डिप्रेशन की शिकार विधवा को 27 सप्ताह का भ्रूण हटाने की दिल्ली हाई कोर्ट से मिली अनुमति

दिल्ली हाई कोर्ट ने डिप्रेशन की शिकार विधवा के 27 हफ्ते का भ्रूण हटाने की अनुमति दे दी है। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने महिला की मानसिक स्थिति का ध्यान रखते हुए ये आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि महिला की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, ऐसे में गर्भ को जारी रखना सही नहीं है।
कोर्ट ने 3 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता महिला गंभीर रूप से डिप्रेशन की शिकार है। महिला की ओर से पेश वकील डॉक्टर अमित मिश्रा ने कहा था कि याचिकाकर्ता को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन डॉक्टरों ने उसे अपना गर्भ जारी रखने को कहा था। याचिका में कहा गया है कि गर्भ को जारी रखना महिला की निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसी परिस्थिति में गर्भ हटाने की अनुमति दी है। याचिकाकर्ता के मानसिक हालात ने परिस्थिति में बदलाव ला दिया है। इसके पहले 30 दिसंबर, 2023 को हाई कोर्ट की वेकेशन बेंच ने एम्स के मानसिक आरोग्य विभाग को महिला का चेकअप करने का आदेश दिया था। एम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि महिला गंभीर डिप्रेशन से गुजर रही है और उसके अंदर आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लक्षण हैं। ऐसी परिस्थिति में अगर महिला गर्भ को जारी रखती है तो उसके लिए खतरनाक होगा। महिला की मानसिक स्थिति का परीक्षण करने के बाद एम्स ने उसके रिश्तेदारों से उसे अस्पताल में भर्ती कराने को कहा। महिला को एम्स के साइकेट्री वार्ड में भर्ती कराया गया है।
उल्लेखनीय है कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) कानून में हुए संशोधन के बाद 24 माह तक के भ्रूण को भी कुछ विशेष परिस्थितियों में हटाने की इजाजत दी जा सकती है। पहले एमटीपी एक्ट की धारा 3(2) के तहत 20 हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण को हटाने की अनुमति नहीं थी। बाद में इसमें संशोधन कर 24 हफ्ते तक के भ्रूण को हटाने की विशेष परिस्थितियों में अनुमति दी गई। अगर 24 हफ्ते से अधिक का भ्रूण गर्भवती महिला के स्वास्थ्य या उसके मानसिक स्थिति पर बुरा असर डालता है तो उसे हटाने की अनुमति दी जा सकती है।
