाण्डे ने की।
रात के प्रथम प्रहर में केन नदी के तट पर कवि केदार की चुनिंदा रचनाओं को भी पाठ किया गया। प्रगतिशाली काव्यधारा के प्रमुख कवि केदारनाथ अग्रवाल को याद करते हुए गोपाल गोयल ने कहा कि केदारबाबू का पहला काव्य संग्रह युग की गंगा आजादी के पहले मार्च, 1947 में प्रकाशित हुआ। हिंदी साहित्य के इतिहास को समझने के लिए यह संग्रह एक बहुमूल्य दस्तावेज है। एक अप्रैल 1911 को उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद के कमासिन गांव में जन्मे केदारनाथ अग्रवाल का इलाहबाद से भी गहरा रिश्ता रहा। इलाहबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने कविताएं लिखने की शुरुआत की। उनकी लेखनी में प्रयाग की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा है। प्रयाग के साहित्यिक परिवेश से उनके गहरे रिश्ते का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभी मुख्य कृतियां इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुईं। केन तट पर केदारबाबू की कुछ श्रेष्ठ रचनाएं भी पढ़ी गईं।
