मायावती ने लखनऊ और कानपुर मंडल के प्रभारी समसुद्दीन राइन को पार्टी से निकाला, गुटबाजी बनी वजह
लखनऊ, 24 अक्टूबर, 2025: बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने एक बार फिर अनुशासन पर सख्ती दिखाई है। लखनऊ और कानपुर मंडल के प्रभारी समसुद्दीन राइन को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। यह फैसला गुटबाजी और अनुशासनहीनता के आरोपों पर आधारित है, जो पार्टी के संगठन को कमजोर कर रहा था। मायावती का यह कदम 2027 के यूपी चुनावों से पहले संगठन को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा लगता है। लेकिन क्या है इस कार्रवाई के पीछे की पूरी कहानी, और इसका पार्टी पर क्या असर पड़ेगा? आइए, तीन हिस्सों में जानते हैं इस घटना की गहराई, जहां हर कदम पर राजनीतिक संदेश छिपा है।
सुबह नियुक्ति, शाम को निष्कासन: राइन की गिरफ्तारी
गुरुवार सुबह बहुजन समाज पार्टी ने लखनऊ, कानपुर और प्रयागराज मंडलों का प्रभार समसुद्दीन राइन को सौंपा। लेकिन दोपहर होते-होते ही प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने मायावती के निर्देश पर उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया। पत्र में स्पष्ट कहा गया कि राइन पर गुटबाजी फैलाने और अनुशासनहीनता के गंभीर आरोप हैं। जांसी के रहने वाले राइन बसपा के प्रमुख मुस्लिम चेहरों में से एक थे, जो नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बाद पश्चिमी यूपी की कमान संभालते थे। उन्हें पहले भी कई चेतावनियां दी गई थीं, लेकिन सुधार न होने पर अनुशासन समिति की सिफारिश पर यह कदम उठाया गया। राइन ने खुद आरोपों को निराधार बताया, कहा कि शायद मिस्ड कॉल के कारण यह हुआ। यह घटना पार्टी में आंतरिक कलह को उजागर करती है, जहां मायावती जमीनी नेताओं को आगे लाने पर जोर दे रही हैं।
पार्टी विरोधी गतिविधियां: चेतावनियों का सिलसिला
समसुद्दीन राइन पर लगे आरोपों की जड़ें गहरी हैं। बसपा के अनुसार, वे लगातार पार्टी में गुटबाजी को बढ़ावा दे रहे थे, जो संगठन के हित में नहीं था। पत्र में उल्लेख है कि राइन की कार्यशैली ने कई मौकों पर पार्टी को नुकसान पहुंचाया। इससे पहले, 16 अक्टूबर की बैठक में उन्हें नई जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन लखनऊ रैली की कमेटी में उनकी अनदेखी से नाराजगी भड़क गई। विशेषज्ञों का कहना है कि मायावती का यह फैसला ‘मिशन 2027’ का हिस्सा है, जहां निष्क्रिय और विवादास्पद नेताओं को साफ किया जा रहा है। राइन ने कहा कि वे मायावती को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं, लेकिन कार्रवाई से आहत हैं। यह घटना बसपा के मुस्लिम वोट बैंक पर सवाल खड़े करती है, क्योंकि राइन जैसे नेता दलित-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। पार्टी अब सक्रिय कार्यकर्ताओं को मौका देगी।
अकेले चुनाव की तैयारी: गठबंधनों से सबक
यह निष्कासन बसपा की व्यापक रणनीति का हिस्सा है। मायावती ने कांशीराम के 19वें परिनिर्वाण दिवस पर लखनऊ रैली में स्पष्ट कहा था कि अगला यूपी विधानसभा चुनाव पार्टी अकेले लड़ेगी। उन्होंने गठबंधनों को नुकसानदेह बताया, कहा कि सहयोगी दलों को फायदा हुआ, लेकिन बसपा को वोट बैंक का कोई खास सहयोग नहीं मिला। 2027 के चुनावों से एक साल पहले, मायावती संगठन को मजबूत करने पर फोकस कर रही हैं। हाल की रैलियों में लाखों कार्यकर्ताओं की उपस्थिति से उत्साह है, लेकिन गुटबाजी जैसी समस्याएं बाधा बन रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि राइन का निष्कासन पार्टी को अनुशासित बनाएगा, लेकिन मुस्लिम नेतृत्व की कमी चुनौती हो सकती है। बसपा अब गांव-गांव पहुंच बनाने और बहुजन वोटों को एकजुट करने पर जोर देगी। यह फैसला मायावती की दृढ़ता दिखाता है।