• February 6, 2025

बिहार ही नहीं बाजार में होगी उत्तर प्रदेश की लीची की बहार

 बिहार ही नहीं बाजार में होगी उत्तर प्रदेश की लीची की बहार

लखनऊ, 17 जुलाई । आने वाले कुछ वर्षों

में बाजार में सिर्फ बिहार ही नहीं उत्तर प्रदेश के लीची की भी बहार होगी। बिहार

के जिन जिलों- मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर

और चंपारन आदि में लीची की खेती होती है उनकी कृषि जलवायु क्षेत्र कमोबेश उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के ही समान हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से

इस क्षेत्र में पूर्वांचल की ही भूमिका अग्रणी होगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

का भी गृह जनपद पूर्वांचल का गोरखपुर ही है। ऐसे में सरकार और इसकी कृषि संस्थाओं

का भी लीची की खेती पर खास फोकस है।

लीची के

पौधों के रोपण में विशेष सावधानी रखें। जिस गड्ढे में लीची के पौधे का रोपण किया

जाए उसमें लीची के पुराने पेड़ के नीचे की मिट्टी अवश्य डालें। इसमें माइक्रोराइजा

पाया जाता है जो लीची के नए पौधों की बढ़वार के लिए अति आवश्यक है। इससे लीची के पौधों

के सूखने की आशंका कम रहती है।

आचार्य

नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार गोरखपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह के अनुसार

पूर्वांचल के कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार किसानों को कुछ खास प्रजातियों के

रोपण की सलाह दी जाती है। ये सात प्रजातियां हैं रोज सेंटेड, शाही, चाइना, अर्ली वेदाना, लेट बेदाना, गांडकी संपदा और गांडकी लालिमा। सेंटर

ऑफ एक्सीलेंस के तहत चयनित इस केंद्र का प्रयास है कि किसानों को बेहतर फलत वाले

गुणवत्ता के पौध मिलें। इसके लिए हर प्रजाति के कुछ पौधे भी लगाए गए हैं। इनमें से

श्रेष्ठतम गुणवत्ता के पेड़ से नर्सरी तैयार कर किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा।

सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट एसोसिएशन नामक संस्था टाटा ट्रस्ट, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र

मुजफ्फरपुर और कृषि विज्ञान केंद्र कुशीनगर की मदद से यह काम पिछले कुछ वर्षों से

कर रही है। संस्था के प्रमुख वीएम त्रिपाठी के मुताबिक जरूरत के अनुसार वे संबंधित

संस्थाओं से प्लांटिंग मैटेरियल, तकनीकी और अन्य सहयोग लेते हैं। अब तक उनकी संस्था की मदद से शाही और चाइना

लीची के करीब 40 से 50 एकड़ बाग लगाए जा चुके हैं। किसान इनमें सीजन के अनुसार सहफसल भी

लेते हैं।

डॉ. एसपी

सिंह के अनुसार लीची के नवरोपित बाग में लाइन से लाइन और पौध से पौध के बीच की

खाली जगह में किसान सीजन के अनुसार सह-फसल भी ले सकते हैं। मसलन शुरुआत के कुछ

वर्षों में फूलगोभी, पत्तागोभी, मूली, गाजर, मेंथी, पालक, लतावर्गीय सब्जियां उगाई जा सकती हैं। जब पौधों की छांव अधिक होने लगे तो छायादार जगह में हल्दी, अदरक और सूरन की खेती भी कर सकते हैं। ऐसा करने से बागवानों की आय तो बढ़ेगी ही, सहफसल के लिए लगातार देखरेख से बाग का

भी बेहतर प्रबंधन हो सकेगा।

लीची को

कहते हैं फलों की रानी

सुर्ख लाल

रंग। रस इतना कि छिलका उतारने के साथ ही टपकने लगे। मिठास से भरी लीची को इन्हीं

खूबियों के कारण फलों की रानी कहा जाता है। बाजार में आने पर भी लीची का जलवा रानी

जैसा ही होता है। मात्र दो तीन हफ्ते के लिए लीची बाजार में आती है और छा जाती है।

यह एकमात्र फल है जिसका थोक कारोबार तड़के शुरू होता है और दिन चढ़ने के साथ ही

सारा माल खत्म। मसलन लीची को लेकर बाजार कभी समस्या नहीं रहा।

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