• December 25, 2025

हिमाचल की स्वर्णिम दौड़: धाविका सीमा ने कोलकाता में रचा इतिहास, बनाया नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड

हिमाचल प्रदेश : हिमाचल प्रदेश की बेटियां आज दुनिया भर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। खेलों के मैदान से लेकर विज्ञान की दुनिया तक, उनकी उपलब्धियां प्रदेश का गौरव बढ़ा रही हैं। इसी कड़ी में एक और सुनहरा अध्याय जोड़ते हुए हिमाचल की धाविका सीमा ने कोलकाता में आयोजित विश्व स्तरीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में न केवल स्वर्ण पदक जीता, बल्कि एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया। सीमा की इस अभूतपूर्व सफलता ने भारतीय एथलेटिक्स के इतिहास में एक नया मानक स्थापित किया है और यह साबित कर दिया है कि यदि हौसला बुलंद हो, तो पहाड़ों की चुनौतियों को पार कर मैदानों में भी विजय पताका फहराई जा सकती है।

कोलकाता की सड़कों पर रफ्तार का नया कीर्तिमान

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में आयोजित इस प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स मीट में देश-दुनिया के कई दिग्गजों ने हिस्सा लिया था। प्रतियोगिता का मुख्य आकर्षण 25,000 मीटर (25 किलोमीटर) की लंबी दूरी की दौड़ थी। हिमाचल की सीमा ने इस दौड़ में शुरू से ही अपनी लय और गति पर नियंत्रण बनाए रखा। उन्होंने 1 घंटे, 26 मिनट और 4 सेकंड (1:26:04) के अविश्वसनीय समय के साथ दौड़ पूरी कर स्वर्ण पदक अपने नाम किया। यह समय न केवल उन्हें पहले स्थान पर ले गया, बल्कि भारतीय एथलेटिक्स के इतिहास में इस श्रेणी का अब तक का सबसे तेज समय यानी नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बन गया। सीमा की इस रफ्तार ने वहां मौजूद खेल विशेषज्ञों और दर्शकों को दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर दिया।

चंबा की बेटी पर पुरस्कारों की बौछार

हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की रहने वाली सीमा के लिए यह जीत केवल एक पदक तक सीमित नहीं रही। उनकी मेहनत और रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन को देखते हुए आयोजकों ने उन पर पुरस्कारों की बौछार कर दी। स्वर्ण पदक जीतने के उपलक्ष्य में उन्हें तीन लाख रुपये की नकद पुरस्कार राशि प्रदान की गई। इसके अतिरिक्त, पिछले राष्ट्रीय रिकॉर्ड को ध्वस्त करने और एक नया कीर्तिमान स्थापित करने के विशेष प्रोत्साहन के रूप में उन्हें एक लाख रुपये की अतिरिक्त राशि भी दी गई। कुल चार लाख रुपये के पुरस्कार और चमचमाते स्वर्ण पदक के साथ सीमा ने अपनी सफलता का जश्न मनाया। यह आर्थिक प्रोत्साहन सीमा जैसे ग्रामीण परिवेश से आने वाले खिलाड़ियों के लिए भविष्य की तैयारियों में काफी मददगार साबित होगा।

सफलता के पीछे की मेहनत और पेसर का योगदान

अपनी इस ऐतिहासिक जीत के बाद भावुक होते हुए सीमा ने अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार, अपने कोच और विशेष रूप से अपने ऑफिशियल पेसर अनीष चंदेल को दिया। लंबी दूरी की दौड़ में ‘पेसर’ की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, जो धावक को एक निश्चित गति बनाए रखने में मदद करता है। सीमा ने बताया कि बिलासपुर के रहने वाले अनीष चंदेल ने पूरी दौड़ के दौरान उनका मार्गदर्शन किया। अनीष ने न केवल दौड़ की गति को टूटने नहीं दिया, बल्कि जब थकान हावी होने लगी, तो उन्होंने सीमा को मानसिक रूप से भी प्रेरित किया। सीमा के अनुसार, यदि अनीष का सटीक मार्गदर्शन और सहयोग नहीं मिलता, तो राष्ट्रीय रिकॉर्ड तक पहुंचना चुनौतीपूर्ण हो सकता था। यह जीत एक बेहतरीन टीम वर्क का भी शानदार उदाहरण पेश करती है।

प्रदेश में खुशी की लहर और प्रोत्साहन की मांग

सीमा की इस उपलब्धि की खबर जैसे ही हिमाचल पहुंची, खेल जगत और स्थानीय लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई। जिला परिषद सदस्य मनोज कुमार मनु ने सीमा को इस ऐतिहासिक जीत और राष्ट्रीय रिकॉर्ड के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि सीमा ने चंबा के साथ-साथ पूरे हिमाचल प्रदेश का मान बढ़ाया है। इस मौके पर उन्होंने एक महत्वपूर्ण मुद्दा भी उठाया। मनोज कुमार मनु ने कहा कि हमारे देश और प्रदेश में क्रिकेट को तो बहुत लोकप्रियता और सम्मान मिलता है, लेकिन एथलेटिक्स जैसे अन्य खेलों के खिलाड़ियों को भी उसी स्तर का सम्मान और वित्तीय प्रोत्साहन मिलना चाहिए। उन्होंने सरकार और खेल संगठनों से अपील की कि सीमा जैसे होनहार खिलाड़ियों को विश्वस्तरीय सुविधाएं प्रदान की जाएं ताकि वे ओलंपिक जैसे वैश्विक मंचों पर भी देश के लिए पदक जीत सकें।

भविष्य की राह और प्रेरणा का स्रोत

सीमा की यह जीत केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह हिमाचल प्रदेश के उन हजारों युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा है जो सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े सपने देखते हैं। चंबा की पहाड़ियों से निकलकर कोलकाता के ट्रैक पर राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाना यह दर्शाता है कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। खेल विश्लेषकों का मानना है कि सीमा की वर्तमान फॉर्म और उनके समय को देखते हुए, वे आने वाले एशियाई खेलों और अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में भारत की सबसे बड़ी उम्मीदों में से एक बनकर उभर सकती हैं। अब जरूरत है तो बस उन्हें उचित पोषण, आधुनिक प्रशिक्षण और सरकारी सहयोग की, ताकि उनकी यह स्वर्णिम दौड़ निरंतर जारी रहे और वे भविष्य में भी देश का तिरंगा ऊंचा करती रहें।

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