• February 20, 2025

144 साल बाद का महाकुंभ: आस्था, अफवाह और अव्यवस्था, 144 साल बाद का महाकुंभ का शास्त्रों में कहा उल्लेख कोई बताएगा?

16 फ़रवरी दिल्ली। महाकुंभ…धर्म और आस्था का महासंगम! गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाकर मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले करोड़ों श्रद्धालु इस महाआयोजन का हिस्सा बनने के लिए हर बार उमड़ पड़ते हैं। लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ-144 साल बाद के “अमृत स्नान” की अफवाह ने इसे और भीड़भाड़ वाला बना दिया।
144 साल का गणित या एक मनगढ़ंत कहानी?
शास्त्रों में कहीं भी “144 साल बाद के अमृत स्नान” का उल्लेख नहीं मिलता। अर्धकुंभ हर 6 साल में, और महाकुंभ हर 12 साल में होता आया है। लेकिन इस बार, “12 को 12 से गुणा कर 144 साल बाद का अमृत स्नान” जैसी थ्योरी को हवा दे दी गई।
सवाल यह है कि इस अफवाह को फैलाने वाला कौन था? और इसका मकसद क्या था?
क्या यह श्रद्धालुओं की भावनाओं को भुनाने का प्रयास था? या प्रशासनिक स्तर पर भीड़ को बढ़ाने का एक कुप्रबंधन?
बढ़ती भीड़ और अव्यवस्था का जिम्मेदार कौन?
महाकुंभ में मौनी अमावस्या के स्नान के दौरान भगदड़ में 30 लोगों की मौत सरकारी आंकड़ों में दर्ज हुई। लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यह संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है।
15 फरवरी की रात दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भी अत्यधिक भीड़ के कारण भगदड़ मची, जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई। यह घटनाएं आस्था के नाम पर फैली अफवाहों और प्रशासनिक लापरवाही का भयानक उदाहरण हैं।
जब किसी आयोजन की क्षमता से कई गुना अधिक लोग उसमें शामिल हो जाते हैं, तो अव्यवस्था होना स्वाभाविक है। लेकिन सवाल यह है कि—
* लाखों लोगों के आने की खबर प्रशासन को थी, तो व्यवस्था क्यों नहीं की गई?
* अगर 144 साल के अमृत स्नान की कोई धार्मिक पुष्टि नहीं थी, तो इसे हवा क्यों दी गई?
* क्या श्रद्धालुओं को सुरक्षित स्नान और यात्रा की गारंटी देने की जिम्मेदारी प्रशासन की नहीं थी?
आस्था बनाम अव्यवस्था: मौतों का आंकड़ा बढ़ता जाएगा?
धर्म और परंपरा का पालन करना हर व्यक्ति का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार सुरक्षित वातावरण में मिले, यह प्रशासन का कर्तव्य है।
महाकुंभ के नाम पर रेलवे स्टेशनों पर भीड़ की बेकाबू स्थिति, अव्यवस्थित ट्रेनों की कमी, सड़क पर घंटों तक जाम में फंसे श्रद्धालु, और भगदड़ में दम तोड़ते निर्दोष लोग—क्या यही आस्था का स्वरूप रह गया है?
सरकारें आंकड़ों से खेल रही हैं, सोशल मीडिया पर महाकुंभ की भव्य तस्वीरें परोसी जा रही हैं, लेकिन जमीन पर श्रद्धालुओं को भूख, प्यास, धक्कों और मौत के साए में जीना पड़ रहा है।
कौन लेगा इस मौतों की जिम्मेदारी?
हर बार जब कोई हादसा होता है, तो सरकारें जांच का आदेश दे देती हैं, लेकिन कभी भी उन अधिकारियों और नेताओं पर कार्रवाई नहीं होती, जिनकी जिम्मेदारी बनती थी कि ये हादसे न हों।
श्रद्धालु अपनी जान हथेली पर रखकर पुण्य कमाने निकले थे, लेकिन इस अव्यवस्था में उन्हें पुण्य मिला या नहीं, ये तो नहीं पता… हां, कई परिवारों को उनकी लाशें जरूर मिलीं।

आस्था बनाम अव्यवस्था
बढ़ती भीड़ का जिम्मेदार कौन? अगर शास्त्रों में 144 साल की पुष्टि नहीं तो ऐसी अफवाह किसने और क्यों फैलाई जिसकी वजह से महाकुंभ में अमृत स्नान के लिए भीड़ दौड़ पड़ी। महाकुम्भ में मौनी अमावस्या में भगदड़ में 30 मौत के सरकारी आंकड़े के बाद 15 फरवरी की रात दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 15 मौत का जिम्मेदार कौन?

महाकुंभ! आस्था का सबसे बड़ा संगम, दुनिया का सबसे विशाल धार्मिक आयोजन, जहां करोड़ों श्रद्धालु पुण्य कमाने के लिए गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं। लेकिन इस बार प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ को लेकर एक नई अवधारणा सामने आई—144 साल बाद का “अमृत स्नान”! विद्वानों और पंडितों से जब इस बारे में सवाल किए गए, तो अधिकतर का जवाब यही था—शास्त्रों में इस “अमृत स्नान” का कोई उल्लेख नहीं है।
144 साल का गणित या नई परंपरा?
परंपरागत रूप से अर्धकुंभ हर 6 साल में और महाकुंभ हर 12 साल में आयोजित होता है। लेकिन 144 साल के “अमृत स्नान” का आंकड़ा कैसे आया? जब 12 को 12 से गुणा किया गया, तो 144 वर्ष निकले, और इस संख्या को “अमृत वर्षा” और “अमृत स्नान” का नाम दे दिया गया। सवाल उठता है—क्या आस्था के नाम पर एक नया गणित गढ़ दिया गया? क्या धर्म को मनमाने ढंग से बदलना उचित है?
कुंभ के चार प्रमुख स्नानों में से किसे “अमृत स्नान” कहा जाए, इस पर भी कोई स्पष्टता नहीं है। लोग लाखों की संख्या में उमड़ रहे हैं, लेकिन क्या वे इस “अमृत स्नान” की आधिकारिकता पर सवाल उठा रहे हैं?

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