ISRO का ‘बाहुबली’ धमाका: GSAT-7R लॉन्च से नौसेना बनेगी अजेय, जानिए कैसे बदलेगा समुद्री युद्ध का चेहरा
3 नवंबर 2025, श्रीहरिकोटा: 2 नवंबर की शाम 5:26 बजे आकाश गूंज उठा। ISRO का LVM3-M5 ‘बाहुबली’ रॉकेट GSAT-7R (CMS-03) को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर चुका। 4,410 किलो का यह दैत्याकार सैटेलाइट नौसेना का नया हथियार—लेकिन क्या यह सिर्फ संचार है या हिंद महासागर में भारत की सुपरपावर वाली दस्तक? पुराने GSAT-7 की जगह लेते हुए यह उपग्रह समुद्री निगरानी को क्रांति देगा। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इससे दुश्मन की हर चाल पहले से पकड़ी जाएगी। आइए, इस लॉन्च की परतें खोलें, जहां हर सिग्नल एक रणनीति बुनता है।
बाहुबली की उड़ान: 4,410 किलो का दिग्गज, सफल लॉन्च का राज
श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से शाम 5:26 बजे LVM3-M5 ने उड़ान भरी। 43.5 मीटर लंबा यह रॉकेट, जो चंद्रयान-3 को चांद तक ले जा चुका, अब GSAT-7R को GTO (जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट) में पहुंचाया। ISRO चेयरमैन वी. नारायणन ने कहा, “यह भारत का सबसे भारी संचार सैटेलाइट है, जो स्वदेशी तकनीक की मिसाल।” मिशन की लागत 1,589 करोड़—पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर। लाइव स्ट्रीमिंग में लाखों ने देखा, जब रॉकेट ने 8 मिनट में कक्षा हासिल की। सैटेलाइट अब अपनी प्रणोदक से GEO (जियोस्टेशनरी अर्थ ऑर्बिट) में स्थापित होगा। यह LVM3 की पांचवीं उड़ान—प्रत्येक चरण (S200, L110, C25) ने परफेक्ट परफॉर्म किया। सफलता ने ISRO को भारी पेलोड लॉन्च में आत्मनिर्भर साबित किया।
नौसेना की नई ताकत: रीयल-टाइम संचार से समुद्री निगरानी में क्रांति
GSAT-7R भारतीय नौसेना का ‘संचार रीढ़’ बनेगा। बहु-बैंड ट्रांसपोंडर्स से आवाज, डेटा, वीडियो—सब निर्बाध। हिंद महासागर क्षेत्र में जहाज, पनडुब्बियां, विमान और ड्रोन एक नेटवर्क में जुड़ेंगे। MDA (मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस) मजबूत—दुश्मन जहाजों की लोकेशन रीयल-टाइम शेयरिंग से मिशन तेज। पुराने GSAT-7 से कवरेज और बैंडविड्थ दोगुनी। रक्षा विशेषज्ञों का कहना, इससे नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर संभव—निर्णय लेना सेकंडों में। तट से गहरे समुद्र तक सुरक्षित कनेक्टिविटी। यह सैटेलाइट नौसेना को ‘डिजिटल फ्लीट’ देगा, जहां हर यूनिट एक-दूसरे से जुड़ी। हिंद महासागर में चीन-पाक चुनौतियों के बीच यह भारत की स्ट्रैटेजिक एज बढ़ाएगा।
आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक: स्वदेशी तकनीक से रक्षा क्रांति
GSAT-7R पूरी तरह ‘मेक इन इंडिया’—ISRO और स्वदेशी कंपनियों का सहयोग। 2019 में 1,589 करोड़ का कॉन्ट्रैक्ट, जो देरी के बाद नवंबर 2025 में फलीभूत। LVM3 ने विदेशी रॉकेट्स पर निर्भरता खत्म की। BCCI की तरह BCCI ने नौसेना को मजबूत किया। यह मिशन चंद्रयान-3 की सफलता दोहराता—भारत अब 4,000 किलो+ पेलोड GTO तक ले जा सकता। रक्षा में अंतरिक्ष एकीकरण से नौसेना की प्रतिक्रिया क्षमता कई गुना। विशेषज्ञ कहते हैं, यह SAGAR (सुरक्षित, सुरक्षित, समृद्ध हिंद महासागर) का आधार बनेगा। ISRO की यह छलांग नौसेना को अजेय बनाएगी।